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देश भर में पढ़ा जाएगा अलीगढ़ की दीवानी का इतिहास

प्रदेश की एतिहासिक इमारतों में शुमार अलीगढ़ दीवानी का 160 साल पुराना इतिहास अब देशभर में पढ़ा जाएगा।

By Mukesh ChaturvediEdited By: Published: Sat, 18 May 2019 02:23 PM (IST)Updated: Wed, 29 May 2019 04:40 PM (IST)
देश भर में पढ़ा जाएगा  अलीगढ़ की दीवानी का इतिहास
देश भर में पढ़ा जाएगा अलीगढ़ की दीवानी का इतिहास

अलीगढ़ (लोकेश शर्मा)। प्रदेश की एतिहासिक इमारतों में शुमार अलीगढ़ दीवानी का 160 साल पुराना इतिहास अब देशभर में पढ़ा जाएगा। हाईकोर्ट के निर्देश पर 'कोर्ट ऑफ यूपी' नाम से प्रकाशित हो रही पुस्तक में इस दीवानी के अतीत का जिक्र किया गया है। अंग्रेजी शासन में निस्तारित हुए मुकदमे, संग्रहालय, इमारत की खूबियां भी इस पुस्तक में देखने को मिलेगी। ये सब जुटाने के लिए दो न्यायिक अफसरों को जिम्मेदारी सौंपी गई। इस इमारत की खूबसूरती को कैमरे में कैद करने के लिए विशेष रूप से फोटोग्राफर भेजे गए थे। पुस्तक में अलीगढ़ समेत प्रदेश के 13 जिला न्यायालयों के इतिहास का संकलन किया गया है।

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160 साल पुराना है संग्रहालय
अलीगढ़ दीवानी का इतिहास 160 साल पुराना है। इसका साक्ष्य वो मुकदमे देते हैं, जो उस दौर में निस्तारित हुए थे। तब देश अंग्रेजों की गुलामी में जकड़ा हुआ था। यही वजह है कि पुरातत्व विभाग ने चार साल पहले जिला न्यायालय की इमारत को अपनी सूची में शामिल कर इसे 'हेरिटेज बिल्डिंग' का दर्जा दिया। 1905 में ये इमारत बनी थी, तब अंग्रेजी शासन के गर्वनर लेफ्टिनेंट सर जेम्स डिगर थे। दीवानी में संग्रहालय भी है, जहां अंग्रेजी शासन में निस्तारित मुकदमों की फाइल संरक्षित हैं। इनमें ज्यादातर सिविल वाद हैं। जिरह में उर्दू, फारसी, अवधी भाषा का समावेश दिखाई देता है। कोर्ट का आदेश अंग्रेजी में ही है। इतिहास की इसी धरोहर को कुछ अन्य घटनाक्रम व तथ्यों के साथ पुस्तक में चेप्टर 'कोर्ट ऑफ अलीगढ़Ó नाम से शामिल किया है।

स्याही में कलम भिगोकर लिखे जाते थे फैसले
संग्रहालय में रखी मुकदमों की फाइलों को देखे तो हैरत होती है। कम्प्यूटर के इस दौर में जहां एक प्रार्थना पत्र भी टाइप किया जाता है, तब ऐसा नहीं था। न्यायिक अधिकारी स्याही में कलम डुबोकर फैसले लिखते थे। वादी, प्रतिवादी के बयान भी ऐसे ही दर्ज किए जाते। तब उर्दू, फारसी भाषा का प्रयोग अधिक होता था। 1894 में एजाज फातिमा बनाम मोहम्मद बख्स आदि का मुकदमा 10 जून 1895 को निस्तारित हुआ था। मुकदमे की फाइल में निर्णय अंग्रेजी में लिखा है, बाकी उर्दू, फारसी में है। 17 जून 1918 में निस्तारित मिश्रीलाल के मुकदमे में भी यही भाषाएं हैं।

ये जिले किए शामिल
अलीगढ़, आगरा, इलाहाबाद, बरेली, फैजाबाद, गोरखपुर, जौनपुर, कानपुर नगर, लखनऊ, मथुरा, वाराणसी, झांसी, मेरठ।

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