कानून की गलियों में गुम हुए रिश्तेः जो कहते थे बिछड़ेंगे न हम कभी, बेवफा हो गए देखते-देखते
अग्नि के सात फेरे लेकर सात जन्मों तक साथ रहने के वादे भले ही किए जाते हैं, मगर अक्सर ये कसमें याद नहीं रहतीं।
लोकेश शर्मा, अलीगढ़। अग्नि के सात फेरे लेकर सात जन्मों तक साथ रहने के वादे भले ही किए जाते हैं, मगर अक्सर ये कसमें याद नहीं रहतीं। आपसी झगड़े और मतभेद पति-पत्नी के रिश्ते के बीच खाई खोदने लगते हैं। समय के साथ ये और गहरी होती जाती हैं। फिर, 'कानून की गलियोंÓ में ये लोग बरसों तक ठोकरें खाते हैं। कुछ संभल जाते हैं, पर बहुत बिछुड़ भी जाते हैं। परिवार न्यायालय के आंकड़े बताते हैैं कि पिछले साल 235 जोड़े तलाक लेकर अलग हो गए। 187 ने गिले-शिकवे मिटाकर एक सांग रहने का फैसला किया।
2283 मुकदमे निपटे : बीते साल 3407 वाद दायर हुए, इनमें दिसंबर तक 2283 निपट चुके हैैं। नौ जनवरी से 13 जून तक कोर्ट रिक्त रहीं। न्यायाधीश अजय कृष्ण की नियुक्ति के बाद लगातार साल के अंत तक सुनवाई चली। इस दौरान भरण पोषण भत्ता के 1335 वाद आए, जिनमें 739 निस्तारित हो चुके हैैं।
प्रमुख बातें
-2018 में न्यायालय के जरिए 235 जोड़ों ने लिया तलाक
-187 दंपती ने मतभेद भुलाकर साथ रहने का किया फैसला
- भरण पोषण के 1335 मामले में 739 का हुआ निस्तारण
2013 में पहला समझौता
परिवार अदालत की स्थापना दिसंबर- 13 में हुई थी। नौ दिसंबर को पहले दिन 40 मामले आए। जवां क्षेत्र की संतोष व उनके पति भूपेंद्र के दो साल से लंबित मामले में समझौता हो गया। यह सुलझने वाला पहला मामला बना। न्यायाधीश अनिल कुमार उपाध्याय ने दोनों को एक दूसरे का ख्याल रखने की नसीहत भी दी। फिर, दूसरी कोर्ट में लंबित छह हजार मामले भी यहां भेजे गए।
मीडिएशन सेंटर भी आते हैं
पति-पत्नी के रिश्ते में आई खटास दूर करने का मौका मीडिएशन सेंटर, परामर्श केंद्र में मिलता है। थाने में भी काउंसलिंग से विवाद निपटाए जाते हैैं। सुलह-समझौते के रास्ते बंद होने पर अदालत फैसला लेती है।
मुकदमों की स्थिति
माह वाद निस्तारण
जनवरी 259 21
फरवरी 213 कोर्ट रिक्त
मार्च 238 कोर्ट रिक्त
अप्रैल 257 कोर्ट रिक्त
मई 373 दो
जून 225 92
जुलाई 292 233
अगस्त 280 309
सितंबर 416 670
अक्टूबर 283 469
नवंबर 283 298
दिसंबर 288 189
एक और कोर्ट मिले
अलीगढ़ बार के पूर्व उपसचिव योगेश सारस्वत ने कहते हैैं कि मुकदमों की बड़ी संख्या देखते हुए एक और परिवार न्यायालय स्थापित होना चाहिए। इस संबंध में हाईकोर्ट को पत्र भी लिखा गया है।