बैलेेंस बिगड़ते ही डूबने लगेंगीं कश्तियां Aligarh news
नगर निगम के बिगड़े रिश्ते अब संवरने लगे हैं। विकास पुरुष ने जब से निगम की बागडोर संभाली तो पहला काम बिगड़े रिश्तों को संवारने का ही किया। चाहे वे रूठे हुए माननीय हों या पार्षद या फिर कारोबारी सभी को शीशे में उतारने की कोशिश चल रही है।
अलीगढ़, जेएनएन : नगर निगम के बिगड़े रिश्ते अब संवरने लगे हैं। ''''विकास पुरुष'''' ने जब से निगम की बागडोर संभाली तो पहला काम बिगड़े रिश्तों को संवारने का ही किया। चाहे वे रूठे हुए माननीय हों या पार्षद, या फिर कारोबारी, सभी को शीशे में उतारने की कोशिश चल रही है। अब रोज दरबार लगता है, जिसमें किसी न किसी माननीय, पार्षद की आमद रहती है। सुझाव, शिकायतों पर लंबी गुफ्तगू होती है। पहले ऐसा देखने काे कहां मिलता था। दरबार भी कभी कभार ही सजता था। ''''विकास पुरुष'''' भी जानते हैं कि बिगाड़ने से दाल गलने वाली नहीं है। कमियां हर जगह हैं। जिन दो महकमों की कश्ती पर वे सवार हैं, उनमें तमाम छेद हैं। बैलेेंस बिगाड़ा नहीं कि कश्तियां डूबने लगेंगी। ये बात पुराने साहब समझ नहीं पाए थे और सवालों में घिर गए। हालांकि, उन्होंने ढाई साल की लंबी पारी खेली थी। लेकिन, अरमान पूरे न कर सके। इनके अलावा कुछ और मुद्दे हैं जो आजकल काफी चर्चा में हैं। आप भी जानिए-
प्रधानी के साथ रुतबा भी गया
प्रधान जी, ये कहकर जब कोई पुकारता है तो ग्राम प्रधान फूले नहीं समाते। गांव में उनका अलग ही रुतबा होता है। शहर से जुड़ी ग्राम पंचायतों में भी कभी प्रधानों का रुतबा कायम था। काम पुलिस से जुड़ा हो या प्रशासन से, हर कोई इन्हीं के दर पर आता। अब न प्रधानी रही और न पंचायत, रुतबा भी जाता रहा। शहर का जबसे विस्तार हुआ है, प्रधानों का कद घट गया। 19 गांव नगर निगम सीमा में शामिल हो गए। लेकिन, कोई विकास कार्य नहीं हो सका। पहले ग्राम प्रधान अपने स्तर से ही समस्या निपटा देते थे, अब छोटी-छोटी परेशानियों के लिए ग्रामीणाें को अधिकारियों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। सड़क, सफाई, पानी जैसी मूलभूत समस्याओं के लिए दफ्तरों में गुहार लगानी पड़ती है। ''''प्रधान जी'''' यह कहकर चुप्पी साथ लेते हैं कि अब उनके हाथ में कुछ नहीं है। सब छिन गया। अफसर भी उनकी नहीं सुन रहे।
गायों की माैत पर जागा निगम
बरौला बाईपास पर नगर निगम की नंदी गोशाला में आठ गायों की मौत की वजह लापरवाही थी। लेकिन, निगम अफसर अभी तक किसी की जिम्मेदारी तय नहीं कर सके। एक गाय के शव की पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर बाकी सभी गायों की मौत की वजह पाॅलीथिन खाना मानी गई। अफसरों के इस तर्क ने मेडिकल साइंस की परिभाषा ही बदल दी। समय के साथ मामला भी दबता चला गया। लेकिन, अधिकारी सतर्क हो गए। नगर निगम की गोशाला में इतनी गायों का एक साथ मरना पहली घटना है। ऐसा पुन: न हो, इसके लिए पूरे इंतजाम किए जा रहे हैं। गोवंश के लिए नए कंबल, तिरपाल, अलाव की व्यवस्था कराई गई है। पशु चिकित्सकों की टीम को भी लगा दिया गया। कहीं कोई चूक न हो जाए, इसके लिए जिम्मेदारियांं बांट दी गई हैं। एक खास वर्ग को भी साधा जा रहा है, जिससे कि मुद्दा फिर न गरमा जाए।
जल निगम पर नहीं चला जोर
सड़कों का सत्यानाश कर चुके जल निगम पर ''''विकास पुरुष'''' भी दबाव नहीं बना पा रहे। अमृत योजना के नाम पर सड़कों को खोद डाला। फिर वाटर लाइन डालकर सड़कें बेतरतीब पाट दी गईं। जबकि, नियमों का हवाला देकर अफसरों ने दावे किए थे कि खोदी गई सड़क वैसी ही बनाई जाएंगी, जैसी थीं। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। आम जनता को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। कई स्थानों पर तो सड़क में डाली गई वाटर लाइन जगह-जगह से लीकेज है। दूषित पानी घरों में पहुंच रहा है। आए दिन इसकी शिकायतें मिलती हैं, लेकिन नगर निगम के बड़े अधिकारी जल निगम के आगे खुद को असहज महसूस कर रहे हैं। पिछले दिनों जल निगम के अधिकारियों काे समीक्षा बैठक में समस्याओं के निस्तारण की नसीहत दी गई थी, लेकिन बताई गईं एक भी समस्या का निस्तारण नहीं हो सका। पार्षद भी जल निगम की कार्यशैली से बहुत दुखी हैं।