World Hindi Day 2021: संस्कृत की सहेली बन एएमयू में परवान चढ़ी हिंदी Aligarh News
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) में हिंदी ने संस्कृत का हाथ पकड़कर चलना सीखा था। 16 साल में ही ऐसा मुकाम हासिल किया कि 1964 में खुद का ही विभाग बन गया। इसके बाद तो सर सैयद के चमन में हिंदी की बिंदी दमकती चली गई।
अलीगढ़, संतोष शर्मा। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) में हिंदी ने संस्कृत का हाथ पकड़कर चलना सीखा था। 16 साल में ही ऐसा मुकाम हासिल किया कि 1964 में खुद का ही विभाग बन गया। इसके बाद तो सर सैयद के चमन में हिंदी की बिंदी दमकती चली गई। कृष्ण भक्तिकाल में हुए शोध कार्य ने नई पहचान दिलाई।
एएमयू में हिंदी की शुरुआत जनवरी 1948 में पीजी स्तर पर हुई थी। शुरुआत में हिंदी के शिक्षण को संस्कृत विभाग के साथ रखा गया। नाम बदलकर संस्कृत-ङ्क्षहदी विभाग कर दिया गया। सितंबर 1948 को सबसे पहले डॉ. जीएन शुक्ला को लेक्चरर ग्रेड सेकंड के रूप में नियुक्त किया गया। दूसरी नियुक्ति 16 अगस्त 1950 को डॉ. शिव शंकर शर्मा की हुई। 7 जनवरी 1953 को डॉ. एचएल शर्मा पहले रीडर व विभागाध्यक्ष के रूप में नियुक्त हुए। 1950 में एमए का पहला बैच निकला। 1964 में ङ्क्षहदी विभाग स्वतंत्र विभाग के रूप में सामने आया। 18 साल से विभाग में ङ्क्षहदी अनुवाद में स्नातकोत्तर डिप्लोमा चल रहा है। विभाग ने 2012 में एमए ङ्क्षहदी में अनुवाद का कोर्स भी शुरू किया है।
भक्तिकाल के साहित्य
हिंदी विभाग की पहचान भक्तिकाल के साहित्य से बनी। 1980 तक यह विभाग भक्तिकाल का केंद्र बना रहा। प्रो. एचएल शर्मा, प्रो. गोवर्धन नाथ (जीएन) शुक्ल, प्रो. विश्वनाथ शुक्ल, प्रो. शिवशंकर शर्मा, प्रो. गिरधारी लाल शास्त्री, प्रो. मलिक मोहम्मद आदि ने इसी क्षेत्र में काम किया। प्रो. मलिक ने प्रो. जीएन शुक्ल के अंडर में आलवार पर पीएचडी की। आलवार तमिल कवि व संत थे। उनके पदों का संग्रह 'दिव्य प्रबंध Ó कहलाता है जो 'वेदोंÓ के तुल्य माना जाता है । विभागाध्यक्ष रहे प्रो. कुंवरपाल ङ्क्षसह को प्रगतिशील आंदोलन के लिए जाना जाता है। उन्होंने गद्य साहित्य में उपन्यास की नई विधा पर शोध किया। एएमयू पहले पद्य पर ही काम होता था। उनके आने के बाद गद्य पर काम होने लगा। प्रो. प्रदीप सक्सेना ने आलोचना पर काम किया। नव जागरण पर उनकी पुस्तक भी आईं। प्रो. अब्दुल आलिम ने जाने माने कवि नजीर अकबराबादी पर पहली पीएचडी की । प्रो. आलिम के अनुसार उर्दू साहित्य का इतिहास जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय व वनस्थली यूनिवर्सिटी में पढ़ाया जाता था। यहां हमने इसकी शुरुआत की। उर्दू व ङ्क्षहदी को निकट लाने का यह एक प्रयास था।
हिंदी विभाग ने छात्रों को केवल शिक्षित ही नहीं किया, बल्कि सामाजिक संस्कृति भी विकसित करने की कोशिश की। यहां जाति धर्म पर बात नहीं हुई। गोवर्धन नाथ शुक्ल को उत्तर भारत का बल्लाभाचार्य कहा जाता था। उन्होंने विभाग के लिए बहुत कुछ किया।
प्रो. रमेश चंद्र, अध्यक्ष हिंदी विभाग एएमयू