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आपातकाल में तानाशाही और आजादी के हनन को करीब से देखा था, याद आते ही सिहर उठता है मन

1975 में आज ही के दिन देश में आपातकाल घोषित किया गया था। आपातकाल को बीते 47 साल बीत चुके हैं लेकिन उसके जख्‍म आज भी ताजा हैं।आज भी लोग आपातकाल काे कांग्रेस शासन की तानाशाही और भारतीय इतिहास का काला पन्‍ना कहते हैं।

By Anil KushwahaEdited By: Published: Sat, 25 Jun 2022 10:14 AM (IST)Updated: Sat, 25 Jun 2022 10:29 AM (IST)
आपातकाल में तानाशाही और आजादी के हनन को करीब से देखा था, याद आते ही सिहर उठता है मन
25 जून 1975 को कांग्रेस शासन में देश में आपातकाल घोषित किया गया था।

हाथरस, जागरण संवाददाता। कांग्रेस शासन में लगे आपातकाल को भले ही 47 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन उसके जख्म आज भी हरे हैं। इमरजेंसी के दौरान पुलिस की बर्बरता और तानाशाही को याद कर आज भी लोग सिहर जाते हैं। आज भी लोग आपातकाल को कांग्रेस शासन की तानाशाही और भारतीय इतिहास का काला पन्ना कहते हैं। वह बताते हैं कि इमरजेंसी में उन्होंने अत्याचार और आजादी के हनन को करीब से देखा। आज भी वह दर्द तड़पाता है। 25 जून 1975 की यादें जहन में आते ही मन में डर बैठ जाता है। आपातकाल में हाथरस जनपद के लोगों ने संघर्ष समिति और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से हिंसा के खिलाफ आंदोलन किया गया था। आपातकाल में आंदोलन कर सरकार को हिलाने वाले लोकतंत्र सेनानियों ने उस समय के हालात बयां किए हैं। 

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ट्रक में नारेबाजी करते हुए गए थे जेल

इमरजेंसी लागू होते ही पुलिस ने उन गैर कांग्रेसी नेताओं पर खुन्नस निकाली, जो संघर्षशील थे। बाबू लाल कामरेड, नन्ने नेताजी, किशन लाल मौला, चंद्रपाल वर्मा, हंसराज शुक्ला जैसे नेताओं को उसी रात गिरफ्तार कर लिया गया था। मैने आरएसएस के जत्थे में शामिल होकर केंद्र की इंदिरा सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया था, तो मुझे भी गिरफ्तार किया गया। मुझ पर पुलिस ने झूठा मुकदमा दर्ज किया। रिपोर्ट में लिखा था कि मैं टेलीफोन के पोल पर खड़े होकर सरकार के खिलाफ नारेबाजी कर रहा था, मेरी जेब से प्लास था, जिससे टेलीफोन की लाइन काटने की कोशिश की। मेरे साथ रामनिवास रावत, यशपाल भाटिया समेत 11 लोगों को अलीगढ़ जेल भेजा गया। हमें एक ट्रक से अलीगढ़ रवाना किया गया, जिसमें अनाज भरा हुआ था। अनाज के ऊपर बैठकर हम नारेबाजी करते हुए अलीगढ़ जेल पहुंचे थे।

- रमेश चंद्र आर्य, लोकतंत्र सेनानी हाथरस

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दर्द की दास्तां मिटते नहीं निशां

आपातकाल की घोषणा के साथ ही पूरे देश में सन्नाटा छा गया था। पुलिस का उत्पीडऩ शुरू हो चुका था। निर्देश मिले थे कि भूमिगत रहकर आंदोलन को धार देनी है। उस समय मैं नगर कार्यवाह था। आपातकाल के विरोध में आंदोलन का नेतृत्व किया। हम सभी लोग रात में पोस्टर लगाते थे। दिन में जुलूस, नारेबाजी, नुक्कड़ सभा करते। सरकार की तानाशाही के खिलाफ विरोध का माहौल तैयार किया। 31 जनवरी 1976 को नुक्कड़ सभा के दौरान पुलिस ने गिरफ्तार लिया था।

केशव देव गर्ग, लोकतंत्र सेनानी सादाबाद

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उत्पीडऩ को याद कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं

आपातकाल की घोषणा होते ही देश में अलग तरह का माहौल तैयार हो गया था। जनता का उत्पीडऩ शुरू हो गया था। मीडिया की आजादी पर भी रोक लगा दी गई थी। मथ्रुरा से लोकतंत्र संघर्ष नामक समाचार पत्र आता था, जिसे लोग बहुत पसंद करते थे। लोकतंत्र रक्षक सेनानियों ने आंदोलन कर अहम भूमिका निभाई थी।

सोमप्रकाश वाष्र्णेय, एडवोकेट लोकतंत्र रक्षक सेनानी

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इमरजेंसी में जिले के कई लोग जेल गए, उन्होंने यातनाएं सहीं। जेल गए लोगों पर अत्याचार किया गया। पुलिस से डरकर बहुत से लोग अज्ञातवास पर चले गए। सरकार के खिलाफ बोलने पर पुलिस जेल में डाल देती थी। हाथरस में रहकर इमरजेंसी के खिलाफ आंदोलन जारी रखा। रणनीति बनाकर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन होते थे और जन-जन तक अपनी बात पहुंचाई जाती थी। प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था।

- प्रकाशचंद्र शर्मा, लोकतंत्र सेनानी, सासनी


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