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कानून की गलियों में गुम हुए रिश्तेः जो कहते थे बिछड़ेंगे न हम कभी, बेवफा हो गए देखते-देखते

अग्नि के सात फेरे लेकर सात जन्मों तक साथ रहने के वादे भले ही किए जाते हैं, मगर अक्सर ये कसमें याद नहीं रहतीं।

By Mukesh ChaturvediEdited By: Published: Wed, 09 Jan 2019 12:01 AM (IST)Updated: Wed, 09 Jan 2019 09:01 AM (IST)
कानून की गलियों में गुम हुए रिश्तेः जो कहते थे बिछड़ेंगे न हम कभी, बेवफा  हो गए देखते-देखते
कानून की गलियों में गुम हुए रिश्तेः जो कहते थे बिछड़ेंगे न हम कभी, बेवफा हो गए देखते-देखते

लोकेश शर्मा, अलीगढ़। अग्नि के सात फेरे लेकर सात जन्मों तक साथ रहने के वादे भले ही किए जाते हैं, मगर अक्सर ये कसमें याद नहीं रहतीं। आपसी झगड़े और मतभेद पति-पत्नी के रिश्ते के बीच खाई खोदने लगते हैं। समय के साथ ये और गहरी होती जाती हैं। फिर, 'कानून की गलियोंÓ में ये लोग बरसों तक ठोकरें खाते हैं। कुछ संभल जाते हैं, पर बहुत बिछुड़ भी जाते हैं। परिवार न्यायालय के आंकड़े बताते हैैं कि पिछले साल 235 जोड़े तलाक लेकर अलग हो गए। 187 ने गिले-शिकवे मिटाकर एक सांग रहने का फैसला किया।

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2283 मुकदमे निपटे : बीते साल 3407 वाद दायर हुए, इनमें दिसंबर तक 2283 निपट चुके हैैं। नौ जनवरी से 13 जून तक कोर्ट रिक्त रहीं। न्यायाधीश अजय कृष्ण की नियुक्ति के बाद लगातार साल के अंत तक सुनवाई चली। इस दौरान भरण पोषण भत्ता के 1335 वाद आए, जिनमें 739 निस्तारित हो चुके हैैं।

प्रमुख बातें

-2018 में न्यायालय के जरिए 235 जोड़ों ने लिया तलाक

-187 दंपती ने मतभेद भुलाकर साथ रहने का किया फैसला

- भरण पोषण के 1335 मामले में 739 का हुआ निस्तारण

2013 में पहला समझौता

परिवार अदालत की स्थापना दिसंबर- 13 में हुई थी। नौ दिसंबर को पहले दिन 40 मामले आए। जवां क्षेत्र की संतोष व उनके पति भूपेंद्र के दो साल से लंबित मामले में समझौता हो गया। यह सुलझने वाला पहला मामला बना। न्यायाधीश अनिल कुमार उपाध्याय ने दोनों को एक दूसरे का ख्याल रखने की नसीहत भी दी। फिर, दूसरी कोर्ट में लंबित छह हजार मामले भी यहां भेजे गए।

मीडिएशन सेंटर भी आते हैं 

पति-पत्नी के रिश्ते में आई खटास दूर करने का मौका मीडिएशन सेंटर, परामर्श केंद्र में मिलता है। थाने में भी काउंसलिंग से विवाद निपटाए जाते हैैं। सुलह-समझौते के रास्ते बंद होने पर अदालत फैसला लेती है।

मुकदमों की स्थिति

माह                        वाद             निस्तारण

जनवरी                  259                 21

फरवरी                   213                कोर्ट रिक्त

मार्च                       238                कोर्ट रिक्त

अप्रैल                     257                कोर्ट रिक्त

मई                        373                दो

जून                       225                92

जुलाई                   292                233

अगस्त                  280               309

सितंबर                 416                670

अक्टूबर                283                469

नवंबर                   283                298

दिसंबर                  288              189

एक और कोर्ट मिले

अलीगढ़ बार के पूर्व उपसचिव योगेश सारस्वत ने कहते हैैं कि मुकदमों की बड़ी संख्या देखते हुए एक और परिवार न्यायालय स्थापित होना चाहिए। इस संबंध में हाईकोर्ट को पत्र भी लिखा गया है।


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