अलीगढ़, जेएनएन : विश्व में होने वाली मौत के लिए जिम्मेदार 10 बीमारियों में अभी भी टीबी का स्थान है। यह जानते हुए भी कि इस बीमारी का इलाज संभव है और इससे बचा जा सकता है। एक अनुमान के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर 2019 में एक लाख लोग टीबी की चपेट में आ गए और इससे लगभग 12 लाख लोगों की मौत हो गई। इसके अलावा एचआइवी-टीबी के दोहरे संक्रमण से दो लाख लोगों की मौत हुई। दुनियाभर में टीबी के मामलों का 25 फीसदी भारत में ही है और एमडीआर टीबी के सभी मामलों में से 27 फीसदी मामले हमारे देश में ही हैं (विश्व में यह सर्वाधिक है)। यह जानकारी मैक्स हास्पिटल, वैशाली के पल्मनोलाजी के प्रमुख कंसल्टेंट डा. शरद जोशी ने। उन्होंने कहा कि टीबी का इलाज और बचाव संभव है, बशर्ते कि इसकी शुरुआती पहचान करा ली जाए और उचित इलाज शुरू किया जाए। वर्ल्ड टीबी दिवस पर और क्या कुछ बताया उन्होंने आइए जानें...
जागरूकता दिखाएं लोग
डा. शरद के अनुसार यदि लोग जागरूक हों तो कई लोगों की जान बच सकती है और परिवारों का खर्च भी बच सकता है। कोविड 19 के मामले की तरह ही इस बीमारी को असाध्य मान लेने या छिपाने से बड़ी तबाही मच सकती है। कई सारी प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद सरकार जन स्वास्थ्य लक्ष्य पाने के लिए प्रतिबद्ध है और सभी डाट्स सेंटरों, डॉट्स प्लस सेंटरों तथा सरकारी अस्पतालों में निश्शुल्क इलाज मुहैया करा रही है।
पहचान बड़ी चुनौती
टीबी के मरीजों की पहचान तथा इलाज में सबसे बड़ी चुनौती और चिंता साधनों के अभाव को लेकर है। हाल तक पांच में से सिर्फ एक मरीज को ही अच्छी स्वास्थ्य सुविधा नसीब हो पाती थी और कई वर्षों के कष्टकारी और विषाक्त उपचार प्रक्रिया के बाद भी सात अलग-अलग दवाइयों पर निर्भर रहना पड़ता है। भारत में टीबी के बढ़ते मामले खतरनाक स्तर पर पहुंच रहे हैं और स्थिति बदतर होती जा रही है। लिहाजा लोगों में यह जानकारी बढ़ाना जरूरी है कि वे तुरंत इसका इलाज कराएं और भविष्य में बीमारी को बढ़ने से रोकें।
कोरोना काल में मिली मदद
डा. शरद जोशी ने कहा, लाकडाउन के दौरान सामाजिक दूरी और फेस मास्क के इस्तेमाल से सांस संबंधी कई अन्य बीमारियों के साथ-साथ क्षयरोग के संक्रमण फैलने की कड़ी भी तोड़ने में मदद मिली है। भारत सरकार ने इस रोग की रोकथाम, पहचान तथा इलाज के लिए पर्याप्त कदम उठाए हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने संशोधित राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम के तहत वर्ष 2025 तक टीबी के 90 फीसदी मामले खत्म करने और 2030 तक इस बीमारी के कारण होने वाली मौत में 95 फीसदी तक कमी लाने का लक्ष्य रखा है। सबसे पहले इसके लिए खुले में कफ फेंकने और थूकने पर रोक लगाना जरूरी है।