बलिदान दिवस : मां भारती के लाल नाहर सिंह ने मरते वक्त देशवासियों से कहा था क्रांति की इस चिंगारी को बुझने न देना
इगलास के गांव तोछीगढ़ में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के नायक वतन की आजादी के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले शूरवीर बल्लभगढ़ रियासत के राजा नाहर सिंह के 164वें बलिदान दिवस एवं किसानों के मसीहा रहबरे आज़म दीनबंधु सर छोटूराम की 77 वीं पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि दी गई।
अलीगढ़, जागरण संवाददाता। परोपकार सामाजिक सेवा संस्था द्वारा इगलास के गांव तोछीगढ़ में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के नायक वतन की आजादी के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले शूरवीर बल्लभगढ़ रियासत के राजा नाहर सिंह के 164वें बलिदान दिवस एवं किसानों के मसीहा रहबरे आज़म दीनबंधु सर छोटूराम की 77 वीं पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि दी गई।
महान क्रांतिकारी राजा नाहर सिंह का जन्म बल्लभगढ़ रियासत में हुआ था
संस्था के अध्यक्ष जतन चौधरी ने कहा कि राजा नाहर सिंह की वीरता, रणकौशलता और वतनपरस्ती ने अंग्रेजों को हिलाकर रख दिया था। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी राजा नाहर सिंह का जन्म 6 अप्रैल 1821 को बल्लभगढ़ रियासत में हुआ। पिता के देहांत के बाद राजा नाहर सिंह ने महज 15 साल की अल्पायु में ही राज-पाट संभाल लिया था| मंगल पांडे की ओर से 29 मार्च 1857 के बैरकपुर आंदोलन के बाद ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह में राजा नाहर सिंह भी अपने क्रांतिकारी साथियों और दिल्ली के मुगल शासक बहादुरशाह जफ़र के साथ मिलकर अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध लड़े थे। राजा नाहर सिंह की वीरता और युद्ध कौशल के सामने 31 अक्टूबर 1857 को अंग्रेजी सेना को युद्ध में मात खानी पड़ी फिर अंग्रेजों ने धोखे से नाहर सिंह को बंदी बनाने की योजना बनाई।
अंग्रेज अधिकारियों ने धोखे से पकड़ा था नाहर सिंह को
युद्ध में हार के बाद अंग्रेज अंग्रेज अधिकारियों ने राजा नाहर सिंह को धोखे से गिरफ्तार करके बंदी बनाके दिल्ली ले गये। दिल्ली में राजा नाहर सिंह और उनके साथियों पर मुकदमा चला जिसमें उन्हें साथियों समेत सजा-ए-मौत की सजा सुनाई गई। अंग्रेजों ने हिन्दुस्तानियों में भय बैठाने और क्रांतिकारियों में खौफ पैदा करने के उद्देश्य से राजा नाहर सिंह और उनके तीन साथियों को 9 जनवरी, 1857 को दिल्ली के चाँदनी चौक पर सरेआम फांसी पर लटका दिया था। अंग्रेज अधिकारी हड़सन ने फांसी पर लटकाने से पहले राजा नाहर सिंह से उनकी आखिरी इच्छा के बारे में पूछा तो भारत माता के इस शेर ने दहाड़ते हुए कहा था, ‘‘मैं तुमसे और ब्रिटिश राज्य से कुछ माँगकर अपना स्वाभिमान नहीं खोना चाहता हूँ। मैं तो अपने सामने खड़े हुए अपने देशवासियों से कह रहा हूँ कि क्रांति की इस चिंगारी को बुझने न देना।’’ माँ भारती के इस लाल ने अपनी भारत माँ की आजादी के लिए हंसते-हंसते अपने प्राणों का बलिदान दे दिया। हर किसी ने उनकीं वीरता, साहस और देशभक्ति के जज्बे को दिल से सलाम किया। आजादी के ऐसे दिवानों और बलिदानियों का यह राष्ट्र हमेशा कृतज्ञ रहेगा।
सर छोटूराम ने किसान मजदूरों के उत्थान के लिए काम किया
मनोज ठैनुआं ने कहा कि सर छोटूराम साधारण किसान परिवार से थे। वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद ग्रामीण भारत की बदहाली से व्यथित होकर आजीवन किसान-मजदूरों के उत्थान के लिए कार्य करने का संकल्प लिया। भाखड़ नागल बांध परियोजना समेत तमाम किसान हितैषी योजनाएं लागू करवाने वाले एकमात्र तत्कालीन किसान नेता थे। सर छोटूराम धर्म निरपेक्ष देशभक्त थे वो साम्प्रदायिक उन्माद के खिलाफ थे और आपसी भाईचारे में विश्वास रखते थे। अगर 9 जनवरी 1945 को असमय उनकी मृत्यु नहीं होती तो शायद भारत का विभाजन भी नहीं होता। इस अवसर पर बलवीर सिंह, प्रवीन कुमार, गुड्डू अम्बेडकर, रामप्रकाश ठैनुआं, भानूप्रताप सिंह, आकाश कुमार, निखिल कुमार, लोकेन्द्र सिंह, मुकेश सिंह, डब्बू शर्मा, छोटू, सूरज आदि उपस्थित रहे।