प्यासा ही चला 'प्रेम-पुजारी', एक प्रेमिका को समर्पित 'नीरज की पाती' भी
महाकवि नीरज के व्यक्तित्व का विरोधाभास यह भी कि वह जिसके पीछे भागे, पा न सके। यहां तककि किशोर उम्र में हुआ पहला प्यार भी उनका नहीं हो सका।
अलीगढ़ (नवीन सिंह पटेल)। महाकवि नीरज के जीवन के कुछ स्याह पहलू भी हैं। व्यक्तित्व का विरोधाभास यह भी कि वह जिसके पीछे भागे, पा न सके। यहां तक कि किशोर उम्र में हुआ पहला प्यार भी उनका नहीं हो सका। उसे पाने, मिलने- देखने की आस में बरसों भटके। बहुत प्रेम-वर्षा हुई, लेकिन प्रेम का यह पुजारी प्यासा ही बना रहा। खास बात यह भी कि लड़कियों-महिलाओं से घनिष्ठ संबंध को नीरज ने कभी खारिज भी नहीं किया।
प्रेम-कथाओं का जिक्र बेझिझक
प्रेम-कथाओं का जिक्र छिडऩे पर नीरज बेझिझक बताते थे, 'उस गुजराती युवती के प्रेम ने मुझे बहुत जागृति दी थी। उनके लेखन से भी प्रभावित हुआ। साथ मिलकर अंग्र्रेजी नाटक 'ब्ल्यू बर्ड' का 'नील विहग' नाम से अनुवाद किया था। 12 साल चले प्रेम संबंध के टूटने के बाद कई साल विक्षिप्त-सा रहा। 'नीरज की पाती' जब प्रकाशित हुई तो इन्हीं को समर्पित की।' इसी दौरान उनके जीवन में मनोरमा शर्मा ने प्रवेश किया। नीरजजी इस प्रेम संबंध को बहुत ही मार्मिक, आनंददायक व पीड़ादायक...प्रेम का सही स्वाद... बताते थे। इसके बाद प्रेम संबंध भोपाल की एक युवती से हुए। उसके लिए नीरज बहुत तड़पे। कहते थे, ऐसा अहेतुक प्रेम-भाव संभव नहीं हुआ। हर प्रेम कुछ पाने की कामना भी करता है, लेकिन इसने कभी कुछ पाने की कामना नहीं की। मेरे कारण अविवाहित भी रहीं। मैं उनके प्रति श्रद्धा व पूजा का भाव रखता हूं। उन्हें प्रेम में कुछ देने की हिम्मत नहीं। उनका स्नेह-प्रेम मेरी अन्यतम उपलब्धि है।'
कलियां झुककर सलाम करती थीं
लड़कियों से संबंध के लिए नीरज खुद को दोषी नहीं मानते थे। उनका कहना था कि सर्वाधिक लोकप्रिय कवि होने के कारण लड़कियां पीछे भागती थीं। एक बार हैदराबाद से एक मुस्लिम युवती जबर्दस्ती उनके साथ भाग आई। जैसे-तैसे उसे अलीगढ़ भेजा, ठहराया। खुद इंदौर चले गए। वहां से उसके घरवालों को तार भेजा। नीरज कहते थे कि पचासों लड़कियां उन पर पागल रही हैं। लखनऊ के कैलाश हॉस्टल में, जहां रात में पुरुष का जाना वर्जित था, वहां छुपकर लड़कियों के बीच काव्यपाठ होता था। ..जिस राह से मैं गुजर जाता था, कलियां झुककर सलाम करती थीं।' पर, किशोर नीरज के हृदय में प्रथम प्रेम का प्रस्फुटन तब हुआ, जब एटा में पढ़ रहे थे। पड़ोस की सुंदर, सुशील लड़की पर फिदा नीरज उससे प्रगाढ़ प्रेम बताते थे। शादी की बात पर उसकी मौसी दीवार बन गईं। बोली, तुम्हारे पास खाने-पीने तक को नहीं है। शादी क्या करोगे? इस बिछोह की पीड़ा उन्हें दशकों तक रही। बाद में पता लगा कि उसके पति स्टेशन मास्टर हैं। दशकों बाद मिलने गए। पति बीमार पड़े थे। वह भी कर्कश काया की हो चुकी थी। तंगहाली देखकर जेब में जो था, वह देकर लौट आए।