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महिलाओं की चुनावी पंचायतः आधी आबादी को सहानुभूति नहीं अधिकार चाहिए

आधी आबादी को अधिकार तो मिले लेकिन उनकी मुश्किलें अभी कम नहीं। वे चाहती हैं कि सरकार ऐसी बने जो सुरक्षा के साथ पुरुषों के बराबरी का पूरा हक महिलाओं को दिला सके।

By Mukesh ChaturvediEdited By: Published: Tue, 02 Apr 2019 09:17 AM (IST)Updated: Tue, 02 Apr 2019 10:29 AM (IST)
महिलाओं की चुनावी पंचायतः आधी आबादी को सहानुभूति नहीं अधिकार चाहिए
महिलाओं की चुनावी पंचायतः आधी आबादी को सहानुभूति नहीं अधिकार चाहिए

हाथरस (जेएनएन)।  आधी आबादी को अधिकार तो मिले, लेकिन उनकी मुश्किलें अभी कम नहीं। वे चाहती हैं कि सरकार ऐसी बने जो सुरक्षा के साथ पुरुषों के बराबरी का पूरा हक महिलाओं को दिला सके। दैनिक जागरण की ओर से आयोजित पंचायत में समाज सेवा व व्यवसायिक क्षेत्र से जुड़ी  महिलाओं ने कई गंभीर सवाल उठाए। साथ ही सुधार के  सुझाव भी रखे। उनका कहना था कि महिलाओं को सहानुभूति नहीं, अधिकारों की जरूरत है।

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संस्कारों में अहम भूमिका

समाजसेवी पारुल बंसल का कहना है कि महिलाओं के लिए कई कानून हैं लेकिन हकीकत में अभी तक उन्हें पुरुषों के बराबर अधिकार नहीं मिल सके हैं। महिलाओं की स्थिति पहले से बेहतर हुई है पर यह बदलाव बहुत ज्यादा नहीं है। महिलाएं अपना अधिकार पाने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं। इससे शालिनी मोहता भी सहमत थीं। उनका कहना था कि सशक्तिकरण में संस्कारों की अहम भूमिका होती है। आजकल हर जगह महिलाओं को  सशक्त करने की बात चल रही है। इसके लिए बच्चों को संस्कारवान बनाया जाना चाहिए। संस्कार और अंतर्मन से ही व्यक्ति को सच्ची शक्ति प्राप्त होती है। संस्कारों के साथ शिक्षा का साथ शक्ति को प्रबल बनाता है। व्यवसायी जूही बंसल का कहना था कि महिलाएं हर वक्त, हर जगह केवल सहानुभूति का पात्र रही हैं। उन्हें कोरी सहानुभूति की नहीं बल्कि अधिकारों की जरूरत है।

एकजुटता है जरूरी

व्यवसायी मंजरी खेतान का कहना था कि कुछ घरों में बुजुर्ग महिलाएं ही बेटी के जन्म पर शोक मनाती हैं। जबकि एक महिला ही दूसरी महिला का दर्द समझ सकती है। महिलाओं के एकजुट होने पर दुनिया की कोई ऐसी ताकत नहीं जो उनसे टकरा सके। पुरुष प्रधान समाज में एकता जरूरी है।

भू्रण हत्या पर कड़ाई से लगे रोक

रश्मि गर्ग का कहना था कि कन्या भ्रूण  हत्या बेहद गंभीर मामला है। सरकार ने कानून तो कड़े बनाए लेकिन कार्रवाई नहीं की गई। आए दिन सड़कों पर नवजात कन्याओं के शव मिलते हैं। सरकार भू्रण हत्या रोकने में विफल रही है।

सरकारी स्कूलों की सुधरे दशा

दीप्ति अग्रवाल ने बताया कि सामाजिक संस्था प्रयास से 100 गरीब बच्चों को मुफ्त पढ़ाया जाता है। इनमें से कई बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं। बच्चों की शिक्षा का स्तर काफी कम है। सरकार योग्य शिक्षकों की भर्ती करे और और सरकारी स्कूलों की दशा सुधारे।

और बेहतर हो साफ-सफाई

मेघा ने बताया कि शहर की साफ-सफाई पहले से बेहतर हुई है। इस दिशा में और प्रयास की जरूरत है। सरकार ने काम किया है, लेकिन विकास की रफ्तार सुस्त है। शहरी इलाकों की साफ-सफाई के अलावा गांवों में भी स्वच्छता पर ध्यान देना चाहिए।

आत्मनिर्भर बनें महिलाएं

शिल्पी बंसल ने बताया कि महिलाओं को आत्मनिर्भर बनना चाहिए। सुरक्षा का मसला सबसे बड़ा है। आत्मरक्षा के क्षेत्र में भी आत्मनिर्भर होने की जरूरत है। महिलाओं को निर्णय लेने में भी आत्मनिर्भर होना चाहिए। लड़कियां जन्म के बाद से किसी न किसी पर निर्भर रहती हैं।

कोख में ही कत्ल कर दी जाती हैं 16 फीसद बेटियां

कन्या भ्रूण हत्या के मामले में टॉप टेन जिलों में शामिल हाथरस में हर साल 16 फीसद बेटियों का कत्ल मां की कोख में हो जाता है। छह साल तक के बच्चों का ङ्क्षलगानुपात 865 है।  स्वास्थ्य विभाग दिखाने के लिए छापेमारी करता है लेकिन आज तक इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की।

40 फीसद महिलाएं नहीं जानती लिखना-पढऩा

हाथरस महिला साक्षरता में भी प्रदेश के पिछड़े जिलों में हैं। यहां महज 59.23 फीसद महिलाएं ही साक्षर हैं। 40 फीसद से ज्यादा महिलाओं के निरक्षर होने का तमगा जिले पर कलंक की तरह है

महिलाओं पर नजर

महिलाओं की संख्या-7,28581

एक हजार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या-871

छह साल के बच्चों में लड़कियां प्रति हजार-865

पढ़ी-लिखी महिलाएं-59.21 प्रतिशत


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