नेता ही करें अली-बजरंगबली में भेद, ये जनाब नमाज पढ़ने के बाद करते हैं मंदिर में रामायण पाठ
लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दल वोटों की खातिर अली व बजरंगबली की दुहाई दे रहे हैं। वहीं अलीगढ़ में अनूपशहर रोड स्थित मिर्जापुर गांव के बाबू खां व अबरार एक खास नजीर हैं।
संतोष शर्मा, अलीगढ़। लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दल वोटों की खातिर अली व बजरंगबली की दुहाई दे रहे हैं। वहीं अलीगढ़ में अनूपशहर रोड स्थित मिर्जापुर गांव के बाबू खां व अबरार एक खास नजीर हैं। वे मस्जिद में इबादत करते हैं तो शिव मंदिर में पूजा। उनके मुंह से रामचरित मानस की चौपाई सुनते हैं तो राम नजर आते हैं। वे जब कुरान की आयतें पढ़ते हैं तो रहीम की याद आ जाती है। शिव पुराण के श्लोक सुनकर तो लोग दंग रह जाते हैं। उनका मानना है कि ऊपर वाला एक है। उसने कभी इंसानों में भेद नहीं किया तो हम दीवारें खड़ी क्यों करें? सांप्रदायिक सौहार्द की ये खुशबू पूरे जवां क्षेत्र में बिखर रही है और लोगों के लिए मिशाल भी बनी है।
2013 में बना मंदिर
मंदिर का निर्माण प्रधान शमा परवीन के पति बाबू खां ने 2013 में कराया था। इसके लिए किसी ने प्रेरित नहीं किया। यहां सीडीएफ चौकी के पास ऊबड़ -खाबड़ रास्ते से निकलने में लोग डरते थे। यह बाबू खां को अखर रहा था। उन्होंने इलाके के लोगों से अनुमति लेने के बाद करीब 20 गज जगह पर मंदिर बनवा दिया। इसका पूरा खर्चा खुद उठाया। यह संगमरमर से बना है। पत्थर दिल्ली से मंगाया गया था, कारीगर भी वहीं से बुलाए गए।
सवालों से नहीं घबराए बाबू खां
बाबू खां सुबह नमाज के लिए मस्जिद जाते हैं और फिर मंदिर आकर पूजा पाठ करते हैं। इसके चलते कई लोगों ने सवाल उठाए, पर वे घबराए नहीं। उनका कहना है कि गांव में हिंदू-मुस्लिम भाइयों की तरह रहते हैं, इस लिए मंदिर का निर्माण कराया। मंदिर की सफाई व देखरेख में उनके पांच बेटे व तीन बेटियां भी मदद करती हैं। इन्हें प्रशासन की ओर से तीन बार गंगा जमुनी पुरस्कार से नवाजा जा चुका है।
पुजारी अबरार करते हैं कीर्तन
मंदिर के पुजारी की जिम्मेदारी अबरार संभाले हैं। वे ङ्क्षहदू समाज के लोगों के बीच घुल-मिल गए हैं। वे हिंदू अनुष्ठानों व परंपराओं के अनुसार भगवान शिव की पूजा करते हैं। कीर्तन भी करते हैं। शिव पुराण का पूरा ज्ञान है।
हम क्यों करें भेदभाव?
प्रधान के पति बाबू खां का कहना है कि अली और बजरंगबली के नाम पर विवाद व्यर्थ है। ऊपर वाला एक है। उसके दरबार में किसी तरह का भेद नहीं है तो हम क्यों करें? इंसानियत से बड़ा कुछ नहीं होता
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