अलीगढ़ जेल में घुल रही सौहार्द की मिश्री, इन बंदियों को देख हर कोई हैरान
जिस जिले में मामूली विवाद भी सांप्रदायिक टकराव की वजह बन जाता है उसी जिले का कारागार सांप्रदायिक सौहाद्र्र की मिसाल बना हुआ है। यहां बंदियों ने अपने दुख-दर्द के साथ आस्था भी बांट ली है।
अलीगढ़ (लोकेश शर्मा)। जिस जिले में मामूली विवाद भी सांप्रदायिक टकराव की वजह बन जाता है, उसी जिले का कारागार सांप्रदायिक सौहाद्र्र की मिसाल बना हुआ है। यहां बंदियों ने अपने दुख-दर्द के साथ आस्था भी बांट ली है। किसी भी धर्म का तीज-त्योहार हो, या कोई धार्मिक अनुष्ठान, हर कैदी इन्हें पूरी श्रद्धा के साथ मनाकर कौमी एकता को मजबूत करने में लगा है। प्रतिदिन यहां भजन-कीर्तन होता है। जेल प्रशासन ने एक बैरक में इसके लिए पूरे इंतजाम कर दिए हैं।
बंदियों में नहीं भेदभाव
शुक्रवार को भी जेल के अंदर से आती माता के भजनों की गूंज हर किसी को आकर्षित कर रही थी। कारागार में निरुद्ध 2900 बंदियों में करीब 800 मुस्लिम हैं, 1800 ङ्क्षहदू, बाकी अन्य धर्म के हैं। जेल अधिकारी बताते हैं कि बंदियों में कोई भेदभाव नहीं है, न कभी जाति-धर्म को लेकर विवाद ही हुआ है।
रमजान में रोजा, नवरात्र में व्रत
रमजान में मुस्लिम बंदियों के साथ ङ्क्षहदू रोजा रखते हैं और नवरात्र में मुस्लिम भी व्रत रखते हैं। व्रत रहकर मां दुर्गा की आराधना की जाती है। बंदियों की भक्ति और आस्था देख जेल प्रशासन ने ढोलक, मजीरा, पूजा, प्रसाद सामग्री व पूजा-पाठ की व्यवस्था बैरक में ही कर दी है।
गुनाहों की माफी
बंदियों का कहना है, साथ रहने से एक-दूसरे की सभ्यता, संस्कृति को नजदीकी से देखने का मौका मिलता है। पूजा-पाठ करते हैं तो सुकून मिलता है और वे ऊपर वाले से गुनाहों की माफी भी मांग लेते हैं। मां के दरबार में मन लगाने से शायद ऊपर वाले की अदालत में माफी मिल जाए। यहां से निकल कर नई जिंदगी की शुरुआत करेंगे।
सभी मिलकर मनाते हैं त्योहार
वरिष्ठ जेल अधीक्षक आलोक सिंह का कहना है कि पूजा-पाठ या किसी त्योहार पर बंदियों को किसी चीज की आवश्यकता होती है, मुहैया करा दी जाती है। सभी बंदी साथ मिलकर एक-दूसरे का त्योहार मनाते हैं। इसमें हम पूरा सहयोग करते हैं।