अलीगढ़ में तीन बेटियों की मां ने दी पति की चिता को मुखाग्नि, बीमारी से हुई मौत
पक्की सराय नहीं में आशा के रूप में कार्यरत सुलेखा वर्मा के पति मनोज वर्मा की मंगलवार को बीमारी के चलते मृत्यु हो गई। आशा कभी पति के शव को देखते ही तो कभी 12 साल क़ी भानवी नौ साल की वंशिका और पांच साल की आशी को।
अलीगढ़, जेएनएन। दूसरों के इलाज में सहयोग कर आशा क़ी किरण दिखाने वाली आशा पर जब खुद विपदा आई तो परिचित ही नहीं नाते-रिश्तेदारों से सहयोग न मिलने के कारण निराशा छा गई। एक तरफ पति क़ी लाश तो दूसरी तरफ तीन छोटी - छोटी बेटियां। बच्चियों को संभाले या पति की लाश को। अंतिम संस्कार के लिए पैसे नहीं थे। मां और बच्चों के विलाप से मानवता भी कहीं सिसकती नजर आई। कोई कंधा तक देने को तैयार नहीं हुआ। ऐसे में सामाजिक संस्था मानव उपकार व स्वास्थ्य विभाग की चिकित्सक डाॅ. अशु सक्सेना ने पहल की। संस्था के सहयोग से देररात अंतिम संस्कार की व्यवस्था कराई गई। वहीं, पत्नी को समझाकर मुखाग्नि भी दिलवाई।
बीमारी से हुई मौत
पक्की सराय नहीं में आशा के रूप में कार्यरत सुलेखा वर्मा के पति मनोज वर्मा की मंगलवार को बीमारी के चलते मृत्यु हो गई। कोई बेटा था नहीं था, आशा कभी पति के शव को देखते ही तो कभी 12 साल क़ी भानवी ,नौ साल की वंशिका और पांच साल की आशी को। समझ में नहीं आ रहा क्या करे? किससे मदद मांगे क्योंकि सभी परिचितों ने मुंह मोड़ लिया तब रोते हुए अपनी डाक्टर दीदी अंशु सक्सेना का ख्याल आया औऱ रोते हुए आप बीती बताई कि लीवर औऱ किडनी खराब होने से पति की मौत हो गई है। मेरा कोई भी परिचित अंतिम संस्कार करने को तैयार नहीं है, मेरी मदद करें। डाॅ. अंशु तुरंत आशा कर्मी के घर पहुंची। यह देघखकर दंग रह गई कि किराए के मकान में रहने वाली आशा कर्मी की मदद को कोई तैयार नहीं। अतरौली निवासी देवर आया था, परंतु वह भी अपने भाई के अंतिम संस्कार क़ो राजी नहीं हुआ। डाॅ. अंशु ने बेबस सुलेखा के आंसू पौछे।
मानव उपकार ने की मदद
डाॅ. अंशु ने मानव उपकार संस्था के अध्यक्ष विष्णु कुमार बंटी क़ो फोन कर मामले से अवगत कराया कि महिला के पति का अंतिम संस्कार करने क़ो कोई तैयार नहीं हो रहा औऱ ना ही उन पर पैसे हें अतः आप अंतिम संस्कार कराने का कष्ट करें। विष्णु कुमार बंटी ने बताया कि कुछ देर बात ही हमने संस्था का शवयात्रा यान मृतक के पार्थिव शरीर लाने के लिए घर भेजा। उस समय काफी लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गई। कोई भी शव रखवाने को अंतिम संस्कार को राजी नहीं हुआ। डाॅ. अंशु ने वहां मौजूद लोगों क़ो खूब डांटा-फटकारा कि आप लोगों में इंसानियत मर गई है जो शव को यान में भी नहीं रखवा सकते। ऐसे में कुछ लोग आगे आए और शव को यान में रखवाया।
मुखाग्नि की बात पर फूट-फूटकर रोई सुलेखा
सुलेखा अपने पति के शव के साथ नुमाइश मैदान स्थित मुक्तिधाम में आईं। जहां पहले से मानव उपकार संस्था के अध्यक्ष विष्णु कुमार बंटी ने अपनी टीम के साथ अंतिम संस्कार की सारी व्यवस्था जुटा ली थीं। फिर समस्या यह आई कि अंतिम संस्कार कौन करे? देवर भी आगे के रीति-रिवाज की दुहाई देते हुए मुखाग्नि देने से इंकार कर दिया था। ऐसे में विष्णु कुमार बंटी व अन्य ने सुलेखा को समझाया कि महिला हर कार्य करने में सक्षम हैं, जब कोई राजी नहीं है तो आप क्यों नहीं अपने पति का अंतिम संस्कार करती। यह सुनकर सुलेखा फूट-फूटकर रोने लगी। बोली, जिसके साथ सात फेरे लिए, जीवन गुजारा, उसे अपने हाथों से कैसे जला दूं। यह मुझसे नहीं हो पाएगा। सभी को मालूम था कि एक पत्नी के लिए इससे कठिन कार्य दूसरा नहीं हो सकता। फिर भी, सुलेखा को समझा-बुझाकर मुखाग्नि दिलवाई गई। सुलेखा का अपने तो साथ छोड़ गए, मगर कुछ लोग देर तक तक जलती चिता के सामने मृतक की आत्म शांति के लिए प्रार्थना कर रहे थे, ये वे लोग थे, जिनका मृतक से कोई नाता था तो बस इंसानियत और मानवता कहा। इ मौके पर मानव उपकार संस्था के अशोक गुप्ता गोल्डी, मुकलेश कश्यप , नूतन राजपूत , मनोज कुमार, अवधेश कुमार आदि मौजूद थे।