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अलीगढ़ में नेता और अफसरों की अपनी ढपली, अपना राग

संगठन को एक सूत्र में बांधने की भइयाजी की ख्वाइश को कुछ अपने ही पलीता लगा रहे हैं। नेतृत्व ने तो कुछ और ही कार्यक्रम तय किया था लेकिन यहां नेताजी ने अपनी ढपली पर अपना ही राग सुनाते नजर आए।

By Sandeep kumar SaxenaEdited By: Published: Thu, 14 Jan 2021 10:20 AM (IST)Updated: Thu, 14 Jan 2021 10:20 AM (IST)
अलीगढ़ में नेता और अफसरों की अपनी ढपली, अपना राग
यहां नेताजी ने अपनी ढपली पर अपना ही राग सुनाते नजर आए।

अलीगढ़, जेएनएन। संगठन को एक सूत्र में बांधने की ''''भइयाजी'''' की ख्वाइश को कुछ अपने ही पलीता लगा रहे हैं। नेतृत्व ने तो कुछ और ही कार्यक्रम तय किया था, लेकिन यहां नेताजी ने अपनी ढपली पर अपना ही राग सुनाते नजर आए। हाल ही में साइकिल पर सवार हुए नेताजी लीक से हटकर काम कर रहे हैं। पार्टीजनों की जहां नजर ही न गई, वहां भी साइकिल से पहुंचकर अपना खूंठा गाड़ आए। अनुभव जो पुराना है। पहले मौका नहीं मिला। अब टोकने वाला भी कोई नहीं। जो चाहे बोल रहे हैं, मानो स्टार प्रचारक हों। इनके बयानों ने तो बड़बोले नेताजी की बोलती ही बंद कर दी। अब वे कहीं नजर नहीं आते, न ही उनके तीखे शब्द सुनाई दे रहे। वे भी अपनी हैसियत जानते हैं। बिगड़े बोल का खामियाजा पहले भुगत जो चुके हैं। वहीं, एक युवा नेता साइलेंट मोड पर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं। यह उनके लिए सही भी है।

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वादे हैं वादों का क्या

नगर निगम के अफसर वादे तो कर आते हैं, मगर पूरा नहीं करते। अन्य महकमों में भी यही परंपरा चली आ रही है। निगम इसीलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि, इसका सीधे जनता से जुड़ाव है। सड़क, सफाई, पेयजल, पथ प्रकाश जैसी मूलभूत सुविधाएं यही महकमा तो मुहैया कराता है। ''''विकास पुरुष'''' के हाथों में बागडोर आने के बाद भी समस्याएं बरकरार हैं। अब सड़कों को ही लीजिए। उखड़ी सड़कों को दुरुस्त कराने के लिए कितने आदेश हो चुके हैं, न जाने कितनी बार जनता के बीच जाकर अफसर वादे कर आए। मगर, सड़काें की हालत ठीक नहीं हुई। नई सड़कों में कमीशनखाेरी का ऐसा ग्रहण लगा कि डेढ़-दो महीने में उखड़ने लगीं। नाला निर्माण की धांधली में हिस्सेदार अभी भी महकमे में डटे हुए हैं। खरीद-फरोख्त में हुए घपले की फाइलें बंद कर दी गईं। जिन्हें आपत्ति करनी चाहिए, वे सिस्टम का हिस्सा बनते जा रहे हैं।

सपना न हुआ अभी अपना

 अतिथि देवो भव:

अलीगढ़ : '''अतिथि देवाे भव:'''', भारतीय संस्कृति की इस सनातन परंपरा का निर्वहन यहां प्रशासन बखूबी कर रहा है। अथिति का स्तर देखकर आगवानी और मेजबानी के बंदोबस्त कराए जाते हैं। ''''महामहिम'''' को ही लीजिए, उनके इस्तकबाल में पूरा प्रशासनिक अमला जुटा रहा। जरूरी भी था, ऐसे अतिथियों की आगवानी का सौभाग्य कम ही मिलता है। यही वजह रही कि अतिथि आगमन के चार दिन पहले से तैयारियां शुरू हो गईं। जिन मार्गों से काफिला गुजरना था, वो सड़कें चमका दी गईं। किनारों से झाड़-झाड़ियां तक गायब थीं। डिवाइडरों के सहारे जमा धूल भी साफ हो चुकी थी। रामघाट रोड पर महीनों से भरा पानी कुछ घंटों में ही सुखा दिया गया। और तो और मशीनों से नाले तक साफ होने लगे। अरे, इस ओर कौन देखता है। फिर भी प्रशासन ने कोई कसर नहीं छोड़ी। ऐसी स्वच्छता और अफसरों की गंभीरता देख लोग कहने लगे, ''ऐसे अतिथि यहां रोज आएं''।

ड्रीम प्रोजेक्ट भी अधर में

नगर निगम के ड्रीम प्रोजेक्ट में अशियाने का सपना देख रहे लोग अभी भी निराश हैं। आगरा रोड पर बेहतर लोकेशन दिखाकर और स्विमिंग पूल, कम्युनिटी सेंटर, जिम, हाइड्रोलिक पार्किंग जैसी सुविधाएं गिनाकर फ्लैट तो बुक करा लिए, मगर चार साल में एक भी तैयार न हो सका। आवंटी आक्रोश जता चुके हैं, प्रदर्शन भी हुआ। लेकिन, किसी ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। कभी अतिक्रमण तो कभी बजट का अभाव दिखाकर आवंटियाें का टाला जाने लगा। निगरानी के लिए एक कमेटी भी बनाई गई थी, जिसे निर्माण कार्य की प्रगति देखने और समस्याओं के निस्तारण का जिम्मा सौंपा गया। ये कमेटी भी कुछ और ही कामों में व्यस्त हो गई। किराए के मकानों में रहने वाले उन लोगों को परेशानी अधिक हो रही है, जो किराया भी देते हैं और फ्लैट की किस्त भी चुका रहे हैं। इन लोगों का कहना है कि फ्लैट मिल जाए तो किराया न देना पड़े।


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