मैं नीम नदी...आंचल फैलाकर मांग रही जीवन की भीख aligarh news
मैं अतीत हूं पहले लोग नीम नदी बोलते थे अब विलुप्त हूं। मेरा दर्द सुनेंगे तो रो पड़ेंगे। मुझे अब कोई पहचानता नहीं।
राजनारायण सिंह , अलीगढ़। मैं अतीत हूं, पहले लोग नीम नदी बोलते थे, अब विलुप्त हूं। मेरा दर्द सुनेंगे तो रो पड़ेंगे। मुझे अब कोई पहचानता नहीं। नई पीढ़ी तो नाम तक नहीं जानती। विकास की परिभाषा गढऩे वालों ने छलावा किया है। मेरी छाती पर कब्जा करके इमारतें खड़ी कर दीं। अब मैं तड़पती हूं, छटपटाती हूं आजाद होने के लिए, मगर कोई मेरी तकलीफ नहीं सुनता। मैं पूछती हूं, आखिर कसूर क्या था? दो दशक पहले मैं 'अविरलÓ कल-कल बहती थी। इन बारिश के दिनों में तो मेरा वेग रोकना मुश्किल होता था, 'धारा प्रवाह थी। बुलंदशहर की सीमा से अलीगढ़ में होकर कासगंज की ओर जाती थी। हां, छोटी थी, इसलिए किसी गांव को परेशान नहीं किया, बाढ़ नहीं बनी। मक्का-ज्वार की फसल मेरे आंगन में लहलहाती थीं। पशु पानी पीते थे। आसपास पक्षियों का बसेरा था। मेरे घाट कच्चे सही पर लोग आकर सुकून से बैठते थे। अब किसे सुनाऊं अपना दुखड़ा। सुना है कासगंज जिले में 'मेरी सहेली बूढ़ी गंगा के लिए 25 हजार लोग कुदाल-फावड़ा लेकर उतर पड़े हैं....क्या मुझे बचाने कोई भगीरथ आएगा?
अब तो नई पीढ़ी नाम भी नहीं जानती
मैं बुलंदशहर की सीमा से अतरौली तहसील के मलहपुर गांव से अलीगढ़ में प्रवेश करती थीं। कनकपुर, पनेहरा, नगला बंजारा, खड़़ौआ, आलमपुर, जिरौली होते हुए कासगंज जिला (पहले एटा) में प्रवेश करती थी। अलीगढ़ में मेरी लंबाई करीब 40 किमी थी। चौड़ाई भी 50 से 100 मीटर के करीब थी। आज भी मेरे निशान देखे जा सकते हैं।
कब्जे से अस्तित्व गायब
कनकपुर, पनेहरा आदि गांवों में मुझ पर कब्जा कर लिया गया। कुछ जगह लोगों ने काट-काटकर खेतों में मिला लिया। अब बारिश के दिनों में मुझे बहाव नहीं मिलता था, इसलिए मेरी कद्र करनी छोड़ दी।
ये हैं जिम्मेदार
मेरा अस्तित्व मिटाने मेें सबसे अधिक जिम्मेदार सरकारी मशीनरी है। मेरे ऊपर कब्जा होता गया तहसीलदार, बीडीओ और लेखपाल तमाशबीन बने रहे? किसे नहीं पता है कि ये किस बात पर दौड़ते हैं। चक और गाटा में हेरफेर करनी हो, कहीं पैसों की उम्मीद जगती है तो दौड़ पड़ते हैं, मगर मेरी किसी ने सुध नहीं ली। मैं सिर्फ नदी नहीं हूं। आप सभी की 'मां भी हूं। गिड़गिड़ा रही हूं, मेरी हत्या होते मत देखो। कासगंज में जिस प्रकार से बूढ़ी गंगा के लिए हजार हाथों में कुदाल-फावड़े उठ खड़े हुए हैं, उसी प्रकार से तुम भी तैयार हो जाओ। पूरे जिले में 44 लाख मेरे 'बेटी-बेटों से भरापूरा परिवार है। यदि दैनिक जागरण के साथ आप सभी ने 'आधा गिलास पानीÓ भी डाला तो मैं लबालब हो जाऊंगी। फिर वही 'प्रवाह दे दो। अपनी मां को 'जीवनदान दे दो....जीवनदान दे दो...बस...
रास्ता बदलना पड़ता था : शर्मा
पर्यावरणविद् सुबोधनंदन शर्मा का मूल गांव बुलंदशहर जिले के डिबाई में है। नीम नदी के रास्ते से कासिमपुर आता था। बारिश के दिनों में नदी उफान रहती थी। मुझे रास्ता बदलना पड़ता था। लबालब पानी मैंने अपनी आंखों से देखा है। सच, अब गुम हो गई नीम नदी को देखकर बहुत तकलीफ होती है।
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