पानी के साथ समय भी बचा रहे किसान, अलीगढ़ के इगलास क्षेत्र में 50 किसानों ने अपनाई टपक सिंचाई विधि Aligarh News
दिनों दिन गिरते भूजल स्तर की समस्या विकराल रुप धारण करती जा रही है। सबसे ज्यादा किसानों को पानी की समस्या से जूझना पड़ रहा है। इगलास क्षेत्र के किसानों ने धरती की कोख को खाली होने से बचाने की पहल शुरु कर दी है।
अलीगढ़, जेएनएन। दिनों दिन गिरते भूजल स्तर की समस्या विकराल रुप धारण करती जा रही है। सबसे ज्यादा किसानों को पानी की समस्या से जूझना पड़ रहा है। इगलास क्षेत्र के किसानों ने धरती की कोख को खाली होने से बचाने की पहल शुरु कर दी है। किसान बूंद-बूंद से सिंचाई कर 60 प्रतिशत पानी की बचत कर रहे हैं। ये किसान टपक सिंचाई पद्धति (ड्रिप इरिगेशन) को अपना रहे हैं। इस विधि से पानी की खपत बहुत कम होती है और उत्पादन अच्छा रहता है।
टपक विधि से सिंचाई कर रहे गांव ताहरपुर के किसान सुभाष चंद्र शर्मा बताते हैं कि इस सिस्टम को लगवाने के लिए 90 प्रतिशत अनुदान मिला था। अब सिंचाई करने के लिए मजदूरों की आवश्यकता नहीं पड़ रही है। वह स्वयं ही पूरे खेत की सिंचाई कुछ घंटों में ही कर लेते हैं। पहले छह घंटे में एक हेक्टेयर खेत की सिंचाई होती थी। इस विधि से एक घंटे में कई हेक्टेयर खेत की सिंचाई हो जाती है। इस विधि से पानी व समय की भरपूर बचत है।
क्या है टपक सिंचाई विधि
इस विधि में नलकूप से खेत तक जमीन में दो फिट नीचे पाइप लाइन बिछाई जाती है। मुख्य पाइप लाइन से जुड़े छोटे पाइप खेत में पौधों के पास डाले जाते हैं। इन पाइपों में जगह-जगह छोटे-छोटे छिद्र होते हैं। इनके माध्यम से पौधे तक आवश्यकता के अनुसार पानी पहुंचता है।
प्रति हेक्टेयर की पांच हजार रुपये की बचत
ड्रिप सिस्टम से सिंचाई करने वाले किसानों का कहना है कि आलू की खेती में पांच सिंचाई करनी होती है। अब मजदूर नहीं रखने पड़ रहे। मजदूरी के लगभग पांच हजार रुपये प्रति हेक्टेयर की बचत हुई है। बिजली की बचत अलग से। क्षेत्र के गांव बसेली के उदयवीर सिंह, नगला चूरा के दलवीर सिंह, नवलपुर के राकेश कुमार, सेवनपुर के खुशीराम, कारस के उजागर सिंह, खिराबर के पूरन सिंह, हसनगढ़ के राजवीर सिंह, हरौथा के देवी प्रसाद, गिंदौरा के प्रवीन भारद्वाज, नगला अहिवासी के देवीराम शर्मा सहित लगभग 50 किसानों ने ड्रिप इरिगेशन सिस्टम को अपने खेतों में लगवाया है।
टपक सिंचाई प्रणाली सिंचाई को बेहतर साधन है। इससे न सिर्फ पानी की बचत होती है, बल्कि समय और पैसा भी बचता है। किसानों को इसके लिए जागरुक किया है। कई किसान इसी प्रणाली से सिंचाई कर रहे हैं।
एनके सहानिया, जिला उद्यान अधिकारी