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निजी Covid अस्पतालों में रोज पांच से 15 हजार रुपये तक की दवा, तीमारदार को नहीं मिल रहे पक्‍के बिल Aligarh News

अस्पतालों में मरीजों को बेड मिलना मुश्किल हो रहा है। वहीं कुछ निजी अस्पताल मरीजों से मनमाना बिल वसूलकर मुसीबत और बढ़ा रहे हैं। आम मरीज के लिए आक्सीजन वेंटीलेटर व अन्य सुविधाओं का खर्च तो बूते से बाहर हैं ही महंगी दवाएं भी दर्द दे रही हैं।

By Sandeep Kumar SaxenaEdited By: Published: Sat, 08 May 2021 09:39 AM (IST)Updated: Sat, 08 May 2021 09:39 AM (IST)
निजी Covid अस्पतालों में रोज पांच से 15 हजार रुपये तक की दवा, तीमारदार को नहीं मिल रहे पक्‍के बिल Aligarh News
अस्पतालों में मरीजों को बेड मिलना मुश्किल हो रहा है।

अलीगढ़,विनोद भारती। कोरोना को लेकर हाहाकार मचा हुआ है। अस्पतालों में मरीजों को बेड मिलना मुश्किल हो रहा है। वहीं कुछ निजी अस्पताल मरीजों से मनमाना बिल वसूलकर मुसीबत और बढ़ा रहे हैं। आम मरीज के लिए आक्सीजन, वेंटीलेटर व अन्य सुविधाओं का खर्च तो बूते से बाहर हैं ही, महंगी दवाएं भी दर्द दे रही हैं। स्वर्ण जयंती नगर निवासी प्रदीप (बदला नाम) के पिता को सप्ताहभर पहले कोरोना हुआ। अगले ही दिन आक्सीजन लेवल 75 पहुंच गया। जीटी रोड स्थित कोविड हास्पिटल में भर्ती कराया। यहां मरीज को लाते ही डेढ़ लाख रुपये एडवांस जमा कराया गया। पांच दिन में ही दो लाख रुपये खर्च हो चुके हैं। प्रदीप के अनुसार प्रतिदिन 20 हजार रुपये आइसीयू व 10-15 हजार रुपये दवा पर खर्च हो रहे हैैं। दवा के पक्के बिल तक नहीं दिए गए हैं। यह केवल अकेले प्रदीप की पीड़ा नहीं, बल्कि निजी अस्पतालों में इलाज करा रहे तमाम लोग महंगे इलाज से त्रस्त हैं।

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दवा से बढ़ रहा इलाज खर्चा

अस्पतालों सूत्रों के अनुसार कोरोना संक्रमित मरीज को शुरुआत में आइवरमेक्टिन, डाक्सी, न्यूमोसल्आइड, एजीथ्रोमाइसिन या अन्य एंटीबायोटिक, विटामिन बी, सी, डी के अलावा अन्य एंटी वायरल, एंटी बैक्टीरियरल, एंटी एलर्जिक दवाएं दी जाती हैं। हल्के-फुल्के लक्षण वाले मरीजों का बमुश्किल 500-700 प्रतिदिन की दवा से इलाज हो जाता है। गंभीर मरीज की बात करें तो कुछ और दवाएं दी जा सकती हैं, जिनका खर्चा सामान्य दिनों में अधिकतम तीन से पांच हजार रुपये होता है। इस समय मरीज को रोजाना 10-15 हजार रुपये की दवा खरीदनी पड़ रही है। आक्सीजन व वेंटीलेटर बेड का खर्च अलग है।

ऐसे हो रहा है खेल

 निजी अस्पतालों में दवा का खर्चा प्रतिदिन पांच से 15 हजार या ज्यादा होने का कारण दवा की एमआरपी में खेल है। ज्यादातर अस्पताल भर्ती मरीज के तीमारदार को अपने ही अस्पताल में खुले मेडिकल स्टोर से दवा खरीदने के लिए मजबूर करते हैं, जिनमें सेंङ्क्षटग की दवा भी खूब बिक रही है। ऐसी दवा भी हैं, जिनकी एमआरपी डाक्टर खुद सेट कर सकते हैं। मरीज एमआरपी के नाम पर लुटने को मजबूर होते हैं। यह दवा अन्य स्टोर पर भी नहीं मिलेगी। यदि अन्य खर्च के साथ दवा पर खर्च राशि की जांच कराई जाए तो अस्पतालों में बड़ी धांधली का पर्दाफाश होगा। इसके लिए सरकारी तंत्र भी बनाया गया है, मगर अभी तक जिम्मेदार लोगों ने तमाम शिकायतों के बाद भी कोई पहल नहीं की है। इससे कुछ अस्पताल संचालक लाखों रुपये वसूल रहे हैं। इसमें रेमडेसिविर इंजेक्शन का खर्च शामिल नहीं होता, क्योंकि उसकी व्यवस्था मरीज को बाहर से करनी होती है। कई अस्पताल संचालक स्वयं भी यह इंजेक्शन उपलब्ध करा रहे हैं, जिसकी असल कीमत करीब चार हजार रुपये है। अगर आपने अस्पताल को व्यवस्था करने के लिए कह दिया तो दो से ढाई लाख रुपये खर्च हो जाएंगे। इसका न कोई बिल, न अन्य दस्तावेज अस्पताल से मिलता है।

यह ऐसा दौर है, जिसमें डाक्टरों पर सबसे बड़ी जिम्मेदारी है, खासतौर से निजी अस्पतालों के डाक्टरों पर। डाक्टर मरीजों की ङ्क्षजदगी बचाने के लिए आगे बढ़कर काम करें। इलाज का खर्च शासन की गाइडलाइन में तय राशि से अधिक न हो। दवा व अन्य खर्च में मनमानी की शिकायत मिली तो कार्रवाई होगी।

डा. बीपीएस कल्याणी, सीएमओ


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