किसान कंगाल, बीमा कंपनी मालामालः प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में खामियों से किसानों को नुकसान aligarh news
एक साल में ही लगभग 200 फीसद मुनाफा हुआ। हद तो यह किसानों के सही क्लेम भी नजरअंदाज कर दिए गए।
सुरजीत पुंढीर, अलीगढ़। मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास 'गोदानÓ की एक कहानी में किसान होरी दिन-रात खेतों में मेहनत करता है। कर्ज लेता है। अंत में फसल जानवर नष्ट कर देते हैं। होरी कर्ज में डूबा रहता है। किसानों की तकदीर अब भी ऐसी कहानियां हैैं। इसमें बदलाव के लिए सरकार प्रधानमंत्री बीमा योजना लाई। लेकिन, यहां किसानों की नहीं, बीमा कंपनी की तकदीर जरूर बदल गई। एक साल में ही लगभग 200 फीसद मुनाफा हुआ। हद तो यह किसानों के सही क्लेम भी नजरअंदाज कर दिए गए।
2016 में योजना की शुरुआत
केंद्र सरकार ने 2016 में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की शुरुआत की। इसमें निजी कंपनी को बीमा की जिम्मेदारी मिली। किसानों के साथ बीमा प्रीमियम का कुछ अंश केंद्र व राज्य सरकार को देना था। फसलों का अलग-अलग प्रीमियम व मुआवजा तय किया गया। दैनिक जागरण ने आंकड़ों का विश्लेषण किया तो पाया कि योजना बीमा कंपनी के लिए लॉटरी साबित हुई। कंपनी ने इसमें 200 फीसद तक मुनाफा पाया। किसानों को प्रीमियम का एक तिहाई लाभ भी नहीं मिला।
कितना प्रीमियम
2018 में खरीफ की फसल मक्का, धान, बाजरा के लिए यहां कुल 47513 किसानों ने बीमा कराया। इनमें 47391 किसान केसीसी वाले व 122 किसान सीधे पैसे से बीमा कराने वाले थे। इनका 39899 हेक्टेयर क्षेत्रफल बीमित हुआ। 9.55 करोड़ प्रीमियम जमा हुआ।
कितना भुगतान
47513 बीमित किसानों ने 3.89 करोड़ रुपये स्वयं प्रीमियम के दिए। 2.83 केंद्र व 2.83 करोड़ प्रदेश सरकार ने दिए। इनमें से लाभ लेने वाले 8825 किसान ही थे, जिन्हें मात्र तीन करोड़ का क्लेम मिला। कंपनी को 6.55 करोड़ का फायदा हुआ।
6.50 करोड़ का प्रीमियम
वर्ष 2018-19 की रबी की फसल गेहूं, जौ, मक्का के लिए 29533 किसानों ने बीमा कराया। इसमें 29533 किसान क्रेडिट कार्ड व 85 किसान सीधे बीमा कराने वाले थे। इन किसानों का 28072 हेक्टेयर क्षेत्रफल बीमित हुआ। किसानों ने इसमें 5.17 करोड़, केंद्र ने 66.65 व राज्य ने 66.66 लाख का प्रीमियम दिया। लेकिन कंपनी ने इसका आधा ही भुगतान किया है। इस तरह कंपनी फायदे में ही रही।
किसानों का हो रहा मोहभंग
कम फायदे के चलते किसानों का योजना से मोहभंग हो रहा है। पिछले साल खरीफ में 47 हजार किसानों ने बीमा कराया था। रबी में यह संख्या 29 हजार रह गई। इस साल खरीफ में 20 हजार किसानों ने ही बीमा कराया है।
यह है क्लेम का नियम
किसी भी किसान की फसल प्राकृतिक आपदा, कीट व बीमारियों से नष्ट हो जाती है तो उसे इसकी जानकारी टोल फ्री नंबर पर देनी होती है। 72 घंटे में सर्वे होता है, फिर उत्पादन व नुकसान के हिसाब से क्लेम मिलता है। बीमा कंपनी इसी में लापरवाही करती है। बीमा देने में देरी होती है। कई बार तकनीकि पेच से फाइल वापस हो जाती है। सर्वे के नाम पर भी खानापूर्ति होती है। दावे बिना जांच के निरस्त हो जाते हैं।
खूब काटे चक्कर, नहीं मिला क्लेम
बीमा कंपनी लाभ न देने के लिए कैसे तकनीकी पेच फंसाती हैं, इसका यह बड़ा उदाहरण हैं लोधा के भमरौला निवासी आरपी पचौरी। पचौरी ने डेढ़ साल पहले 60 बीघा आलू की फसल का केसीसी से बीमा कराया था। खोदाई से पहले फसल पर ओले गिरे। शिकायत पर सर्वे हुआ। कंपनी ने बैंक से डाटा न आने की बात कहकर बीमा देने से इन्कार कर दिया। वे सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा-लगाकर परेशान हो गए और घर बैठ गए। उन्हें दो लाख से ज्यादा का नुकसान हुआ।
बदली गई कंपनी
अब तक जिले में योजना की जिम्मेदारी रिलायंस के पास थी। सरकार ने अब यह काम एचडीएफसी कंपनी को दिया है। उपनिदेशक कृषि अनिल कुमार ने बताया कि सरकार ने बीमा का काम निजी कंपनी को दे रखा है। प्रीमियम से ज्यादा फायदा कंपनियों को होने की बात सही है। किसान मुकेश गौड़ ने बताया कि योजना में तमाम खामियां हैं। सरकार को इसे बदलकर व्यक्तिगत बीमा करना चाहिए। आच्छादित क्षेत्रफल की भी अनिवार्यता खत्म हो।