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हाथरस में 150 साल से लग रहा है तिकोनिया मंदिर पर मेला

रस की नगरी हाथरस में अनेक प्राचीन मंदिर हैं। इनका इतिहास सैकड़ों साल पुराना है। मान्यताएं पर खासियत भी अलग-अलग हैं।

By Mukesh ChaturvediEdited By: Published: Wed, 29 May 2019 01:06 AM (IST)Updated: Wed, 29 May 2019 04:16 PM (IST)
हाथरस में 150 साल से लग रहा है तिकोनिया मंदिर पर मेला
हाथरस में 150 साल से लग रहा है तिकोनिया मंदिर पर मेला

हाथरस (जेएनएन)। रस की नगरी हाथरस में अनेक प्राचीन मंदिर हैं। इनका इतिहास सैकड़ों साल पुराना है। मान्यताएं पर खासियत भी अलग-अलग हैं। इनमें शामिल तालाब चौराहे स्थित मसानी देवी मंदिर तो मेला वाले मंदिर के नाम भी जाना जाता है। हालांकि, किला स्थित दाऊजी मंदिर पर हर साल भादो माह में ब्रज प्रसिद्ध लक्खी मेला लगता है, लेकिन मसानी देवी मंदिर पर 150 साल से हर सोमवार मेला लगता आ रहा है। यह मेला बच्चों का होता है। इसी जात भी कहते हैं। प्रत्येक सोमवार बच्चों की सलामती के लिए यहां देवी की पूजा की जाती है। इसमें कौड़ी का उपयोग होता है।

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किदंवती है कि बच्चों के बीमार होने पर महिलाएं देवी के नाम के रुपये  उठाकर रख देती हैं। इन रुपयों से बच्चे के ठीक होने पर इस मंदिर पर पूजन किया जाता है। मंदिर के प्रति आस्था के चलते हाथरस ही नहीं, आसपास के शहरों के लोग भी यहां पूजन को आते हैं। मुशक से पानी की धार व मुर्गा उतरवाने की परंपरा यहां आज भी जीवित है। नवरात्रि की सप्तमी, बासौड़ा पूजन पर यहां अधिक भीड़ रहती है। 

कुआं से प्रकट हुई प्रतिमा

मंदिर करीब डेढ़ सौ साल पुराना है। इसमें विराजमान प्रतिमा कुआं से प्रकट हुईं। किदवंती है कि तालाब चौराहा के पास में एक कुआं शहर के प्रमुख सेठ फूलचंद्र बागला की जायदाद में था। इनके परिवार में एक बच्ची का जन्म हुआ, जिसकी आंखों में रोशनी नहीं थी। परिजनों ने तमाम उपाय किए। तभी परिवार की महिला को देवी ने स्वप्न दिया कि उन्हें कुआं से निकलवाकर मूॢत की स्थापित कराया जाए। सुबह प्रतिमा निकलवाई गई और प्राण प्रतिष्ठा कराई गई। इसके बाद बच्ची की आंख सही हो गई। धीरे-धीरे मंदिर की स्थापना हुई और लोगों में आस्था भी बढ़ती चली गई।

150 साल पुराना है मंदिर

मंदिर पुजारी कुसमा देवी ने बताया कि करीब 150 साल पुराने इस मंदिर के प्रति आसपास के जिलों के लोगों में भी आस्था है। देवी का प्रादुर्भाव कुआं से बताया गया है। आज भी कुआं मौजूद है। रमनपुर के भंवर सिंह ने बताया कि मंदिर के इतिहास के बारे में पिताजी से सुना है। कई बार मंदिर में जाकर देवी के दर्शन भी किए हैं। सोमवार को लगने वाले मेले की अलग पहचान बन चुकी है।

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