Municipal Corporation Aligarh : स्वच्छता के मानकों को दगा दे रहे संसाधन
शहर को स्वच्छ रखने के मानक निर्धारित हैं नियम भी बेशुमार बने हुए हैं। लेकिन इन नियमों और मानकों का पालन करने और कराने में जिम्मेदार महकमे कतरा रहे हैं। न बजट की कमी है न ही संसाधनों की खरीद में अफसर कंजूसी दिखा रहे हैं।
अलीगढ़, जागरण संवाददाता। शहर को स्वच्छ रखने के मानक निर्धारित हैं, नियम भी बेशुमार बने हुए हैं। लेकिन, इन नियमों और मानकों का पालन करने और कराने में जिम्मेदार महकमे कतरा रहे हैं। न बजट की कमी है, न ही संसाधनों की खरीद में अफसर कंजूसी दिखा रहे हैं। हर साल करोड़ों रुपये के संसाधन खरीद लिए जाते हैं। इस साल भी खरीदारी के टेंडर हुए हैं। फिर भी ये शहर स्वच्छता की कसौटी पर खरा नहीं उतर पा रहा। 10 हजार की आबादी पर 28 सफाई कर्मचारियों के वर्षों पुराने मानक भी पूरे नहीं हो पा रहे। स्थायी भर्ती पर रोक लगी है, आउटसोर्सिंग पर कर्मचारी आवश्यकता के अनुसार रखे नहीं जा रहे। उपकरणों की खरीद पर ही अफसरों का जोर है। जबकि, पूर्व में खरीदे गए उपकरण जंग खा रहे हैं। विशेष अवसरों पर ही इन्हें निकाला जाता है। बीते साल खरीदे गए हथगाड़ी और रिक्शे लापता हैं, कई तो कबाड़ियों के यहां कट गए। जरूरत ही नहीं थी तो इन्हें खरीदा ही क्यों? ये सवाल उठ रहे हैं। सवाल उठना स्वाभिक है। इतनी कवायद करने और बजट खपाने के बाद भी ये शहर इंदौर न बन सका।
सफाई पर हर माह पांच करोड़ खर्च
सफाई व्यवस्था पर हर माह चार से पांच करोड़ रुपये खर्च होते हैं। इसमें सफाई कर्मचारियों का वेतन, उपकरण आदि शामिल है। इसके अलावा समय-समय पर आवश्यकता के अनुसार संसाधनों खरीदारी होती रहती है। 15वें वित्त आयोग के खाते से भी भुगतान हो रहा है। बावजूद इसके सफाई व्यवस्था अधूरी ही रहती है। वार्डों में साफ-सफाई के लिए कर्मचारियों की कमी बनी हुई है। सड़कों पर झाड़ू लगाते कर्मचारी अब नजर नहीं आते, प्रतिदिन नालियां साफ नहीं हो रहीं। घरों से कूड़ा उठाने तक कर्मचारी गली-मोहल्लों में नहीं पहुंच पाते। अधिकांश लोगों ने प्राइवेट कर्मचारी लगाए हुए हैं। कर्मचारी नेता कहते हैं आबादी के अनुसार सफाई व्यवस्था के जो मानक तय किए गए थे, वे वर्षों पुराने हैं। तब इतनी आबादी नहीं थी। अब आबादी करीब 13 लाख हो चुकी है। शहर का दायरा 42 से बढ़कर 68 वर्ग किलोमीटर तक फैल गया। जब कर्मचारी ही नहीं है, तो मशीन और उपकरण चलाएगा कौन? सारसौल स्थित वेस्ट सब स्टेशन पर 2.25 रुपये की फिक्सड कांपैक्टर ट्रांसमिशन मशीन धूल फांक रही है। धूल साफ करने की रोड स्वीपिंग मशीनें कभी-कभार ही सड़कों पर नजर आती हैं। करोड़ों रुपये के कूड़ेदानों का उपयोग नहीं हो पा रहा। फुटपाथ पर रखे स्टील के कूड़ेदान उखड़ गए। अफसरों ने अफसोस तक न जताया। ऐसे संसाधनों को खरीदने से क्या लाभ, जिनका उपयोग ही नहीं हो पा रहा।
कूड़ा निस्तारण पर खर्च
3.30 करोड़ रुपये मैटेरियल रिकवरी फेसिलिटी सेंटरों पर
2.25 करोड़ रुपये फिक्सड कांपैक्टर ट्रांसमिशन मशीन पर
75 लाख रुपये कूड़ा उठाने की हथगाड़ियाें पर
5 करोड़ रुपये आटो टिपर वाहनों पर
1.25 करोड़ रुपये कूड़ेदानों पर
खास बात
आबादी के मुताबिक नहीं है सफाई कर्मियों की नियुक्ति
बंद है स्थायी भर्ती, आउटसोर्सिंग कर्मियों के भरोसे नगर निगम
एक हजार और कर्मचारी भर्ती करने की उठ रही मांग
ये है मानक
10,000 की आबादी पर 28 सफाई कर्मियों के पुराने मानक
13 लाख की आबादी पर होने चाहिए 3640 कर्मचारी, हैं 2316
एक नजर में
450 मीट्रिक टन कूड़ा प्रतिदिन सड़कों पर बनता मुसीबत
200 मीट्रिक टन कूड़े से होता है खाद उत्पादन
10 लाख मीट्रिक टन कूड़ा पड़ा है प्लांट में
104 कूड़ा कलेक्शन प्वाइंट हैं शहर में
150 छोटे-बड़े वाहन हैं नगर निगम के बेड़े में
2316 स्थायी व अस्थायी कर्मचारी हैं निगम में
1600 टन खाद एटूजेड प्लांट में हर साल होती है तैयार
आउटसोर्सिंग से नियुक्ति
सफाई कर्मचारी, 960
जलकल, 226
वर्कशाप, 208
नाला गैंग, 170
स्टोर विभाग, 60
कंप्यूटर आपरेटर, 33
पथ प्रकाश, 32
उद्यान विभाग, 27
निर्माण विभाग, 19
गृहकर, 11
स्मार्ट सिटी, 3
मैं भी स्वच्छता पहरी
हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है कि अपने घर के साथ शहर को भी स्वच्छ रखे। मैं संकल्प लेता हूं कि स्वच्छता की हर मुहिम में प्रतिभाग करुंगा। दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करता रहुंगा।
प्रणव शर्मा, व्यापारी