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Freedom Movement: अलीगढ़ के श्याम सुंदर अग्रवाल को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जुलूस निकालने पर मिली थी सजा

Freedom Fighters of Aligarh भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान समाज के अन्य लोगों के साथ विद्यार्थी भी पीछे नहीं थे। इनमें श्याम सुंदर अग्रवाल भी शामिल थे। ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जुलूस निकालने पर उन्हें छह माह की सजा दी गई।

By Mohammad Aqib KhanEdited By: Published: Tue, 16 Aug 2022 08:14 PM (IST)Updated: Tue, 16 Aug 2022 08:14 PM (IST)
Freedom Movement: अलीगढ़ के श्याम सुंदर अग्रवाल को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जुलूस निकालने पर मिली थी सजा
Freedom Movement: दिल्ली में जुलूस निकालते हुए गिरफ्तार हुए थे श्याम सुंदर अग्रवाल : जागरण

जागरण संवाददाता, अलीगढ: महात्मा गांधी के आह्वान पर देश मे भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान समाज के अन्य लोगों के साथ विद्यार्थी भी पीछे नहीं थे। विद्यार्थी जीवन या फिर पढ़ाई लिखाई छोड़कर आंदोलन में कूदने वाले किशोर और नौजवानों की गौरवशाली श्रंखला रही है। इनमें श्याम सुंदर अग्रवाल भी शामिल थे। ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जुलूस निकालने पर उन्हें छह माह की सजा दी गई।

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उनको पौत्र सौरभ बालजीवन बताते हैं कि दो अक्टूबर 1942 को दिल्ली में महात्मा गांधी के जन्मदिवस पर हाथों में तिरंगा लेकर विद्यार्थियों के जुलूस का नेतृत्व करने वालों में श्याम सुंदर अग्रवाल भी शामिल थे। विद्यार्थी स्वराज्य की मांग और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ नारेबाजी करते हुए चल रहे थे।

दिल्ली में चांदनी चौक घंटाघर पर किया था गिरफ्तार

बौखलाए अंग्रेज अफसरों ने चांदनी चौक घंटाघर पर श्याम सुंदर व अन्य को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। सभी छात्रों की सुनवाई मजिस्ट्रेट मुश्ताक अहमद के सामने हुई, जो क्रांतिकारियों और भारत के वीरों को कड़ी से कड़ी सजा सुनाने के लिए कुख्यात था।

श्याम सुंदर को छह माह की सख्त सजा सुनाई। उन्हें बोस्ट्रल जेल (लाहौर) भेज दिया गया)। यह वही जेल थी, जिसमें सरदार भगत सिंह और उनके अन्य साथी बंद रहे और फांसी पर लटकाए गए। बोस्ट्रल जेल में वंदेमातरम गाने पर श्याम सुंदर को तनहाई मे रखकर कड़ी शारीरिक और मानसिक यातनाएं दी गईं। श्याम सुंदर अग्रवाल का देशभक्ति का जज्बा नहीं घटा। वह आजादी के संग्राम को लेकर अपने प्रयास करते रहे।

अलीगढ़ लौटने पर सजा पूरी करके 1943 मे वह अलीगढ़ आए तो उनके पिता एक जुलूस के रूप मे स्वागत के लिए रेलवे स्टेशन पहुंचे। श्याम सुंदर जिंदाबाद से अलीगढ़ रेलवे स्टेशन गुंजायमान हो उठा। इसके बाद गांधीजी के आह्वान पर स्वतंत्रता संग्राम के अंतर्गत विभिन्न गतिविधियों में शामिल रहे। अंतत: देश स्वतंत्र हुआ।

पेंशन स्वीकारने से कर दिया था इंकार

करीब 25 वर्ष बाद जब स्वतंत्रता सेनानियों को शासन ने पेंशन योजना प्रारंभ की। श्याम सुंदर अग्रवाल को भी पेंशन देने के पेशकश हुई तो उन्होने विनम्रतापूर्वक उसे स्वीकारने से इंकार कर दिया। शासन को सहर्ष सूचित कर दिया कि उनके बदले उनकी पेंशन का धन किसी गरीब को दे दिया जाए। व्यापारिक परिवार से ताल्लुक रखने वाले श्याम सुंदर अग्रवाल का परिवार, आज बालजीवन परिवार के नाम से जाना जाता है।

पिता हकीम तुलसी प्रसाद भी करते थे मदद

श्यामसुंदर अग्रवाल को देशभक्ति की प्रेरणा अपने पिता हकीम तुलसी प्रसाद अग्रवाल से मिली थी। हकीम होने के साथ वह शहर के रसूखदार व्यक्ति थे। उनकी प्रमुख सेठों में गिनती होती थी। वह आजादी की लड़ाई में क्रांतिकारियों को कई तरह से मदद करते थे। 1913 में सराय लबरिया में अपना दवाखोना खोला और स्वतंत्रता सेनानियों के रुकने और खाने पानी की व्यवस्था के लिए धर्मशाला का निर्माण भी किया। एक समय था जब उनका दवाखाना खैर और दिल्ली मार्ग से आने वाले क्रांतिकारियों की शरणस्थली बन चुका था। इस दवाखाने का नाम बालजीवन दिया गया। सरदार भगत सिंह के आश्रयदाता ठाकुर टोडरमल का शादीपुर स्थित घर भी आश्रम जैसा बन गया था। यहां तुलसी प्रसाद जैसे स्वतंत्रता प्रेमी और सामर्थ्यवान लोगों के सहयोग से ही चलता था। जब कभी उनके घर पर चेकिंग होती तो क्रांतिकारी उनकी बगीची में छिप जाते थे, तब भी इनके खानपान की व्यवस्था व अन्य जरूरत की चीजें सेठों के माध्यम से उपलब्ध कराई जाती थी।

पिता हकीम तुलसी प्रसाद भी करते थे क्रांतिकारियों की मदद

श्यामसुंदर अग्रवाल को देशभक्ति की प्रेरणा अपने पिता हकीम तुलसी प्रसाद अग्रवाल से मिली थी। हकीम होने के साथ वह शहर के रसूखदार व्यक्ति थे। उनकी प्रमुख सेठों में गिनती होती थी। वह आजादी की लड़ाई में क्रांतिकारियों को कई तरह से मदद करते थे। 1913 में सराय लबरिया में अपना दवाखोना खोला और स्वतंत्रता सेनानियों के रुकने और खाने पानी की व्यवस्था के लिए धर्मशाला का निर्माण भी किया।

एक समय था जब उनका दवाखाना खैर और दिल्ली मार्ग से आने वाले क्रांतिकारियों की शरणस्थली बन चुका था। इस दवाखाने का नाम बालजीवन दिया गया। सरदार भगत सिंह के आश्रयदाता ठाकुर टोडरमल का शादीपुर स्थित घर भी आश्रम जैसा बन गया था। यहां तुलसी प्रसाद जैसे स्वतंत्रता प्रेमी और सामर्थ्यवान लोगों के सहयोग से ही चलता था। जब कभी उनके घर पर चेकिंग होती तो क्रांतिकारी उनकी बगीची में छिप जाते थे, तब भी इनके खानपान की व्यवस्था व अन्य जरूरत की चीजें सेठों के माध्यम से उपलब्ध कराई जाती थी।


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