कोरोना की तीसरी लहर की आशंका, संक्रमण से तेज दौड़ेंगे, तभी मिलेगी जीत Aligarh news
22 मई को जमालपुर अर्बन पीएचसी पर फर्जी टीकाकरण का मामला पकड़ा गया। इसमें प्रभारी चिकित्साधिकारी समेत पांच लोगों पर कार्रवाई हुई। मुख्य आरोपित एएनएम की संविदा समाप्त की गई लेकिन जैसे ही मुकदमा दर्ज हुआवो फरार हो गई। पुलिस उसकी तलाश में भटक रही है।
अलीगढ़, जेएनएन । अंग्रेजी की एक कहावत है – ‘स्लो एंड स्टडी विंस द रेस, यानी हम भले ही धीमी गति से चलें, परंतु यदि परिस्थितियों के अनुसार अपने को स्थिर रखते हुए चल पाए तो जीत सुनिश्चित है। लेकिन, कोरोना के संभावित वैरिएंट से बचाव व उपचार को लेकर सरकारी तंत्र की रफ्तार ऐसी बिल्कुल नहीं रही है। एक माह से ज्यादा की अवधि बीत गई, मगर अभी तक न तो पीकू (पीडियाट्रिक आइसीयू) बनाने का कार्य पूर्ण हुआ है और न आक्सीजन प्लांट लगाने का। नया वैरिएंट आया तो बच्चों को ज्यादा खतरा होगा, डब्ल्यूएचओ व अन्य संस्थाओं की ओर से यह बात बार-बार कही जा रही है। तंत्र ने आउटसोर्सिंग से चाइल्ड स्पेशलिस्ट रखे जाने की बात कही, लेकिन इस दिशा में एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा गया है। ऐसे में नई आफत आ गई और आनन-फानन तैयारी करके उससे लड़ा भी गया तो बहुत नुकसान होगा।
हम भूल गए रे हर बात....
22 मई को जमालपुर अर्बन पीएचसी पर फर्जी टीकाकरण का मामला पकड़ा गया। इसमें प्रभारी चिकित्साधिकारी समेत पांच लोगों पर कार्रवाई हुई। मुख्य आरोपित एएनएम की संविदा समाप्त की गई, लेकिन जैसे ही मुकदमा दर्ज हुआ,वो फरार हो गई। पुलिस उसकी तलाश में भटक रही है। दूसरा मामला अलीगढ़ की वैक्सीन नोएडा में लगाए जाने का सामने आया। इसमें भी स्वास्थ्य विभाग ने स्टाफ का तबादला कर दिया, लेकिन रिपोर्ट अज्ञात के खिलाफ दर्ज कराई। जाहिर है, ऐसे में फर्जीवाड़ा करनेवाले असली आरोपी साफ बच निकले। अब यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया है। अधिकारियों में भी इस बेहद संगीन मामले की हकीकत तक पहुंचने और उसे जनता के सामने लाने में बिल्कुल रूचि नहीं दिख रही है, और न अब इस मामले को लेकर अब कहीं कोई चर्चा हो रही है। इस रहस्यमयी चुप्पी के कुछ तो मायने जरूर हैं। वैसे भी, असली दोषी सामने आने ही चाहिएं।
सैंपल कराने वालों के मोबाइल की घंटी बंद
कोरोना की दूसरी लहर लगभग समाप्त हो चुकी है। फिर भी, सरकार ने स्क्रीनिंग, सैंपलिंग व टेस्टिंग को सुचारू रखने के निर्देश दिए हैं। लिहाजा, जनपद में अभी भी कोविड-19 जांच के लिए रोजाना चार हजार से ज्यादा सैंपल लिए जा रहे हैं, जबकि नए मरीजों की संख्या उंगली पर गिनने लायक ही निकल रही है। इससे आमजन के मन में बैठा कोरोना का खतरा कम हुआ है, लेकिन पिछले दिनों कोरोना कंट्रोल की समीक्षा बैठक में प्रभारी अधिकारी के इस खुलासे से खलबली मच गई है कि सैंपलिंग के दौरान फार्म पर दर्ज काफी मोबाइल नंबर गलत निकल रहे हैं। इससे सैंपलिंग में घालमेल की आशंका भी है। अब सवाल ये भी खड़ा हो गया है कि कहीं नाम व पते भी तो फर्जी नहीं है। प्रशासन या स्वास्थ्य विभाग को तत्काल सैंपल कराने वाले लोगों का सत्यापन कराना चाहिए, ताकि किसी तरह के संशय की गुंजाइश न रहे।
मनमाफिक दायित्व न मिलने का मलाल
पिछले दिनों स्वास्थ्य विभाग ने एसीएमओ व डिप्टी सीएमअो के दायित्वों में बदलाव किए। इससे उन दो एसीएमअो को भी विधिवत काम मिल गया, जो करीब छह माह से इधर-उधर का ही काम कर रहे थे। इससे अन्य एसीएमओ व डिप्टी सीएमओ का बोझ भी कुछ कम हो गया। हालांकि, कई अधिकारियों को मनमाफिक दायित्व न मिलने का मलाल साफ दिख रहा है। कई से पुराने दायित्व हटा दिए गए, इससे उनमें कुछ असंतोष भी व्याप्त है। दरअसल, सभी के दायित्व बदल दिए गए, मगर एक अधिकारी के दायित्वों में कटौती नहीं की गई है। सभी अहम दायित्व या यूं कहें कि मलाईदार पटल उन्हीं के पास है। बाकी, अधिकारियों को अपने कार्यक्रमों के लिए मेहनत करनी होगी, तभी परिणाम सामने आएंगे। बहरहाल, कार्य वितरण की नई व्यवस्था से कई अधिकारी खासे नाराज हैं, मगर कोई कुछ बोल नहीं रहा। अधिकारी किसी भी भेदभाव से साफ इन्कार कर रहे हैं।