बुढ़ापे में वृद्धाश्रम को अर्पण, मरने पर श्राद्ध व तर्पण Aligarh news
जर्जर शरीर हाथ में छड़ी कांपती गर्दन व धुंधली आंखों में मायूसी। हर समय गेट पर टकटकी। हर आहट इनके हृदय में हूक सी पैदा करती है।
विनोद भारती, अलीगढ़ । जर्जर शरीर, हाथ में छड़ी, कांपती गर्दन व धुंधली आंखों में मायूसी। हर समय गेट पर टकटकी। हर आहट इनके हृदय में हूक सी पैदा करती है। कोई आए तो उम्मीद सी बंधती है, मगर फिर निराश हो जाते हैं। यह नजारा छर्रा के आवासीय वृद्धाश्रम का है। श्राद्ध पक्ष में पूर्वजों का तर्पण करने वाली औलाद बुजुर्ग मां-बाप को यहां छोड़ गईं। इनमें कुछ तंज के मारे हैं, कुछ मारपीट कर घर से निकाले गए हैं। श्राद्ध पक्ष में ऐसे बुजुर्गों की कहानी, उनकी जुबानी...
काश बेटा कहे, मां तुम घर चलो
83 वर्षीय साहब कुमारी के कूल्हे में चोट क्या लगी, बेटे-बहू पर बोझ बन गईं। वे बताती हैं कि बेटा तो अलीगढ़ ही छोड़कर बुलंदशहर जा बसा। बीमार होने पर मुझे आश्रम में छोड़ गया। कुछ पल शांत हुईं, फिर बोलीं, इकलौता बेटा है। सबकुछ उस पर न्योछावर कर दिया। बहू ने भी आते ही रंग दिखा दिए। काश एक दिन बेटा कहे-'मां तुम घर चलो'।
पांच बेटों की लावारिस मां
छर्रा के गांव सुनपहर की 70 वर्षीय गंगा देवी को तो वृद्धाश्रम में चार साल हो गए। इनके पांच बेटे हैं। एक बेटा मानसिक रूप से अस्वस्थ है। चार बेटे अलग-अलग रहते हैं। बूढ़ी मां के लिए किसी के पास दो रोटी नहीं। बहुएं गाली देती थीं। मारपीट करती थीं। फिर घर से निकाल दिया। ऐसी औलाद किसी मां-बाप के घर में पैदा न हो।
धोखे से कब्जा ली जमीन
75 वर्षीय लालाराम दादों के गांव अहमदपुर के हैं। चार बेटे हैं, जिन्हें पालने के लिए मजदूरी की, मगर वे बूढ़े बाप को रख न सके। यह कहते हुए लालाराम का गला भर आया। बोले, बहुओं के आने के बाद तो वे बोझ बन गए। आए दिन के तानों से परेशान होकर गांव में अलग ठिकाना बनाकर जिंदगी के आखिरी दिन काटने लगा। पांच बीघा जमीन थी, जिसे एक बेटे ने कब्जा लिया। अन्य बेटे भी जो मिला झपट ले गए। कुछ नहीं बचा तो यहां आ गए।
बेटों के लिए छोड़ दिया घर
इगलास के गांव गुड़वा निवासी 70 वर्षीय राजपाल सिंह के आश्रम में आने की वजह कुछ अलग है। दो बेटे व तीन बेटियां हैं। एक बेटे को छोड़कर सबकी शादियां कीं। 20 साल पूर्व एक हादसे में पैर कट गया। चार साल पहले पत्नी रामवती को लकवा मार गया। बीमारी में मकान बिक गया। हम दोनों को ही देखभाल की जरूरत थी। बेटे बाहर काम धंधा करते हैं। ऐसे में हम दोनों यहां आ गए।
अकेला छोड़ गया बेटा
पला कस्तली के 60 ïवर्षीय चंद्रपाल ने बताया कि पत्नी की 1996 में मौत हो गई। एक लड़का व दो लड़की हैं। हलवाई का काम करके तीनों की शादी की। बेटा रोजी-रोटी के लिए दिल्ली चला गया। गांव में खुद का मकान भी नहीं था। ऐसे में आश्रम आना पड़ा।
इकलौता वृद्धाश्रम
जिले के इस इकलौते वृद्धाश्रम का संचालन अशर्फी ग्र्रामोद्योग संस्थान करता है। समाज कल्याण विभाग से अनुदान राशि मिलती है। समाजसेवी भी मदद करते हैं। वार्डन गिर्जेश यादव व असिस्टेंट वार्डन शशिदेवी समेत करीब 15 लोगों का स्टाफ है। आश्रम में पप्पू नामक कर्मचारी बुजुर्गों की गंदगी किसी बेटे की तरह साफ करता है।
वृद्धाश्रम में मनाते हैं सभी त्योहार
वृद्धाश्रम संचालक अशर्फीलाल का कहना है कि आश्रम में करीब 90 बुजुर्ग हैं। इनमें पांच-छह व्हील चेयर पर आश्रित हैं। पांच नेत्र दिव्यांग हैं। सभी को हर संभव सुविधा देने का प्रयास रहता है। नियमित योग कक्षाएं लगती हैं। तीज त्योहार मनाते हैं, ताकि घर की कमी महसूस न हो।