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दैनिक जागरण का कवि सम्मेलन : ' बदन में जान है जब तक तिरंगा झुक नहीं सकता '

दैनिक जागरण और कोनार्क पीवीसी पाइप की ओर से शुक्रवार को कृष्णांजलि नाट्यशाला में आयोजित अखिल भारतीय कवि सम्मेलन ने फिर इतिहास रच दिया।

By Edited By: Published: Sat, 29 Sep 2018 06:42 PM (IST)Updated: Sun, 30 Sep 2018 08:55 AM (IST)
दैनिक जागरण का कवि सम्मेलन :  '  बदन में जान है जब तक तिरंगा झुक नहीं सकता  '
दैनिक जागरण का कवि सम्मेलन : ' बदन में जान है जब तक तिरंगा झुक नहीं सकता '

अलीगढ़ (जेएनएन)। दैनिक जागरण और कोनार्क पीवीसी पाइप की ओर से शुक्रवार को कृष्णांजलि नाट्यशाला में आयोजित अखिल भारतीय कवि सम्मेलन ने फिर इतिहास रच दिया। देश के नामचीन व मंझे हुए कवियों-शायरों ने खूब तालियां और वाह-वाही लूटी। ओज, हास्य व शृंगार की त्रिवेणी में श्रोता भोर तक गोते लगाते रहे।
उद्घाटन मंडलायुक्त अजयदीप सिंह, डीएम चंद्रभूषण सिंह, सांसद सतीश गौतम, श्रम निर्माण समिति के चेयरमैन रघुराज सिंह, आयकर आयुक्त सुनील वाजपेयी, जिला सहकारी बैंक की अध्यक्ष डॉ. उमेश कुमारी, जिला पंचायत अध्यक्ष उपेंद्र सिंह नीटू, पूर्व मेयर शकुंतला भारतीय, दैनिक जागरण अलीगढ़ के संपादकीय प्रभारी नवीन सिंह पटेल, यूनिट प्रभारी दीपक दुबे आदि ने संयुक्त रूप से दीप जलाकर किया। सर्वप्रथम गीत-गजलकार शबीना अदीब ने मां शारदे की स्तुति की। अध्यक्षता राहत इंदौरी व संचालन का दायित्व शब्दशिल्पी डॉ. शिव ओम अंबर ने संभाला।
शुरुआत टीवी पर धमाल मचा रहे हास्य-व्यंग्यकार सुदीप भोला ने की। उन्होंने कहा-' अब सीरियल के नाम होंगे-' भाबीजी जीजी जी के घर की छत पर हैं ' न्यायालयों के ताजा फैसलों पर ही व्यंग्य करते हुए कहा, अब केवल ' लिहाज ' शब्द को ही असंवैधानिक घोषित करना बाकी है। सरकार संस्कार व संस्कृति को भी प्रतिबंधित करे। उन्हें खूब तालियां मिलीं।

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प्रख्यात शायर राहत इंदौरी ने अपने ही अंदाज में सुनाया-
' तेरी कत्थई आंखों में है, जंतर-मंतर सब।
चाकू-वाकू, छुरिया-वुरियां, खंजर-वंजर सब।'

शिवओम अंबर ने कहा-
'लफ्जों में टंकण बिठा, लहजे में खुद्दारी रख।
जीने की ख्वाहिश है तो मरने की तैयारी रख।'

प्रख्यात शायर डॉ. नवाज देवबंदी का कलाम पेश किया-
' वह जो अनपढ़ है, चलो हैवान है तो ठीक है।
हम पढ़े लिखों को तो इंसान होना चाहिए।
हिंदु-मुस्लिम चाहे जो लिखा हो माथे पर,
मगर आपके सीने में हिंदुस्तान होना चाहिए।। '

इटावा से आए ओज कवि गौरव चौहान ने यूं दहाड़ भरी-

' कभी ये काफिला कुर्बानियों का रुक नहीं सकता।
बदन में जान है जब तक तिरंगा झुक नहीं सकता। '

हास्य कवि सर्वेश अस्थाना ने पहले लोगों को खूब हंसाया। शेर भी सुनाएं। उन्होंने कहा-

' रिश्तों में तकरार बहुत है,
लेकिन इनमें प्यार बहुत है।
सारी दुनिया खुश रखने को,
बस अपना परिवार बहुत है।'

कानपुर से आईं शबीना अदीब ने सच्ची हिंदोस्तानियत बयां की-

' कहीं धमाका और न दंगा देखें हम।
विश्व में बहती प्यार की गंगा देखें हम।
हर इक ङ्क्षहदुस्तानी की आवाज है ये,
सबसे ऊंचा अपना तिरंगा देखे हम। '

राष्ट्रवादी कवि अब्दुल गफ्फार ने लोगों में यूं जोश भरा-


' नील गगन में तीन रंग की ध्वजा संजाने निकला हूं।
सिर से कफन बांधकर मैं, रण-रंग रचाने निकला हूं।। '

हास्य कवि प्रेम किशोर पटाखा ने लोगों को खूब हंसाया। गीत-गजल, शेर-शायरी और हास्य-व्यंग्य का यह दौर भोर होने तक चला और लोग मंत्रमुग्ध होकर कवियों-शायरों का उत्साह बढ़ाते रहे।
प्रसिद्ध कवयित्री डॉ. अंजना सिंह सेंगर ने सुनाया...

हर सिम्त मोहब्बत है, परवान अलीगढ़ में
जिंदा है मोहब्बत के दरबान अलीगढ़ में।

ये रहे सहयोगी
दैनिक जागरण एवं कोनार्क पीवीसी पाइप की प्रस्तुति अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में सहयोगी हैं-बाल जीवन घुïट्टी, शेखर (द रियल एस्टेट), आइटीएम इंजीनियङ्क्षरग कॉलेज, 112 साल की बुढिय़ा की घुïट्टी, आरएस होंडा, बांके बिहारी ट्रेडिंग, कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ. आरके गुप्ता, ला-विस्टा हाइट्स, मोटवानी प्रीमियम चाय, शिव टीवीएस, कोको स्पास वाटर पार्क, रसिक टॉवर, उप्पल पैकेजिंग्स, एचआर हॉस्पिटल, जïट्टारी ऑटो सेल्स, होटल द रॉयल रेजीडेंसी। राजकीय औद्योगिक व कृषि प्रदर्शनी व पॉवर्ड बाय रेडियंट स्टार्स इंग्लिस स्कूल का विशेष सहयोग रहा। यिक अवमूल्यन पर कवियों-शायरों ने रखी बेबाक राय

कभी तालियों की गूंज,  कभी हंसी के ठहाके फूटे
तालियों की गडग़ड़ाहट। हंसी के ठहाके। शब्दों के तीखे व्यंग्य बाण और शृंगार की रसधार में मदहोश होकर झूमते लोग। चहुंओर भारत माता की जय और वंदेमातरम की गूंज। हर पंक्ति पर वाह-वाह और दाद देते शहरवासी। यह नजारा शुक्रवार रात दैनिक जागरण व कोनार्क पीवीसी पाइप के कवि सम्मेलन में दिखा। सम्मेलन ने देश के विभिन्न प्रान्तों से आए विख्यात कवियों-शायरों को सुनने के लिए शहरवासी देररात तक जमे रहे।
अपने पसंदीदा कवियों को सुनने के लिए लोग आठ बजे से ही कृष्णांजलि नाट्यशाला में पहुंचने शुरू हो गए। करीब 10 बजे कवि सम्मेलन शुरू हुआ, तब तक पंडाल भीड़ से खचाखच भर गया। श्रोताओं ने अतिथि कवियों-शायरों के सम्मान में तालियां बजाईं। फिर, सभी अतिथियों का शॉल ओढ़ाकर व स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मान किया गया। डॉ. शिव ओम अंबर ने संचालन शुरू करते ही श्रोताओं को शब्दों की बाजीगरी से एहसास करा दिया कि सम्मेलन सफलता की ऊंचाई पर पहुंचने के लिए तैयार है। कवि सम्मेलन के मंच पर उर्दू के दो सशक्त हस्ताक्षर प्रख्यात शायर राहत इंदौरी व डॉ. नवाज देवबंदी की उपस्थिति अद्भुत संयोग रही। साथ में शबीना अदीब ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी।
प्रसिद्ध हास्य व व्यंग्य कवि प्रदीप चौबे ने छोटी-छोटी कविताओं से बड़ी बात कही, जो सभी को पसंद आई।
 सम्मेलन का जोश भरा दौर शुरू हुआ तो वीर रस (ओज) के कवि अब्दुल गफ्फार और गौरव चौहान ने कविताओं से रौंगटे खड़े कर दिए।  डॉ. अंजना सिंह सेंगर के गीतों की मधुरता से श्रोताओं को रोमांचित किया। उन्होंने श्रोताओं की मांग के अनुरूप कविताएं प्रस्तुत कर दाद हासिल की। प्रशासनिक अधिकारियों ने भी सम्मेलन का खूब लुत्फ उठाया। डॉ. शिवओम अंबर भी श्रोताओं को आकर्षित करने में सफल रहे।
 

दो टूक : साहित्मंचों पर न ढूंढ़ें कविता व शायरी, मिलेगी निराशा
साहित्य समाज का दर्पण है। आजादी से लेकर आधुनिक परिवेश में साहित्य ने ही समाज को नई दिशा दिखाई। सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार किया। सियासत को भी बेखौफ होकर आइना दिखाया। आज के दौर में कविता और शायरी दरबारी नहीं रही है, बल्कि उससे बाहर आकर हुंकार भर रही है और मानवीय संवेदनाओं को कचोट रही है। साहित्य का कुछ अवमूल्यन भी हुआ है। साहित्यकार इससे आहत तो हैं, मगर निराश नहीं। वे इस दौर को अस्थायी ही मानते हैं। शुक्रवार को अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में आए देश के नामचीन कवियों-शायरों ने साहित्य के साथ अन्य ज्वलंत मुद्दों पर बेबाक राय रखी...

कवि सम्मेलन में काव्य, मुशायरे में शायरी न ढूंढ़ें
प्रसिद्ध शायर राहत इंदौरी का मानना है कि सोशल साइट पर कविता व शायरी के नाम पर तुकबंदी हो रही है, जो गलत है। मैंने करीब 40 फिल्मों में गीत लिखे, मगर इश्क मंचों से ही है। हिंदी सिनेमा से शब्द ही नहीं, उनकी गहराई भी गायब हो रही है। ऐसे में कम लिखता हूं। आज के दौर में कवि सम्मेलन में कविता और मुशायरे में शायरी की उम्मीद करने पर निराशा ही मिलेगी। वजह, आज की युवा पीढ़ी है।

शायरी हमेशा जिंदा रहती है
शायर व उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी के पूर्व चेयरमैन डॉ. नवाज देवबंदी का कहना है कि दौर आते हैं और खत्म हो जाते हैं। कविता व शायरी जिंदा रहती है। हिंदी व उर्दू दोनों को ही सम्मान जरूरी है। कवि सम्मेलन व मुशायरे इस काम बखूबी अंजाम दे रहे हैं। शायरी  न कोई उम्र रखती है, न मजहब। बस मुश्किल अल्फाज रखती है। शायरी में गहराई होना जरूरी है।

काका ने बनाया हास्य को प्रासंगिक
प्रसिद्ध हास्य-व्यंग्यकार प्रदीप चौबे का कहना है कि काका हाथरसी से पूर्व काव्य मंचों पर हास्य की स्थिति ऐसी थी, जैसे खाने के साथ अचार की होती है। मंचों पर ज्वलंत मुद्दों पर ही काव्य पाठ होता था। ऐसे मनोरंजन की चाह रखने वालों के लिए उन्हीं मुद्दों को हास्य में पिरोकर पेश किया। काका ने ही मंचों पर हास्य को प्रासंगिक बनाया और स्टेटस दिलाया। टीवी पर लाफ्टर चैलेंज के नाम पर नरक मचा हुआ है और कपिल शर्मा उसके सरदार हैं। सिद्धू जैसी ब्लाइंट स्टेटस व्यक्ति को हास्य का मतलब तक नहीं पता।

हिंदू हो या मुस्लिम तिरंगा ही हमारी पहचान
प्रसिद्ध शायर शबीना अदीब का कहना है कि कुछ लोग हिंदू-मुस्लिम के नाम पर सांप्रदायिक सौहार्द को खराब कर रहे हैं, मगर ये वो मुल्क है जहां के हर इंसान की पहचान ही तिरंगा है। हम हज यात्रा पर जाते हैं तो वहां पर हमारी पहचान तिरंगे से ही होती है। नफरत फैलाने वाले जान लें कि वे अपनी मंशा में कामयाब नहीं होंगे। हमारी संस्कृति में मुहब्बत ने हमेशा नफरत को जीता है।

हास्य का मतलब परिहास है, उपहास नहीं
हास्य व व्यंग्यकार सर्वेश अस्थाना का कहना है कि हास्य-व्यंग्य जैसा पैदा हुआ था वैसा ही है। मंचों पर फूहड़ता, द्विअर्थी संवाद व मिमिक्री करना कविता नहीं बल्कि हंसाने का अन्य तरीका है। बचपन में देखते थे कि नौटंकी का जोकर भी गंदी बातों से हंसाता था। हास्य का मतलब परिहास है, न कि उपहास। किसी कविता को सुनकर गुदगुदी के बाद आंसू आएं वही व्यंग्य है। तमाचा मारने को मन करे, मगर हंसकर रह जाएं, यही व्यंग्य है।

लाफ्टर चैलेंज में हो रही भांड़ गिरी
हास्य-व्यंग्यकार सुदीप भोला ने कपिल शर्मा व अन्य लाफ्टर चैलेंज को सिरदर्द बताया। कहा, वहां आदमी को औरत के कपड़े पहनाकर लोगों को हंसाया जा रहा है। ऐसे तो भांड़ करते हैं। हालांकि, टीवी पर कवियों से संबंधित अच्छे-अच्छे कार्यक्रम आ रहे हैं, जो लोगों को स्वस्थ मनोरंजन करते हैं।
 


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