AMU के प्रोफेसर से जुड़े मामले में High Court का अहम फैसला, आठ साल बाद बेटी को गले लगाएंगे माता-पिता
एएमयू इतिहास विभाग के एक प्रोफेसर से जुड़े मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि बच्चे का सर्वांगीण विकास जन्म देने वाले मां-बाप के सानिध्य में ही हो सकता है।
अलीगढ़, जागरण संवाददाता। एएमयू इतिहास विभाग के AMU professor से जुड़े मामले में इलाहाबाद High Court ने अहम फैसला सुनाया है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि बच्चे का सर्वांगीण विकास जन्म देने वाले मां-बाप के सानिध्य में ही हो सकता है। उसे यह जानने का अधिकार है कि उसके जन्मदाता माता-पिता कौन हैं? उसका यह भी विधिक अधिकार है कि वह बालिग होने तक जन्म देने वाले माता पिता के संरक्षण में रहे। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल और न्यायमूर्ति साधना रानी ठाकुर की खंडपीठ ने नसरीन बेगम तथा मोहम्मद सज्जाद की अपील पर दिए गए फैसले में की है।
एक माह का दिया समय
High Court की खंडपीठ ने फिलहाल मामा-मामी के साथ रह रही बच्ची की अभिरक्षा जन्म देने वाले बायोलाजिकल माता पिता को सौंपने का निर्देश दिया है। खंडपीठ ने परिवार अदालत अलीगढ़ से कहा है कि वह साढ़े आठ साल की बच्ची को उसके नैसर्गिक माता-पिता को सौंपने की कार्यवाही एक माह में पूरी कराए।
मामा मामी को सौंपी गई थी बच्ची
AMU में इतिहास विभाग के प्रोफेसर मोहम्मद सज्जाद को उनकी बहन नसरीन बेगम अपनी बच्ची देकर इंजीनियर पति "गुफरान निश्तर" के साथ सऊदी चली गई थीं। गुफरान मल्टीनेशनल कंस्ट्रक्शन कंपनी में इंजीनियर हैं। आरोप है कि बच्ची मिलने के बाद नि:संतान सज्जाद और उसकी पत्नी का रंग-ढंग बदल गया। बायोलाजिकल माता-पिता को घर से धक्का देकर निकाल दिया। गुफरान ने अलीगढ़ की फैमिली अदालत में सज्जाद के खिलाफ 2019 में केस किया। कोरोना के कारण दो साल पूरी तरह सुनवाई नहीं हुई।
सुप्रीम कोर्ट तक गया था मामला
फैमिली कोर्ट में लंबी-लंबी तारीख मिलती रही। इस पर नसरीन व गुफरान सुप्रीम कोर्ट गए। शीर्ष अदालत ने एक महीने के अंदर फैसला सुनाने का आदेश दिया। इसके बाद फैमिली कोर्ट अलीगढ़ ने अजीबोगरीब फैसला सुनाया। कहा, ‘प्रोफेसर सज्जाद के पास चूंकि बच्ची छह महीने की उम्र से ही है इसलिए 18 साल यानी बालिग होने तक वह उन्हीं (प्रोफेसर सज्जाद) के पास रहेगी।
हाईकोर्ट ने लगाई फटकार
हर गर्मी की छुट्टी में मात्र 15 दिन के लिए अपने ओरीजिनल (बायोलाजिकल) माता-पिता के पास रहेगी।’ इस फैसले के खिलाफ गुफरान और प्रो. सज्जाद ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपील की। गुफरान सगी बेटी वापस पाने के लिए पहुंचे, जबकि सज्जाद इसलिए कि 15 दिन के लिए भी बच्ची बायोलाजिकल माता-पिता को न देनी पड़े। सज्जाद को High Court की खंडपीठ ने यह कहते हुए फटकार लगाई कि सबसे पहले बच्ची 15 दिन के लिए वास्तविक माता-पिता को दें।
सऊदी का है जन्म प्रमाण पत्र
आरोप है कि सज्जाद ने जाली दस्तावेज भी बनवाया है। बिहार से बनवाए जन्म प्रमाणपत्र में खुद को बच्ची का पिता और पत्नी को मां दर्शाया है, जबकि बच्ची का वास्तविक जन्म प्रमाणपत्र सऊदी का है। उसका पासपोर्ट ओरोजिनल बर्थ सर्टिफिकेट पर बना है, जो गुफरान के पास है।