Move to Jagran APP

'लक्ष्‍मी' के दूत बने एमआर, डाक्टरों व दवा कंपनियों के गठजोड़ में उलझ गई जेनरिक दवा

सरकार ने गरीबों को अच्‍छा इलाज मिलेे इसके लिए जेनरिक दवाओं पर जोर दिया। हर शहर में जन औषधि केंद्र खोले गए लेकिन डाक्‍टरों व दवा कंपनियों की गठजोड़ के चलते इन दवाओं की सार्थकता बेकार हो रही है। इसे बेचने में दुकानदार भी रूचि नहीं दिखा रहे हैं।

By Anil KushwahaEdited By: Published: Sat, 25 Jun 2022 12:58 PM (IST)Updated: Sat, 25 Jun 2022 01:45 PM (IST)
'लक्ष्‍मी' के दूत बने एमआर, डाक्टरों व दवा कंपनियों के गठजोड़ में उलझ गई जेनरिक दवा
जेनरिक दवा लिखने में न तो डाक्टरों की रुचि है, न बेचने में दुकानदारों की।

अलीगढ़, जागरण संवाददाता। रोजमर्रा की वस्तुएं महंगी होने से लोगों की दुश्वारियां पहले ही कम नहीं हैैं, महंगी जीवनरक्षक दवाएं मुश्किलें और बढ़ा रही हैं। सरकार ने सस्ती जेनरिक दवा के लिए जन औषधि केंद्र खुलवाए, मगर जेनरिक दवा लिखने में न तो डाक्टरों की रुचि है, न बेचने में दुकानदारों की। इसका कारण ब्रांडेड दवा पर कंपनी और डाक्टर ही नहीं, मेडिकल रिप्रजंटेटिव (एमआर), थोक व फुटकर दवा विक्रेताओं को तगड़ा मुनाफा है। जेनरिक दवा इस गठजोड़ में उलझकर रह गई हैं। ब्रांडेड के सापेक्ष 90 प्रतिशत या उससे भी कम कीमत होने के बावजूद जन औषधि केंद्रों पर सन्नाटा पसरा रहता और मेडिकल स्टोरों पर अपार भीड़। कम से कम गरीब व जरूरमंद रोगियों के लिए डाक्टर जेनरिक दवा या साल्ट का नाम लिखें, इसके लिए किसी स्तर पर प्रयास नहीं हो रहे हैैं। चर्चा है कि डाक्टरों के ब्रांडेड दवा लिखने के पीछे दवा कंपनियों से मिलने वाले रहे महंगे उपहार व अन्य प्रलोभन हैं।     

loksabha election banner

साल्ट का नाम लिखने में समस्या

महंगी दवा रोगियों का दर्द भले ही बढ़ा रही हों, मगर डाक्टरों के लिए तो दवा कंपनियों के प्रतिनिधि यानी एमआर, लक्ष्मी के दूत बन गए। शहर का कोई ऐसा हास्पिटल नहीं होगा, जहां हाथ में बैग और सूट, बूट व गले तक कसी टाई पहने चार-पांच एमआर ओपीडी के समय डाक्टर कक्ष के बाहर व अंदर न हो। ओपीडी के बीच ही रोगी देखने के साथ ही डाक्टर साहब एमआर से भी दवा के फायदे समझ रहे होते हैं। कुछ समय बाद उनमें से कुछ दवा हास्पिटल में ही अवैध रूप से संचालित मेडिकल स्टोर या आसपास खुली दुकानों पर उपलब्ध हो जाती है। सूत्रों की मानें तो दवा लिखने का टारगेट होता है, उसके अनुसार ही दवा कंपनी से महंगे उपहार व देश-विदेश में घूमने के लिए हालीडे पैकेज दिए जाते हैं। शायद यही वजह डाक्टरों को दवा का साल्ट या जेनरिक नाम लिखने से रोके रखती है। कुछ डाक्टर ही रोगियों की आर्थिक स्थिति को देखते हुए कहने पर जेनरिक दवा लिखते हैं, इनकी संख्या नाममात्र की है। ब्रांडेड दवा लिखने में सरकारी चिकित्सक भी पीछे नहीं है। पिछले दिनों एडी हेल्थ ने भी बाहर की दवा न लिखने के सख्त निर्देश चिकित्सकों को दिए हैं। 

कोड वर्ड में लिखी जा रही दवा

मीनाक्षी पुल स्थित जन औषधि केंद्र के संचालक आरके शर्मा ने बताया कि डाक्टर अपने पर्चे पर प्रस्क्रिप्शन व दवा का नाम भी अस्पष्ट लिखते हैं। उनकी लिखावट को समझना आसान नहीं होता है। उसे या तो डाक्टर स्वयं समझ सकते है या फिर संबंधित मेडिकल स्टोर संचालक। जब से जेनरिक दवा के लिए जन औषधि केंद्र और जेनरिक दवा के आउटलेट्स खुलने शुरू हुए हैं, लिखावट और खराब हो गई है। उसे पढ़ा नहीं, बल्कि समझा ही जा सकता है। कुछ डाक्टर तो कोड वर्ड में दवा का नाम लिख रहे हैं। कारण ये है कि काफी ग्राहक अब दवा का पर्चा लेकर जन औषधि केंद्र पर पहुंचने लगे हैं। केंद्र संचालक ब्रांडेड दवा का साल्ट पता करके जेनरिक दवा दे देते हैं। अस्पष्ट लिखावट के कारण कई बार ग्राहक को लौटाना पड़ता है।

इनका कहना है

सभी डाक्टरों को सख्त निर्देश दिए हैं कि बाहर की दवा बिल्कुल न लिखें। जो दवा अस्पताल में नहीं, वे भी जन औषधि केंद्र के लिए लिखी जाएं। मैं स्वयं इस पर नजर रख रही हूं।

ईश्वर देवी बत्रा, सीएमएस जिला अस्पताल


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.