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स्याही के सुर : ये दाग अच्छा नहीं थाAligarh News

मंडलायुक्त डॉ. अजयदीप सिंह ने 31 दिसंबर 2019 को सरकारी सेवा में अपने कार्यकाल के अंतिम वक्त में दागदार पूर्व सीएमओ डॉ. एमएल अग्रवाल पर खूब नजर-ए-इनायत की।

By Sandeep SaxenaEdited By: Published: Thu, 02 Jan 2020 05:40 PM (IST)Updated: Fri, 03 Jan 2020 09:13 AM (IST)
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अवधेश माहेश्वरी : नव वर्ष 2020 के पहले दिन सूरज सिंदूरी था। शुभ शुरुआत की उम्मीदें थीं, तभी एक आदेश वाट्सएप पर आया तो चौंकने की बारी थी। मंडलायुक्त डॉ. अजयदीप सिंह ने 31 दिसंबर 2019 को सरकारी सेवा में अपने कार्यकाल के अंतिम वक्त में जिस फाइल पर दस्तखत किए, उसमें दागदार पूर्व सीएमओ डॉ. एमएल अग्रवाल पर खूब नजर-ए-इनायत की। उन्हेें एटा के वरिष्ठ परामर्शदाता के पद से यहां संयुक्त निदेशक (चिकित्सा एवं स्वास्थ्य) के पद पर अस्थाई तैनाती का आदेश जारी कर दिया। मंडलायुक्त को विदाई के वक्त ऐसे अधिकारी से इतनी हमदर्दी क्यों हुई, जिसके दामन पर दाग ही दाग हैैं? इसका जवाब हर कोई चाहता है। पूर्व सीएमओ अलीगढ़ मेंं लंबे वक्त रहे हैैं। उनका कार्यकाल विवादों से भरपूर रहा है। उन पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप मामूली नहीं। उनकी टेंडर शर्तों की बदौलत ही अतरौली के 100 शैय्या अस्पताल के मिले नौ करोड़ रुपये घोटाले में डूब गए।

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विधायक भी जानते हैं सब कुछ

जरा सोचिए, 100 करोड़ रुपये अस्पताल में सुविधा उपलब्ध कराने में लगता, तो न जाने कितने गरीबों को इलाज के लिए निजी अस्पतालों में नहीं भागना पड़ता। यहां के विधायक भी जानते हैैं कि  पूर्व सीएमओ के प्रशासन की जांच में दोषी पाए जाने के बाद भी तबादले के लिए किस तरह कोशिशें करनी पड़ीं।

नहीं छेडऩी थी 'ऑफ स्टंप' के बाहर की गेंद

मंडलायुक्त ने जाने से पहले पूर्व सीएमओ के यहां रहने का रास्ता खोल दिया, जिससे बहुत कुछ निरर्थक हो गया। ऐसे आदेशों की 'आग' से ही उठने वाले 'धुएं' को देखकर कहा जाता है, कि कुछ तो 'अंदर' की बात होगी। परंतु मंडलायुक्त की छवि अच्छी रही है, संभव है कि आखिरी वक्त में उन पर ऊपर का कोई दबाव रहा हो लेकिन भूतपूर्व हो चुके मंडलायुक्त तो 'क्रिकेट' खूब जानते हैैं। किसी कुशल क्रिकेटर की तरह वह ऐसी गेंद से छेड़छाड़ से बच सकते थे, जो 'ऑफ स्टंप' के बहुत बाहर थी।

आखिर उनको यह अच्छी तरह पता था कि पूर्व सीएमओ के भ्रष्टाचार की जांच लंबित हैैं, उन्हें वह यहां रहते हुए प्रभावित करने की कोई कोशिश नहीं छोड़ेंगे। वैसे भी संयुक्त निदेशक जैसे अधिकारी के खिलाफ सुबूत उनके अधीन का कर्मचारी ही कैसे दे सकता है? यही नहीं प्रशासनिक अधिकारियों के ऐसे आदेश प्रशासन और जनता के बीच 'विश्वास की कड़ी ' को तोड़ते हैैं, जिससे उन्हें बचना चाहिए था।

सुबूतों को प्रभावित नहीं कर सकेंगे पूर्व सीएमओ

हां, एक दागदार को बचाने के लिए जारी हो गए आदेश के बाद सीएमओ गीता प्रधान ने जो किया वह योगी सरकार की प्रशासन में शुचिता की कोशिशोंं को मजबूती देने वाला रहा। उन्होंने शासन में वार्ता कर तबादला आदेश को प्रभावी होने से रोक दिया। शासन में भी जिस तरह इस आदेश पर हैरानी व्यक्त की गई, वह बताती है कि उसे भी विश्वास में नहीं लिया गया। खैर, सुबह की भूल शाम तक सुधर जाए तो यह खुशनुमा ही है। साथ ही यह भी खुशनुमा है कि पूर्व सीएमओ अब जांच में सुबूतों को तो प्रभावित नहीं कर सकेंगे। घोटाले में जो भी दोषी हैैं, उनके खिलाफ कार्रवाई के रास्ते आगे बढ़ेंगे।


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