स्मार्ट सिटी में विकसित होंगे 'जापानी जंगल', 28370 वर्गमीटर भूमि पर बनेगा सिटी फॉरेस्ट Aligarh news
जंगल भी जापान की मियावाकी तकनीक पर विकसित होंगे जहां दूर-दूर तक हरियाली फैली नजर आएगी। गांव असदपुर कयाम में 28370 वर्गमीटर भूमि चिह्नित कर काम शुरू हो चुका है।
अलीगढ़, [लोकेश शर्मा]। स्मार्ट सिटी में जंगल, बात कुछ अजीब लगती है, लेकिन नगर निगम ने कुछ ऐसी ही कार्ययोजना तैयार की है। जंगल भी जापान की 'मियावाकी' तकनीक पर विकसित होंगे, जहां दूर-दूर तक हरियाली फैली नजर आएगी। इस 'सिटी फॉरेस्ट' प्रोजेक्ट के लिए गांव असदपुर कयाम में 28370 वर्गमीटर भूमि चिह्नित कर काम शुरू हो चुका है। दूसरा प्रोजेक्ट तालानगरी में लगना है। मंडल का ये पहला प्रोजेक्ट है, जिसकी तैयारी में प्रशासनिक अमला भी जुटा हुआ है।
10 बीघा भूमि को कराया समतल
नगर निगम की सीमा में शामिल हुए गांव में असदपुर कयाम भी है। यहां गाटा संख्या 177 में 17770 व गाटा संख्या 183 में 10600 वर्गमीटर, कुल 28370 वर्गमीटर ग्राम सभा की भूमि खाली पड़ी थी। कमिश्नर जीएस प्रियदर्शी से सिटी फॉरेस्ट योजना के क्रियांवयन के निर्देश मिलने पर नगर निगम ने इसी भूमि का चयन कर लिया। कुछ लोगों ने यहां बाउंड्री खड़ी कर कब्जा कर लिया था, जिसे जेसीबी से ध्वस्त करा दिया गया। भूमि को समतल कराया जा रहा है। ताला नगरी में भी सिटी फॉरेस्ट की योजना है। यहां करीब 10 बीघा भूमि इसके लिए चिह्नित की गई है। यहां भी सघन पौधा रोपण किया जाएगा। सुरक्षा की ²ष्टि से सिटी फॉरेस्ट के चारों ओर तारबंदी या बाउंड्री कराई जाएगी।
ये है मियावाकी तकनीक
जापानी वनस्पति वैज्ञानिक और पर्यावरण विशेषज्ञ डी. अकीरा मियावाकी ने पौधा रोपण की इस अनोखी विधि को खोजा था। इस तकनीक में पौधों को एक दूसरे से दो से ढाई फुट की दूरी पर लगाया जाता है, जिससे पौधे पास-पास उगते हैं और सूर्य की किरणें सीधे धरती तक नहीं पहुंच पाती। रोशनी न मिलने से पौधों के आसपास जंगली घास नहीं उगती ओर मिट्टी में नमी बनी रहती है। यह भी सुनिश्चित होता है कि पौधों के ऊपरी भाग को ही सूर्य की रोशनी मिले, जिससे कि ये ऊपर की दिशा में ही बढ़ते हैं। मियावाकी तकनीक से पौधे 10 गुना तेजी से बढ़ते हैं। सिर्फ दो साल में 20 फुट तक बढ़ जाते हैं। यही नहीं, कम जगह में अधिक से अधिक पौधे लग जाते हैं।
वृक्ष हो जाते है आत्मनिर्भर
नगर आयुक्त सत्यप्रकाश पटेल ने बताया कि सिटी फॉरेस्ट की कार्य योजना तैयार है। जापान की मियावाकी तकनीक से इसे विकसित किया जाएगा। इस तकनीक से लाभ ये है कि दो सालों में वृक्ष आत्मनिर्भर हो जाते हैं। ये जंगल भूजल का स्तर भी सामान्य बनाए रखते हैं और वायु प्रदूषण को भी कम करते हैं।