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फिजा को महका रही इत्र की खुशबूः रमजान में दुबई समेत दुनिया के कई मुल्कों के इत्र की मांग

माहे रमजान में इत्र की खुशबू से फिजा महक रही है। सुन्नत में खुशबू के मायने भी हैं। मुस्लिम रवायत में खुशबू की परंपरा मुगल शासक से पहले से है।

By Mukesh ChaturvediEdited By: Published: Fri, 10 May 2019 01:41 AM (IST)Updated: Fri, 10 May 2019 05:41 PM (IST)
फिजा को महका रही इत्र की खुशबूः रमजान में दुबई समेत दुनिया के कई मुल्कों के इत्र की मांग
फिजा को महका रही इत्र की खुशबूः रमजान में दुबई समेत दुनिया के कई मुल्कों के इत्र की मांग

अलीगढ़ (जेएनएन)।  माहे रमजान में इत्र की खुशबू से फिजा महक रही है। सुन्नत में खुशबू के मायने भी हैं। मुस्लिम रवायत में खुशबू की परंपरा मुगल शासक से पहले से है। बाजार में 50 रुपये से लेकर तीन लाख रुपये तक की खुशबू मौजूद है। इस खुशबू को प्योर ऊद, सेफरोन (जाफरान), मुश्क (केसर) व अंबर ब्रांड से निर्मित है। यह फ्लेस बेस (मिश्रण) में मौजूद है। इसे एक बार लगाने के बाद 15 दिन तक महक रहती है। 200 मीटर की दूरी से हवा के साथ इसकी महक आती है। रोजेदार युवाओं में अल्कोहल फ्री अतर देसी व विदेशी की डिमांड है। प्योर हर्बल के शॉप गुलाब, नीम व चंदन फ्लेवर के साथ अतर हो तो बात ही कुछ और है। बकौल कारोबारी, बेडरूम से लेकर बाथरूम, कूलर, कार में भी खुशबू के प्रयोग का प्रचलन बढ़ता जा रहा है। परफ्यूम स्प्रे के साथ रोलर पैक में भी उपलब्ध है।

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खुशबू की वैरायटी

उत्पादन                                      कीमत

अतर (एल्कोहल फ्री)                       50 रुपये से तीन लाख

अपेरल परफ्यूम                              250 से 95000

एयर फ्रेशनर्स                                  210 से 280

कार फ्रेशनर्स                                   60 से 400

बाथरूम फ्रेशनर्स                               210से 280

फ्लोर फ्रेशनर्स                                 280 से 300

रीड डिफ्यूजरस                                600 से 800

अरोमा लैंप सैट                                550 से 1700

अरोमा ऑयल                                  175 से 500

लांड्री फ्रेगरेंस                                    180 से 200

हरबल शॉप                                        100 से 120

एसेंशियल ऑयल                                 350 से 4200

कैरियर ऑयल                                   190 से 500

(नोट- प्रति पीस रुपये में)

 

इनका कहना

खुशबू का प्रचलन बढ़ता जा रहा है, शादी समारोह में टी डिफ्यूजर से इत्र का छिड़काव हो या होम फ्रेशनर्स, हर जगह मांग है। इस बार रमजान में अच्छे कारोबार की उम्मीद है।

अमित कुमार, दुकानदार, अमीरनिशा

मुहम्मद साहब की सुन्नत में खुशबू (इत्र) लगाना शामिल है, मगर यह एल्कोहल फ्री होना चाहिए। इत्र से मन प्रसन्न होता है। रोजेदार खुद को तरोताजा भी महसूस करते हैं।

डॉ. ताहिरा जमाल, ग्राहक

रमजान का महत्वः सहरी व इफ्तार करना ही  रोजा नहीं : डॉ. फारूकी

डॉ. अलीम अहमद फारूकी, शिक्षक, दीनियात सैयद हामिद सीनियर सेकेंडरी स्कूल एएमयू का कहना है कि रमजान का महीना बड़ी रहमतों वाला है। रोजा रखने से इंसान के अंदर बड़ा खुशनुमा परिवर्तन आता है। जो लोग ये समझते हैं कि रोजे का मतलब सिर्फ  सहरी खाना और इफ्तार कर लेना है तो उन्होंने सही तरीके से रमजान का मकसद समझा ही नहीं। रोजा रखना इंसान की हर चीज को पाबंद बनाता है। आंख का रोजा यह है कि जिस चीज को देखने से ईश्वर ने मना किया, उसे न देखें। कान का रोजा यह है कि जिस बात को सुनने से ईश्वर ने मना किया, उसे न सुनें। जुबान का रोजा यह है कि जिस बात को बोलने से ईश्वर ने मना किया, उसे न बोलें। हाथ का रोजा यह है कि जिस काम को करने से ईश्वर ने मना किया, उसे न करें। पैर का रोजा यह है कि जिस तरफ जाने से ईश्वर ने मना किया है, उधर न जाएं। दिमाग का रोजा यह है कि जिस बात को सोचने से ईश्वर ने मना किया, उसे न सोचें।

इसी के साथ ये भी है कि जिन कामों को ईश्वर ने पसंद किया, उन्हें किया जाए। केवल ईश्वर के बताए गए तरीके के अनुसार रोजा रखना ही इंसान को लाभ पहुंचाता है। हजरत मुहम्मद कहते कि इंसान के हर अमल का सवाब (अच्छा बदला) दस गुना से सात सौ गुना तक बताया जाता है, मगर ईश्वर फरमाता है कि रोजा इससे अलग है। वह मेरे लिए है और मैं ही इसका जितना चाहूंगा, बदला दूंगा।

मेरा पहला रोजाः बेटा खऊआ रोजा रख लेना

नवेद आलम, कैबिनेट मेंबर एएमयू का कहना है कि मैैं 2003 में एएमयू के मिंटो सर्किल स्कूल में कक्षा दो का छात्र था, तब हॉस्टल में ही रहता था। हॉस्टल के अन्य छात्रों के साथ ही तब पहला रोजा रखा था। इस बारे में परिजनों को भी नहीं बताया। मेरा परिवार बरेली के मुहल्ला धौरा टांडा में रहता है। दोपहर को पापा को रोजा रखने की जानकारी दी तो वह हैरान हुए। खुश भी हुए। मेरे लिए दुआ की। यह भी कहा कि भूख लगे तो रोजा तोड़ लेना। खऊआ रोजा रख लेना। मैंने ऐसा नहीं किया, छात्रों के साथ रोजा पूरा किया। ऐसा माहौल बन गया कि हमने तीन दिन में कुरान पढ़ ली। पांच वक्त की नमाज में दस पारे पढ़ लिया करते थे। पहले रोजे में अभिभावकों की भूमिका प्रिंसिपल फैसल नफीस, वार्डन अबरार व  गफ्फार ने निभाई। उन्होंने मिठाई खिलाई और गिफ्ट भी दिए। तब से रोजा रखता चला आ रहा हूं।  

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