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अलीगढ़ में ठिठुर रहीं स्वास्थ्य सेवाएं, भटक रहे मरीज

सर्दी के मौसम में बच्चे जहां सर्दी, खांसी जुकाम और निमोनिया की चपेट में हैं, वहीं अन्य मरीज भी मौसमी बीमारियों से पीडि़त हैं।

By Mukesh ChaturvediEdited By: Published: Fri, 18 Jan 2019 09:20 AM (IST)Updated: Fri, 18 Jan 2019 04:56 PM (IST)
अलीगढ़  में  ठिठुर रहीं स्वास्थ्य सेवाएं, भटक रहे मरीज
अलीगढ़ में ठिठुर रहीं स्वास्थ्य सेवाएं, भटक रहे मरीज

अलीगढ़ (जेएनएन)।  सर्दी के मौसम में बच्चे जहां सर्दी, खांसी जुकाम और निमोनिया की चपेट में हैं, वहीं अन्य मरीज भी मौसमी बीमारियों से पीडि़त हैं। चिंता की बात ये है कि सरकारी अस्पतालों में मरीजों को मिलने वाली स्वास्थ्य सेवाएं खुद 'ठिठुरÓ रही हैं। जिला स्तरीय दोनों अस्पताल में खांसी के सिरप, मल्टी विटामिन, क्रीम, एंटीबायोटिक, इंजेक्शन, गॉज, बैंडेज, सीरिंज आदि भी बाहर से मंगाई जा रही हैं।

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बुखार की दवा भी गायब

जागरण टीम ने गुरुवार को जिला अस्पताल की ओपीडी में बच्चों के इलाज की हकीकत पता की। करीब 12 बजे सीएमएस कक्ष (चार नंबर) में सन्नाटा पसरा था। हॉस्पिटल मैनेजर व मानसिक रोग विभाग के कक्ष पर ताला लटका मिला। सीनियर कंसल्टेंट कक्ष संख्या आठ के अंदर केबिन में बैठे बताए गए, जहां तक मरीज पहुंच ही नहीं पा रहे थे। बाल रोग कक्ष में मरीजों की बंपर भीड़ लगी हुई थी। ज्यादातर बच्चे सर्दी से पीडि़त थे, मगर इलाज के लिए दोनों बाल रोग विशेषज्ञों में से कोई नहीं थे। प्रशिक्षु डॉक्टर ही बच्चों की नब्ज देख रहे थे।

मरीज थे, डॉक्टर नहीं

हड्डी रोग विशेषज्ञ के कक्ष के अंदर और बाहर 60-70 मरीज खड़े हुए और इधर-उधर बैठे हुए थे। पता चला कि डॉक्टर साहब, अभी तक नहीं आए हैं। किसी मरीज ने फोन किया तो डॉक्टर ने बताया कि सुबह से घायल संघ प्रचारक के इलाज में जुटा हुआ था। अभी नहाकर व खाना खाकर आऊंगा। एंटी रेबीज वैक्सीन कक्ष में वसूली को लेकर मरीज हंगामा कर रहे थे। वार्डों में भी मरीजों ने इंजेक्शन, गॉज, बैंडेज, सीरिंज समेत कई एंटीबायोटिक व सिरप बाहर से मंगाने की शिकायत की। तीमारदारों ने रैन बसेरा बंद होने से समस्या बताई।

बाहर की दवा लिख दीं

दीनदयाल अस्पताल में टीम पहुंची तो वहां भीड़ लगी हुई थी। कई मरीजों ने बाहर की दवा के पर्चे दिखाए। यहां परेशान दिख रहे कुछ मरीजों ने बताया कि अल्ट्रासाउंड जांच के लिए 15-20 दिन बाद की डेट मिल रही है। ऐसे इलाज का क्या फायदा? गरीब कहां जाएं। क्वार्सी के श्रीराम ने बताया कि सांस रोगी हूं। दीनदयाल व जिला अस्पताल में चक्कर काटे, इन्हेलर नहीं मिला। कई दवा बाहर की लिखी हैं। इगलास के गांव हस्तपुर निवासी संजय कुमार ने बताया कि पहले एंटी रेबीज वैक्सीन लगवाने दीनदयाल गया, वहां से जिला अस्पताल आया। यहां स्टाफ ने सौ रुपये लिए गए।

 इनका कहना
बरौला के रोहताश ने बताया कि हाथ पर पटिया गिरने से फ्रैक्चर हो गया। दो दिन से जिला अस्पताल आ रहा हूं, डॉक्टर अभी तक नहीं आए। रामपुर की कीर्ति ने बताया कि मेरे हाथ में भी फ्रैक्चर है। साढ़े नौ बजे जिला अस्पताल आई थी। 12:30 बज गए, डॉक्टर का पता नहीं। सीएमएस डॉ. रामकिशन का कहना है कि हमारे यहां चिकित्सकों की कमी है। कई बार शासन को लिखा है। एक डॉक्टर को कई-कई काम करने पड़ते है। सभी दवाएं मौजूद हैं। दीन दयाल अस्पताल के डॉ. याचना शर्मा का कहना है कि बड़ों की खांसी का सिरप व इन्हेलर सप्लाई में नहीं हैं। एंटी रेबीज वैक्सीन उपलब्ध है। एक रेडियोलॉजिस्ट होने से अल्ट्रासाउंड में समस्या हो रही है।

मरीज बोला, मुझे  यहां भर्ती मत कराओ 
जिला अस्पताल में लावारिस मरीजों को इलाज की बजाय मरने के लिए छोड़ा जा रहा है। सप्ताह भर पहले जिला अस्पताल में भर्ती कराए गए लावारिस मरीज को स्टाफ ने इलाज के बिना ही टरका दिया। गुरुवार को नाले में गिर गया। समाजसेवियों व पुलिस ने उसे जिला अस्पताल में भर्ती कराया, जहां तुरंत उपचार की बजाय स्टाफ कागजी कार्रवाई पूरी करने में जुट गया। मामले की शिकायत डीएम वार रूम पर की गई है।


ये है मामला
कंपनी बाग चौराहे के सामने एक युवक लडख़ड़ाकर नाले में गिर गया। स्थानीय लोगों व राहगीरों ने उसे बाहर निकाला। सूचना मिलने पर मानव उपकार संस्था के पंकज धीरज पहुंच गए। उन्होंने एंबुलेंस व पुलिस को सूचना दी। एंबुलेंस आने पर जैसे ही मरीज को स्ट्रेचर पर ले जाया जाने लगा,मरीज को पता चला कि उसे जिला अस्पताल ले जाया जा रहा है, वह चिल्ला उठा कि नहीं मुझे जिला अस्पताल में भर्ती मत कराओ।  वजह जानने की कोशिश हुई तो कुछ लोगों ने बताया कि सप्ताह भर पहले भी युवक को अत्याधिक बीमारी की हालत में रामलीला मैदान के पास से उठाकर जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था। अफसोस, चिकित्सकों व स्टाफ ने समुचित उपचार करने की बजाय उसे टरका दिया। पंकज धीरज के अनुसार गुरुवार को पुन: अस्पताल ले गए तो स्टाफ का रवैया बेहद निराशाजनक रहा। मरीज को उपचार शुरू करने की बजाय स्टाफ कागजी कार्रवाई में जुट गया। स्टाफ को सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का हवाला भी दिया गया कि ऐसे मामलों में कागजी कार्रवाई से पहले इलाज शुरू होता है, मगर स्टाफ पर कोई असर नहीं पड़ा। काफी देर बाद उसे दो इंजेक्शन लगाए गए और फिर वार्ड पांच में शिफ्ट कराया गया। मरीजों से भेदभाव की शिकायत डीएम वार रूम पर की गई। डीएम ने सीएमओ को इस मामले की जांच के निर्देश दिए हैं।


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