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अलीगढ़ में नामांकन का जलसा खत्‍म, सूरमाओं के बाहर होने से चढ़ा सियासी पारा

UP Assembly Elections 2022 अलीगढ़ में10 फरवरी को मतदान है। नामांकन के दौरान राजनीति के सूरमाओं पर सभी की निगाह टिकी रहीं। अंतिम समय तक सपा के ठा. राकेश सिंह के नामांकन को लेकर सियासी पारा चढ़ा हुआ था। सूरज की तपिश के साथ वो कम होता चला गया।

By Anil KushwahaEdited By: Published: Sat, 22 Jan 2022 07:16 AM (IST)Updated: Sat, 22 Jan 2022 07:48 AM (IST)
अलीगढ़ में नामांकन का जलसा खत्‍म, सूरमाओं के बाहर होने से चढ़ा सियासी पारा
नेताओं के लिए चुनाव किसी उत्सव से कम नहीं होता है।

राज नारायण सिंह, अलीगढ़ । UP Assembly Elections 2022 नामांकन का जलसा खत्म हो गया है। अब प्रचार की तैयारी है। नेताओं के लिए चुनाव किसी उत्सव से कम नहीं होता है। उनकी वर्षों की मेहनत व तपस्या होती है। इस उत्सव में इस बार तीन दिग्गज बरौली विधायक ठा. दलवीर सिंह, पूर्व विधायक ठा. राकेश सिंह और पूर्व विधायक जमीरउल्लाह नहीं होंगे। इन दिग्गजों पर अब सबकी नजर हैं। अलीगढ़ की राजनीति में इन तीनों के सियासी मायने रहे हैैं। ये तीनों जिन विधानसभा क्षेत्रों से होते थे, मुकाबला रोमांचक हो जाया करता था।

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अलीगढ़ में 10 फरवरी को मतदान

अलीगढ़ में10 फरवरी को मतदान है। नामांकन के दौरान राजनीति के सूरमाओं पर सभी की निगाह टिकी रहीं। अंतिम समय तक सपा के ठा. राकेश सिंह के नामांकन को लेकर सियासी पारा चढ़ा हुआ था। सूरज की तपिश के साथ वो कम होता चला गया। इन तीनों राजनीतिक सूरमाओं को देखा जाए तो सबसे पुराने दलवीर ङ्क्षसह हैं। इनकी तीन दशक से भी अधिक समय की राजनीतिक पारी है। डीएस कालेज से छात्रसंघ से राजनीति की शुरुआत की थी। ब्लाक प्रमुख के चुनाव से राजनीति में कूदे और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। बरौली विधानसभा क्षेत्र को चुनावी जमीन बनाई। 1991 में पहली बार जनता दल से चुनाव जीतकर विधानसभा में पहुंचे। 1996 में कांग्रेस से और 2012 में रालोद से जीते। 1996 में चुनाव जीतने के बाद सूबे में राज्य मंत्री भी रहे। 2017 में भाजपा से विधायक चुने गए। इस बार बरौली विधायक अपने नाती अजय सिंह के लिए टिकट की मांग कर रहे थे, उन्हें टिकट नहीं मिला। इसलिए बरौली में सियासी गर्माहट पहले से कम होगी।

ठाकुर राकेश सिंह का सियासी सफर

पूर्व विधायक ठा. राकेश ङ्क्षसह ने सपा से सियासत की शुुरुआत की थी। 2004 के करीब उनकी पार्टी में खूब सक्रियता रही। सपा युवजन सभा में भी पद रहा। 2012 में छर्रा विधानसभा क्षेत्र से पहली बार मैदान में उतरे और चुनाव जीतकर आए। सत्ता में राकेश ङ्क्षसह की धमक देखते ही बनती थी। इस बार चुनाव की तैयारी में उन्होंने कसर नहीं छोड़ी थी, मगर पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया। दो दिन पहले बरौली विधानसभा से सपा से मैदान में उतरने की चर्चा जोरों पर हुई थी, मगर उसमें भी दम नहीं निकला।

जमीरउल्‍लाह खान का सियासी सफर

पूर्व विधायक जमीरउल्लाह खान ने भी सपा से राजनीतिक सफर की शुरुआत की। 2004 में सपा के महानगर अध्यक्ष रहे। 2006 में सपा से महापौर का चुनाव लड़े, मगर शिकस्त मिली। 2007 में शहर सीट से विधायक बने। 2012 में कोल विधानसभा से चुनाव जीते। 2017 में सपा ने टिकट नहीं नहीं दिया तो निर्दलीय लड़े। इसमें हार मिली थी। इस बार भी उन्होंने कोल विधानसभा सीट से सपा से मजबूती से दावेदारी की थी, मगर टिकट नहीं मिला।


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