मैं नहीं, मेरी बहू लड़ेगी चुनाव Aligarh News
पंचायत चुनाव कब होंगे? इसकी घोषणा सरकार ने भले अभी नहीं की है दो बच्चों से अधिक संतान होने पर प्रत्याशी के अयोग्य घोषित होने की चर्चा ने गांवों में अभी से चुनावी माहौल बना दिया है।
अलीगढ़ [सुरजीत पुंढीर]: पंचायत चुनाव कब होंगे? इसकी घोषणा सरकार ने भले अभी नहीं की है, लेकिन दो बच्चों से अधिक संतान होने पर प्रत्याशी के अयोग्य घोषित होने की चर्चा ने गांवों में अभी से चुनावी माहौल बना दिया है। अधिकतर लोगों की जुबां पर बस इसी प्रस्तावित नियम की बातें हैं। महीनों से तैयारी में लगे तीन बच्चों के माता-पिता के अरमानों पर तो मानों इन संभावनाओं ने पानी फेर दिया हो, पर वे अभी से विकल्प तलाशने लग गए हैं। कोई भाई के बेटे को तैयार कर रहा है तो कोई अपने बेटे की पत्नी को। इनके विरोधी गुट लड्डू बांट रहे हैैं। गांव के एक सज्जन कहते हैं कि सरकार यह नियम लागू करे तो बहुत अच्छा है। कम से कम उम्मीदवारों की भीड़ तो कम हो जाएगी। बड़े परिवार वाले कई नेताओं का कॅरियर शुरू होने से पहले ही खतम हो जाएगा।
वसूली पर लगाम नहीं
मुखिया अफसर अगर किसी काम की ठान लें तो उस विभाग में बदलाव तय है, लेकिन अगर कोई यह सोच ले कि उसे काम से नहीं, कमाई से मतलब है तो वहां विनाश होने में भी समय नहीं लगता। ऐसा ही कुछ हाल है इन दिनों शहर में सुनियोजित विकास की जिम्मेदारी संभालने वाले विभाग का। एक दो अफसरों को छोड़ दें तो यहां दशकों से कोई ऐसा मुखिया नहीं आया, जिसने काम के बारे में सोचा हो। यहां अफसरों का मिशन केवल वसूली का रहता है। विकास कार्यों की जगह अवैध निर्माण पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। विभाग खोखला हो चुका है। सड़क, नाली व पार्क पर काम कराना तो दूर, वेतन तक निकलना मुश्किल है। विभाग के पास अपना कोई काम नहीं है, पूरी टीम वसूली में लगी है। एक-एक निर्माण को गिद्ध नजरों से तलाशा का जाता है, लेकिन इसमें पिस तो जनता ही रही है।
सियासी वादे नहीं, विकास चाहिए
कॉरिडोर पर सियासत किसी से छिपी नहीं है। कुछ नेताओं ने बेचारे किसानों को ऐसा बरगलाया कि वो बिना सोचे समझे उनकी बातों में आ गए। जिन किसानों के आंखों में विकास के सपने थे, वे चार गुना मुआवजा व सरकारी नौकरी की उम्मीद करने लगे। प्रशासन को शांति कायम रखने के लिए कॉरिडोर के विस्तारीकरण का फैसला बदलना पड़ा। जिले के बड़े साहब ने घोषणा की कि अब इन किसानों से जमीन नहीं चाहिए। विस्तारीकरण की जरूरत पड़ी तो अन्य तहसीलों में खाली पड़ी सरकारी जमीन को ले लेंगे। इस घोषणा के बाद अधिकांश किसान उन नेताओं को कोसने लगे, जिन्होंने विरोध-प्रदर्शन की योजना बनाई थी, लोगों को राजनीति की नहीं, विकास की जरूरत थी। अब कुछ किसानों ने ऐसे लोगों को नजरंदाज कर प्रशासन से बात कर ली है। एक किसान का कहना है कि प्रशासन को प्रोजेक्ट का ठिकाना नहीं बदलना चाहिए। बीच का रास्ता निकलना चाहिए।
सिस्टम बीमार है, इसका इलाज कीजिए
कोरोना काल के दौरान सरकारी अस्पतालों की सुविधाओं में सुधार के सरकार ने पूरे प्रयास किए हैं। बेड की संख्या हो या वेंटिलेटर की सुविधा। सभी में बड़े बदलाव हुए। सरकार भी हर जिले में करोड़ों रुपये इसी पर खर्च कर रही हैं। अलीगढ़ में भी राज्य वित्त आयोग से मेडिकल उपकरण खरीदने के लिए पांच करोड़ रुपये आ चुके हैैं। इसके बाद भी जिम्मेदार लोग सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं। अब सौ बेड के अस्पताल को ही देख लीजिए। यहां खामियों की शिकायतें आम हो गई हैं। कंट्रोल रूम में कभी खाने की तो कभी सफाई की शिकायतें पहुंच रही हैैं। बड़े साहब भी सबसे अधिक समीक्षा यहीं की करते हैं। इसके बाद भी सुधार नहीं हो रहा। यहां की व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए प्रशासन को अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ेगी। नोडल अधिकारी को रोज यहां का निरीक्षण करना होगा, तभी कुछ हो सकता है।