इमरजेंसी ब्रेक लगाने पर 800 मीटर दूर ऐसे रुकती हैं ट्रेन, दौडऩा आसान पर रोकना मुश्किल
अमृतसर में रावण दहन मेले के दौरान ट्रेन की चपेट में आने से 61 लोगों की जान चली गई। हादसे के वायरल वीडियो में ट्रेन की स्पीड को लेकर लोग सवाल उठा रहे हैं।
हाथरस (हिमांशु गुप्ता)। अमृतसर में रावण दहन मेले के दौरान ट्रेन की चपेट में आने से 61 लोगों की जान चली गई। हादसे के वायरल वीडियो में ट्रेन की स्पीड को लेकर लोग सवाल उठा रहे हैं, लेकिन चालक चाह कर भी ट्रेन को नहीं रोक सकता था। इस संबंध में दैनिक जागरण से बातचीत में जिले के चार ट्रेन चालकों ने ट्रेन के ब्रेङ्क्षकग सिस्टम को लेकर स्थिति स्पष्ट की। कहा कि चालक अगर इमरजेंसी ब्रेक लगाता है तो भी ट्रेन 800 से 900 मीटर दूर जाकर रुकती है।
यह है ब्रेकिंग सिस्टम
उत्तर मध्य रेलवे में तैनात जिले के एक लोको पायलट के अनुसार ट्रेन के हर डिब्बे में एयर ब्रेक पाइप होता है। इसमें पांच किलोग्राम प्रति वर्ग सेमी प्रेशर रहता है। यह प्रेशर नायलॉन के ब्रेक शू को आगे पीछे करता है। जैसे ही प्रेशर कम किया जाता है तो ब्रेक शू पहिए से रगड़ खाता है और ट्रेन रुकने लगती है। सामान्यत: एक बार ट्रेन को रोकने में करीब एक किलोग्राम प्रति वर्ग सेमी प्रेशर खत्म होता है। स्टेशन पर ट्रेन रुकने के बाद हर डिब्बे के नीचे लगे कंप्रेशर से एक मिनट के भीतर फिर से प्रेशर पांच केवी कर देते हैं और ब्रेक शू पहिए से अलग हो जाते हैं।
सिग्नल के अनुसार चलते हैं लोको पायलट
उत्तर-पश्चिम रेलवे में तैनात जनपद के एक लोको पायलट के अनुसार ड्राइवर ट्रेन को सिग्नल के हिसाब से चलाते हैं। किसी आपातकाल की स्थिति में लोको पायलट और गार्ड ही ब्रेक लगाने का निर्णय लेते हैं। वास्तव में ट्रेन को दौड़ाना आसान है, उसे रोकना जटिल है। ब्रेक इस तरह लगाए जाते हैं कि गाड़ी सही जगह पर रुके। सिग्नल शूट (क्रॉस) होने पर नौकरी जाना तय है। ग्रीन सिग्नल होने पर ट्रेन नियत गति से दौड़ाते हैं। दो पीले सिग्नल होने पर ट्रेन को आइडल (आसान भाषा में न्यूट्रल) पर छोड़ देते हैं। ट्रेन की गति 30 से 40 किमी प्रति घंटा कर ली जाती है। एक पीला सिग्नल होने पर ट्रेन को रोकने के लिए ब्रेक लगाया जाता है, क्योंकि अगला सिग्नल लाल होना तय माना जाता है। इसी के हिसाब से रेड सिग्नल वाले पोल से पहले ट्रेन को रोक दिया जाता है।
इमरजेंसी ब्रेक लगाने पर 800 मीटर दूर रुकती हैं ट्रेनें
पश्चिम रेलवे में तैनात जिले के लोको पायलट के अनुसार 22 डिब्बों की सुपरफास्ट ट्रेन अधिकतम 110 किमी प्रति घंटा की स्पीड से दौड़ती है। इस स्पीड पर लोको पायलट अगर ब्रेक लगाता है तो एयर पाइप का प्रेशर खत्म हो जाता है और पहियों पर लगे ब्रेक शू रगड़ खाने लगते हैं। ऐसे में भी ट्रेन 800 से 900 मीटर जाकर रुकती है। वहीं ईएमयू जैसी ट्रेनों की ब्रेकिंग सिस्टम और अच्छा होता है। इसमें प्रेशर ब्रेक के साथ-साथ इलेक्ट्रो न्यूमेट्रिक ब्रेङ्क्षकग सिस्टम भी काम करता है। यह गाडिय़ां इमरजेंसी ब्रेक लगाने पर लगभग 600 मीटर की दूरी पर जाकर रुक जाती है। ड्राइवरों की मानें तो इमरजेंसी ब्रेक आपातकाल की स्थिति में प्रयोग किया जाता है। कई लोको पायलट होंगे जिन्हें पूरे कार्यकाल में एक भी बार इमरजेंसी ब्रेक न लगाना पड़ा हो।
सामने कुछ आने पर ट्रेन क्यों नहीं रोकते
आमतौर पर लोग, जानवर, गाडिय़ां अचानक ट्रेन के सामने आ जाते हैं। ऐसे में लोको पायलट के पास इमरजेंसी ब्रेक लगाने का समय नहीं होता। इमरजेंसी ब्रेक लगाने पर भी काफी दूर जाकर रुकती है। ऐसे में चालक चाह कर भी इमरजेंसी ब्रेक नहीं लगा पाता। आम तौर पर रात के समय में दृश्यता काफी कम हो जाती है। चालक को ट्रेन की लाइट के दायरे में आने वाले केवल एक दो पोल तक का ही दिखाई देता है। अगर आधा किलोमीटर आगे कोई खतरा है तो लोको पायलट उसे नहीं देख पाता। ऐसे में जब अचानक वह चीज सामने आती है तो चाहकर भी लोको पायलट इमरजेंसी ब्रेक नहीं लगा पाता।
इमरजेंसी ब्रेक की तरह है चेन पुलिंग
ट्रेन में कोई चेन पुङ्क्षलग करता है तो यह इमरजेंसी ब्रेक की तरह काम करती है। चेन खींचने पर एयर पाइप का प्रेशर खत्म हो जाता है और सभी ब्रेक शू पहिए से रगडऩे लगते हैं। ऐसे में 100 की स्पीड से दौड़ रही ट्रेन 800 से 900 मीटर पर जाकर रुक जाती है। हर डिब्बे के नीचे लगे कंप्रेशर से प्रेशर भरा जाता है, तब ट्रेन आगे बढ़ती है।
मालगाड़ी का लोड प्रभावित करता है ब्रेक
पूर्वोत्तर रेलवे में तैनात जिले के असिस्टेंट लोको पायलट ने बताया कि मालगाड़ी में औसतन 58 से 60 वैगन रहते हैं। इसमें करीब पांच हजार टन तक लोड रहता है। औसतन स्पीड 60 से 70 किमी प्रति घंटे की स्पीड पर अगर लोको पायलट इमरजेंसी ब्रेक लगाता है तो गाड़ी 1100 से 1200 मीटर दूरी पर जाकर रुकती है। इसकी वजह लोड के कारण प्रेशर सिलेंडर डैमेज हो जाते हैं जिससे गाड़ी देर में रुकती है।