Move to Jagran APP

होर्डिंग्स वाले नेताजी आए हैं

चुनाव के समय कुर्ता-पैजामा की बिक्री खूब हो रही है। खादी झाड़कर चल रही है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 08 Dec 2021 09:15 PM (IST)Updated: Wed, 08 Dec 2021 09:15 PM (IST)
होर्डिंग्स वाले नेताजी आए हैं
होर्डिंग्स वाले नेताजी आए हैं

राज नारायण सिंह, अलीगढ़: चुनाव के समय कुर्ता-पैजामा की बिक्री खूब हो रही है। खादी झाड़कर चल रही है। ठंड का मौसम है तो जैकेट भी कुर्ते पर खूब जम रही है। शहर होर्डिंग्स-बैनर से पट गया है। तमाम होर्डिंग्स पर नेताजी को देखकर जनता पहचान ही नहीं पा रही। उसके मन में एकाएक सवाल कोंध उठता है। आखिर ये कहां से प्रगट हो गए, इन्हें तो साढ़े चार साल में एक बार भी नहीं देखा। होर्डिंग्स में नेताजी का मुस्कुराता चेहरा, हाथ जोड़ना, विनम्र और सहज भाव देखते ही बनता है। ऐसा लगता है कि नेताजी होर्डिंग्स से सीधे उतर आएंगे और पैर छूकर कहेंगे कि हम जनसेवक हैं। तुम्हारी खूब सेवा करेंगे। तुम्हारे पड़ोस में ही तो रहते हैं, पहचाने नहीं। अरे, बिजनेस के चलते बाहर चले गए थे, चुनाव में प्रगट हो गए, मगर ईमानदारी से सेवा करेंगे। तभी तपाक से सवाल आता है, अच्छा होर्डिंग्स वाले नेताजी आ गए हैं..।

loksabha election banner

हे वीर.. कब छोड़ोगे तीर

कमल वाली पार्टी में पदों को लेकर खूब मारामारी है। युवाओं के पद को लेकर तो ऐसा संघर्ष चलता है, जैसे मानों प्रदेश अध्यक्ष का पद हो। युवा नेता इस पद को पाने के लिए लखनऊ और दिल्ली एक कर देते हैं। ऐसा कोई द्वार न हो, जहां माथा न टेकते हों। जिले में भी युवा की कमान एक वीर को दे दी गई है, मगर वीर पद पाते ही पस्त हो गए हैं, जबकि उनकी टीम में एक से बढ़कर एक ऊर्जावान हैं, वो हिरन की तरह कुलाचे मारते रहते हैं, उनके अंदर का जोश हिलोरे मारता रहता है, मगर वीर शांत हैं। उनकी टीम के पदाधिकारी तो कार्यक्रमों में नजर आ जाते हैं, मगर नेताजी अभी अंतध्र्यान हैं। चुनाव एकदम निकट है, स्थिति बहुत विकट है। कहीं कोई बड़ा सम्मेलन आ गया तो फिर होश उड़ जाएंगे? अब तो कार्यकर्ता भी कहने लगे हैं हे वीर..कब छोड़ोगे तीर।

ताकि माहौल गरमाया जाए

चुनाव नजदीक हैं, ऐसे में नेता कोई मौका नहीं छोड़ रहे। पूर्व ब्लाक प्रमुख की मौत के बाद जो कुछ हुआ वो सबके सामने है। स्वजन के आक्रोश को हवा देने वाले सक्रिय हो गए थे। कुछ तो इसी ताक में थे कि किसी भी तरह से मुद्दा गरमाया जाए और राजनीतिक रोटियां सेकी जाएं। एक माननीय पहले ही भांप चुके थे, इसलिए तड़के ही मेडिकल कालेज पहुंच गए। इससे कुछ गुस्सा रात में ही शांत हो गया था। सुबह फिर माहौल को गरमाने की कोशिश की। पोस्टमार्टम हाउस के सामने नारेबाजी भी खूब की। सत्ता पक्ष के नेताओं को भी नहीं बख्शा। बाद में अफसरों की सजगता और कुछ और नेताओं के हस्तक्षेप से बात बनी तो शांतिपूर्ण तरीके से अंतिम संस्कार हुआ। जनप्रतिनिधि से लेकर अधिकारियों ने राहत की सांस भी ली। पोस्टमार्टम में देरी के लिए पुलिस ने भी सियासत को जिम्मेदार ठहराते हुए तस्करा डाल दिया।

पहली पारी की बेहतरीन कप्तानी

सत्ता आते ही और दलों में हनक आ जाती है, मगर कमल वाली पार्टी में साढ़े चार साल में सत्ता जैसा कुछ दिखा नहीं। यहां तक कि पार्टी के कार्यकर्ताओं पर ही मुकदमे दर्ज हो जाया करते हैं। पुलिस ही पैसे ऐंठ लेती है। यदि कहीं कोई शिकायत की तो पुलिस सीधे कह देती है कि अब नेतागिरी ही करा लो, तुम्हारा काम नहीं करेंगे। ऐसे में कार्यकर्ता मन मारकर रह जाता है। पुलिस वाले जनप्रतिनिधियों तक का दवाब नहीं मान रहे हैं, यदि पैरवी कर दी गई तो फिर काम होना संभव नहीं। फायरिग वाले मामले में यही हुआ। पुलिस कर्मियों ने पहले नियम-कानून पढ़ा दिया। जब जेब गरम हुई तो सारे नियम धरे रह गए। शुरुआती दौर में कप्तान साहब ने बेहतरीन पारी खेली थी। पूरे जिले में उनकी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के जयकारे लग रहे थे, मगर अब उनकी पुलिस महकमे को बदनाम करने में लगी है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.