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हाथरस में दवा कंपनियों और चिकित्‍सकों की मिलीभगत में पिस रहे गरीब मरीज

सरकार ने हर जिले में जन औषधि केंद्र खोले हैं ताकि गरीब मरीजों को महंगी दवाएं यहां सस्‍ते रेट पर मिलें लेकिन चिकित्‍सकों व दवा विक्रेताओं की मिलीभगत के चलते ये गरीबों को नसीब नहीं हो पातीं। चिकित्‍सक जानबूझ कर महंगी दवाएं लिख रहे हैं।

By Anil KushwahaEdited By: Published: Tue, 28 Jun 2022 07:03 AM (IST)Updated: Tue, 28 Jun 2022 07:44 AM (IST)
हाथरस में दवा कंपनियों और चिकित्‍सकों की मिलीभगत में पिस रहे गरीब मरीज
शहर के निजी अस्पताल पर मेडिकल स्टोरों पर चिकित्सक द्वारा मरीजों को महंगी दवा लिखी जा रही है।

हाथरस, जागरण संवाददाता। शहर के निजी अस्पताल पर मेडिकल स्टोरों पर चिकित्सक द्वारा मरीजों को महंगी दवा लिखी जा रही है। जो दवाएं चिकित्सक द्वारा मरीजों को लिखी जा रही है। इसी साल्ट की सस्ती दवा बाजार के मेडिकल स्टारों पर उपलब्ध है। चिकित्सक महंगी दवा लिखते हैं और यह दवा अस्पताल के मेडिकल स्टोर और क्लीनिक के बाहर मेडिकल स्टोर पर ही मिलती है। फर्क ये है कि जो दवा अस्पताल के मेडिकल स्टोर पर है उसकी कीमत बाजार के मेडिकल स्टोर से ज्यादा रहती है।

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दवा कंपनियो और चिकित्‍सकों की मिलीभगत

दवा कंपनियां की मिलीभगत से निजी चिकित्सक द्वारा लिखी गई दवाएं को लेने के लिए मजबूरन मरीजों को महंगी दवा लेने पड़ रही है। सभी चिकित्सक द्वारा मरीजों के पर्चे पर जेनेरिक दवा नहीं लिखी जा रही है। अस्पताल में जेनेरिक दवा नहीं है।

हाथरस में दर्जनों नर्सिंग होम

जिले में दर्जनों नर्सिंग होम हैं। नर्सिंग होम परिसर और आसपास अनगिनत मेडिकल स्टोर खुले हैं। अस्पताल के आसपास खुले मेडिकल स्टोरों में किस कंपनी की दवाएं, साल्ट की बिक्री होनी है इसका निर्धारण अस्पताल ही करते हैं। कोई मरीज निजी अस्पताल के चिकित्सक की लिखी दवाएं बाजार से खरीदना भी चाहे तो संबंधित साल्ट और कंपनी की दवाएं मिलनी मुश्किल हो जाती हैं। मरीजों को मजबूरी में निजी अस्पताल परिसर और आसपास खुले स्टोरों से दवा खरीदनी पड़ती है। जन औषधि केंद्र पर भी मरीज चिकित्सक की लिखी दवा के साल्ट नहीं मिलते हैं। इस कारण मरीज वापस निजी चिकित्सक के मेडिकल स्टोर से मंहगे दामों में दवा खरीदते हैं।

प्रिंट रेट पर बिकती हैं दवाएं

निजी अस्पताल और आसपास के मेडिकल स्टोर पर दवा प्रिंट रेट पर बिकती हैं, जबकि बाजार में ङ्क्षप्रट रेट की तुलना में 30 फीसदी तक सस्ते मिल जाते हैं। एक मेडिकल स्टोर संचालक ने बताया कि निजी अस्पताल और दवा कंपनियों की सांठगांठ से मरीजों की जेब काटी जाती है। मरीज के आपरेशन होने की स्थिति में आधा घंटे पहले तीमारदार को दवाएं की लिस्ट थमा दी जाती हैं। तीमारदार जल्दी में अस्पताल परिसर और नजदीकी मेडिकल स्टोर से उनकी खरीद करता है। जिनकी कीमत उसकी क्वालिटी एवं कंपनी पर निर्भर है। अस्पताल के आसपास स्टोरों में ङ्क्षप्रट रेट दवाएं बिकते हैं।

बोले ग्राहक

बेटे की पत्नी को इन्फेक्शन है निजी चिकित्सक को दिखाया गया था। वहां अस्पताल के मेडिकल में बाहर के मेडिकल स्टोर से दोगनी महंगी थीं इस कारण बाहर के मेडिकल स्टोर से दवा ली है

विजय, ग्राहक

चेहरे पर मुंहासे है, इसके लिए एक निजी चिकित्सक को दिखाया था। दिखाने के बाद निजी अस्पताल के मेडिकल स्टोर परदिया तो दवा एक हजार रुपये की बताई। बाहर जब दवा लेने गया तो दवा 750 रुपये की बताई।

- मनीष कुमार ग्राहक


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