Aligarh News: मुगलकालीन ऐतिहासिक जिस गेट को अंग्रेजों ने किया था नीलाम, उसे संवारने में लगा एएमयू, क्या है गेट का इतिहास, पढ़ें विस्तृत खबर
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में कई इमारतें ऐसी हैं जिन्हें देखकर आपकी आंखे थकेंगी नहीं। कई तो सौ साल पुरानी हो चुकी हैं। यूनिवर्सिटी इन्हें संवारने में भी कसर नहीं छोड़ रही। यूनिवर्सिटी सर्किल के पास बने ऐतिहासिक भीमपुर गेट को भी निखारने का काम शुरू हो गया है।
अलीगढ़, संतोष शर्मा। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में कई इमारतें ऐसी हैं जिन्हें देखकर आपकी आंखे थकेंगी नहीं। कई तो सौ साल पुरानी हो चुकी हैं। यूनिवर्सिटी इन्हें संवारने में भी कसर नहीं छोड़ रही। यूनिवर्सिटी सर्किल के पास बने ऐतिहासिक भीमपुर गेट को भी निखारने का काम शुरू हो गया है। इस गेट को आगरा किला से अंग्रेजों ने नीलाम किया था, जिसे भीमपुर के नवाब ने खरीद था। बाद में नवाब के वंशजों ने इसे एएमयू को दान कर दिया।
नबाव दाऊद खां से खरीदा था गेट
एएमयू सर्किल के पास बने इस गेट के नाम के बारे में भी बहुत कम लोग जानते होंगे। क्योंकि यह गेट अक्सर बंद रहता है इससे कोई आवाजाही भी नहीं होती। पास में ही फैज गेट है। इसी से आवाजाही रहती है। भीमपुर गेट का बाहरी हिस्सा सफेद पत्थर का बना है, जबकि पीछे का हिस्सा ईंटों का। देखरेख के अभाव में गेट काफी खराब हो गया है। आसपास के पेड़ों की शाखाएं व जड़ें तक गेट में समा गई हैं। एएमयू के अार्किटेक्चर डिपार्टमेंट के डा. एम फरहान फाजली ने बताया कि मुगलकालीन इस गेट को अंग्रेजों ने आगरा किला में 1803 में नीलाम किया था। जिसे भीमपुर (गभाना) के नवाब दाऊद खां खरीद लाए। उन्होंने 1835 में भीमपुर स्टेट में इस गेट को लगवा दिया। 1961 में नवाब दाऊद खां के वंशज अबुस सबूर खां शेरवाी ने इसे एएमयू को दान कर दिया। गेट में मुगल कला साफ दिखाई देती है। इसमें छतरी भी बनी हुई हैं। डा. फाजली के अनुसार गेट को टुकड़ों में ही आगरा से भीमपुर और भीमपुर से एएमयू में लगाया गया।
भीमपुर गेट का जीर्णोद्धार कराया जा रहा है। पत्थरों की सफाई के अलावा टूट-फूट को भी सही कराया जाएगा। गेट के सामने की जगह का भी सदउपयोग किया जाएगा। अभी ढकेल आदि का जमघट रहता है।
-राजीव कुमार शर्मा, इंजीनियर एएमयू