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अलीगढ़ में बगैर डॉक्टर के ऐसे हो रही है 'डायलिसिस ' , ये है हकीकत

गुर्दे की कार्यक्षमता घटने व फेल्योर की स्थिति में मरीज को महीने में 6-8 बार तक डायलिसिस करानी पड़ती है। प्राइवेट अस्पताल में एक बार डायलिसिस का खर्च सामान्यत: 1500 से 3000 रुपये है।

By Mukesh ChaturvediEdited By: Published: Sat, 17 Nov 2018 11:47 AM (IST)Updated: Sat, 17 Nov 2018 11:47 AM (IST)
अलीगढ़ में बगैर डॉक्टर के ऐसे हो रही है 'डायलिसिस ' , ये है हकीकत
अलीगढ़ में बगैर डॉक्टर के ऐसे हो रही है 'डायलिसिस ' , ये है हकीकत

अलीगढ़ (विनोद भारती)। गुर्दे की कार्यक्षमता घटने व फेल्योर की स्थिति में मरीज को महीने में 6-8 बार तक डायलिसिस करानी पड़ती है। प्राइवेट अस्पताल में एक बार डायलिसिस का खर्च सामान्यत: 1500 से 3000 रुपये है। ऐसे में गरीब मरीजों के पास मौत का इंतजार करने के अलावा कोई चारा नहीं बचता। सरकार ने दीनदयाल अस्पताल में 20 अप्रैल 2018 को पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) मॉडल पर 10 बेड की डायलिसिस यूनिट शुरू की। अरसे से बीमार व्यवस्था की 'डायलिसिस' करना भूल गई। ऑक्सीजन के अभाव में यहां कई मरीजों की मौत हो गई। नेफ्रोलॉजिस्ट तो छोडि़ए मरीजों की परेशानी देखने के लिए एमबीबीएस डॉक्टर तक नहीं। नतीजतन, टेक्नीशियन, पैरामेडिकल स्टाफ व सफाई कर्मचारी ही डायलिसिस करा रहे हैं।

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दवाएं नहीं होती कारगर

सामान्यत: जब किडनी की कार्य क्षमता 80-90 फीसद तक घट जाती है और पेशाब का बनना बहुत कम हो जाता है, तब विषाक्त पदार्थ शरीर में जमा होने लगते हैं। इससे थकान, सूजन, मतली, उल्टी और सांस फूलने जैसे लक्षण दिखाई देने लगते हैं। ऐसी स्थिति में दवाएं पूर्ण कारगर नहीं होतीं और डायलिसिस कराने की जरूरत पड़ती है। कई बार लंबे समय से डायबिटीज व उच्च रक्तचाप के मरीजों को भी डायलिसिस की जरूरत पड़ती है। गरीब तबके के लिए लगातार डायलिसिस कराना संभव नहीं।

मरीज बाहर से खरीदते हैं सामान

लिहाजा, सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत बनारस के हेरिटेज ग्र्रुप ऑफ  हॉस्पिटल के सहयोग से दीनदयाल अस्पताल में डायलिसिस यूनिट शुरू की। सरकार सेवा प्रदाता एजेंसी को प्रति पॉजिटिव मरीज की डायलिसिस पर 1600 रुपये व सामान्य पर 1049 रुपये भुगतान कर रही है। मगर, स्टाफ द्वारा 750 रुपये डायलाइजर, 300 रुपये पुटेशियम व काफी पैसा निडिल, टेप आदि पर ही खर्चा करा लिया जाता है। यह सामान मरीज को खुद बाहर से खरीदकर लाना पड़ता है। संक्रमण से बेफिक्र एक ही चादर, दस्ताने व अन्य सामान कई मरीजों पर इस्तेमाल हो रहा है। स्टाफ की कार्यशैली से मरीजों व तीमारदारों में नाराजगी है, मगर कोई सुनने वाला नहीं। हैरत की बात ये है कि कोई सक्षम अधिकारी यूनिट की सुध लेने नहीं पहुंचा।

मरीजों की पीड़ा

पहले होती है मेडिकल में जांच

आर्य नगर मडराक के रहने वाले वीर प्रकाश का कहना है कि मेरी पत्नी अर्चना (33) दो साल से डायलिसिस पर है। यहां डॉक्टर नहीं हैं, इसलिए डायलिसिस से पहले मेडिकल कॉलेज में जांच करानी पड़ती है। डायलिसिस के दौरान तबियत बिगड़ जाए तो यहां कौन संभालेंगे? 

निजी हॉस्पिटल में कराया ऑपरेशन

कनवरीगंज के हिमांशु का कहना है कि पिता सुभाष चंद (63) की डायलिसिस करा रहा हूं। विशेषज्ञ न होने पर जांच दिल्ली के सर गंगाराम हॉस्पिटल या मिथराज हॉस्पिटल जाकर करानी पड़ती है। स्टाफ हर माह करीब 2000 रुपये सर्जिकल सामान पर खर्च करा लेता है। मुफ्त डायलिसिस बस नाम की है। ऑक्सीजन तक की व्यवस्था नहीं। एक बार तो गलत निडिल लगने पर प्राइवेट हॉस्पिटल में जाकर ऑपरेशन कराना पड़ा।

उच्च अधिकारियों को दे दी है जानकारी

सीएमएस डॉ. याचना शर्मा का कहना है कि यूनिट पर नियुक्त डॉक्टर वीडियो कॉलिंग के माध्यम से नेफ्रोलॉजिस्ट के संपर्क में रहती है, मगर कुछ माह पूर्व वह छुïट्टी लेकर पीजी करने चली गईं। उच्चाधिकारियों को अवगत करा दिया है। अन्य समस्याओं से संबंधित कोई शिकायत नहीं मिली है।


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