असहाय बुजुर्गों का संबल बना वृद्धाश्रम, जहां रुके हुए जीवन को मिलती है रफ्तार Aligarh news
पूरा जीवन कड़ी मेहनत करके एक-एक पाई बच्चों पर खर्च कर देने वाले को बुढ़ापे में घर में आसरा न मिले या फिर बुढ़ापे में कोई देखरेख करने वाला न हो तो शायद निराशा जीने की हिम्मत तोड़ती है। लगता है जिंदगी ठहर गई है।
प्रवीण तिवारी, अलीगढ़ः पूरा जीवन कड़ी मेहनत करके एक-एक पाई बच्चों पर खर्च कर देने वाले को बुढ़ापे में घर में आसरा न मिले या फिर बुढ़ापे में कोई देखरेख करने वाला न हो तो शायद निराशा जीने की हिम्मत तोड़ती है। लगता है जिंदगी ठहर गई है। सब कुछ खोने जैसे प्रतीक होता है, ऐसे में फिर से कोई सहारा बन जाए तो राह भी नजर आने लगती है। हालातों से लड़ने का हौंसला मिलता है। अपनोंं से अलग अपनों जैसे प्यार अलीगढ़ के वृद्धाश्रम में 90 बुजुर्गों को मिल रहा है। जिला मुख्यालय से करीब 40 किमी दूर कस्बा छर्रा स्थित असर्फी ग्रामोद्योग संस्थान पर संचालित आवासीय वृद्धाश्रम में निराश वृद्धोंं के जीवन को रफ्तार मिली हैैै। इनके दिन व रात अब भजन-कीर्तन और ईश्वर के ध्यान में कटते हैं। जिंदगी हंसी-खुशी कट रही है।
योग से होती है दिन की शुरूआत
वृद्धाश्रम की वार्डन गिरजेश कुमारी यादव बताती हैं कि आश्रम में इस वक्त कुल 90 वृद्धजन रह रहे हैं। इनमें चार दंपति भी हैं। शासन द्वारा सभी के खाने-पीने, मनोरंजन की व्यवस्था है। सुबह योगासन की क्लास लगती है। अधिकांश बुजुर्गों को वृद्धावस्था पेंशन भी मिलती है। पांच साल से आश्रम का संचालन हो रहा है। इस दौरान कुछ वृद्धजनों की स्वाभाविक मौतें भी हुईंं, जिनका आश्रम ने ही धार्मिक रीति-रिवाजों के मुताबिक अंतिम संस्कार कराया है। कोविड-19 जैसी महामारी के बीच भी आश्रम का कोई भी वृद्ध इसकी चपेट में नहीं है। स्वास्थ्य विभाग की ओर से सभी की समय-समय पर जांच भी होती रहती है तथा कैंप लगाकर दवा का वितरण कराया जाता है।
दिन-रात सेवा में लगे रहते हैं कर्मचारी
जिंदगी के आखिरी छोर पर पहुंचे लोगों की सेवा के लिए वृद्धाश्रम एक ऐसा स्थान है, जहां उन्हैं आश्चर्यजनक रूप से नई जिंदगी में लौटाया जा सकता है। आश्रम में निवासरत बुजुर्गों की सेवा व देखभाल करने वाले कर्मचारी दिन और रात तैयार रहते हैं। सुबह बिस्तर से उठाने, नित्यक्रियाएं कराने, नाश्ता व भोजन, गर्मी के मौसम में छाया व खुली हवा तथा जाड़े में उन्हैं धूप का आनंद दिलाने से लेकर हर प्रकार की मदद करना उनका नियमित लक्ष्य बना हुआ है। कुछ वृद्ध उम्र के आखिरी पड़ाव पर इतने लाचार हो चुके हैं, कि आश्रम के सेवादार परिवार के एक सदस्य की तरह उन्हैं अपने हाथों से खाना व दैनिकचर्या के सभी कार्य कराते हैं।
एक दूसरे का बने सहारा
किसी का साथ घर वालों ने नहीं दिया, तो कोई जिंदगी के आखिरी वक्त लावारिस हो चुका था। समाजकल्याण विभाग द्वारा संचालित आवासीय वृद्धाश्रम पर अपना एकांंकी जीवन काट रहे वृद्धजनों की दिनचर्या अखबार से शुरू होकर टीवी देखने में ही व्यतीत होती है। इन वृद्धजनों ने जहां एक ओर बच्चों के लालन-पालन व जीवन संवारने में अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया। अब वही बुजुर्ग लाचारी में अपने अंतिम पड़ाव को दूसरों के ऊपर निर्भर होकर गुजारने को मजबूर हैं। इनमें कुछ बुजुर्गों ने जिस प्रकार कड़ी मेहनत करते हुए अपना सारा जीवन परिवार को जोड़ कर संस्कार देने में गंवा दिया, आज वही औलाद द्वारा दुत्कारे जाने पर अपनों से दूर बेटे-बहू की परवरिश एवं नाती-पोतों की किलकारियां सुनने को तरस रहे हैं। उनके अनुसार आज बेटे-बहू बुढापे का सहारा एवं नाती-पोते हंसी खुशी के साथ समय काटने के लिए पास होने चाहिए थे। वही बुजुर्ग कोसों दूर दूसरों के सहारे पर जी रहे हैं। समय गुजारने का कोई अन्य साधन न होने की स्थिति में ये बुजुर्ग अधिकतर टीवी के सामने सत्संग व धार्मिक कार्यक्रम देखने व कभी-कभी आश्रम की बागवानी आदि को सजाने व संवारने में व्यतीत कर अपना समय गुजार लेते हैं तथा एक दूसरे से अपने मन की बात कहकर दिल का बोझ हल्का कर लेते हैं।
उत्सव मनाकर निजी खुशियों में किया शामिल
आश्रम में रहने वाले बुजुर्गों को देखकर लोगों की धारणा भी बदल रही है। आश्रम पर आए दिन लोग अपने निजी कार्यक्रम व उत्सव मनाने आते हैं। पिछले कुछ महीनों में आश्रम पर क्षेत्र के विभन्न लोगों ने अपने बच्चों के जन्मदिवस, शादी की सालगिरह व अन्य महोत्सव वृद्धों के बीच मना कर उन्हैं अपनी खुशियों में शामिल किया है। बदले में ढेरों आशीर्वाद भी लिया है। ऐसे लोगों में उच्चपदस्थ अधिकारी भी शामिल हैं।