Government Departments carefree: अलीगढ़ में जल रहा मेडिकल कचरा, कानूूून धुआं-धुआं
चार साल पूर्व संशोधन कर इसमें कड़े प्राविधान भी जोड़े गए। हैरानी की बात ये है कि आज तक इस एक्ट के तहत कोई मुकदमा दर्ज होना तो दूर इस पर चर्चा तक नहीं।
अलीगढ़ [लोकेश शर्मा]: बायो मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट एंड हैंडङ्क्षलग एक्ट को लागू हुए दो दशक बीत गए। चार साल पूर्व संशोधन कर इसमें कड़े प्राविधान भी जोड़े गए। हैरानी की बात ये है कि आज तक इस एक्ट के तहत कोई मुकदमा दर्ज होना तो दूर इस पर चर्चा तक नहीं, जबकि निजी अस्पताल तो मेडिकल कचरे के प्रबंधन में बिल्कुल ही फिसड्डी हैं। अस्पतालों से निकला कूड़ा या तो जल रहा है या फिर सड़ रहा है।
ये है एक्ट
केंद्र सरकार ने बायो मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट एंड हैंडङ्क्षलग एक्ट लागू किया। इसके अंतर्गत सरकारी व निजी अस्पतालों में बायो मेडिकल वेस्ट के निस्तारण में गड़बड़ी रोकने के लिए कूड़े की थैलियों की बार कोङ्क्षडग की जानी थी, ताकि प्रत्येक अस्पताल से निकलने वाले मेडिकल कचरे की आनलाइन मानीटङ्क्षरग हो सके कि किस अस्पताल से कितना कूड़ा निकला और कितना निकलना चाहिए था। मेडिकल कचरे को जलाते या फेंकते हुए पाए जाने पर पांच साल तक की जेल व जुर्माने का प्राविधान किया गया।
चार तरह से कूड़े का रखरखाव
पीली थैली : शीशी में पैक खराब दवा, भ्रूण, खून की थैली, मानवीय ऊतक, खराब कटे अंग आदि।
लाल थैली : बोतलें, सीरेंज, दस्ताने, ट््यूङ्क्षबग्स, कैथेटर, मूत्र की थैली, इंट्रावीनस ट््यूब आदि।
सफेद पारदर्शी कंटेनर : अंग काटने व सिलने के उपकरण, सूइयां, सिरिंज, स्काल्पेस ब्लेड, ब्लेड आदि।
नीला कार्ड बोर्ड बॉक्स : टूटा हुआ दूषित कांच, धातु के औजार, कांच की खराब हुए एंप्यूलस आदि।
वर्तमान व्यवस्था
सीएमओ कार्यालय में ही 450 हॉस्पिटल व लैब पंजीकृत हैं, मगर यह व्यवस्था कहीं लागू नहीं हुई है। हालांकि, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपने यहां पंजीकरण शुरू कर दिए हैं, मगर एक्ट के प्राविधानों को लागू करने के लिए अभी कोई पहल नहीं हुई है। वर्तमान में तो बार कोङ्क्षडग वाली थैली तो दूर अलग-अलग कूड़े को रखने के लिए डस्टबिन तक नहीं मिलेंगे। दावे कुछ भी हों, सच यही है कि तमाम मेडिकल कचरा अभी भी जलाया या फेंका जा रहा है।
लॉकडाउन से पड़ा विघ्न
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के स्टेट सेक्रेट्री डॉ. जयंत शर्मा ने बताया कि अधिकतर हॉस्पिटल व लैब ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में अपना पंजीयन करा लिया है। बार कोड वाली थैलियां रखने के लिए निजी नोडल एजेंसी से प्रदेश स्तर पर बात चल रही है। लॉकडाउन की वजह से कार्य आगे नहीं बढ़ पाया।
नए एक्ट के क्रियान्वयन को लेकर अभी कोई दिशा-निर्देश नहीं आए हैं। मेडिकल कचरे को जलाने अथवा खुले में फेंकने की शिकायत पर विभाग भी कार्रवाई करेगा।
डॉ. भानुप्रताप कल्याणी, सीएमओ