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Dainik Jagran Jam Jham Campaign : अलीगढ़ में अतिक्रमण से लगता है जाम, इस पर विवाद अब ठीक नहीं

दस साल की यशवी की जान इसलिए चली गई कि उसे वक्त पर इलाज नहीं मिला। बेटी को अस्पताल पहुंचाने के लिए पिता ने पूरी ताकत लगा दी लेकिन जाम के चक्रव्यूह में ऐसे फंसे कि समय पर अस्पताल नहीं पहुंचा सके।

By Sandeep SaxenaEdited By: Published: Sun, 13 Dec 2020 07:50 AM (IST)Updated: Sun, 13 Dec 2020 07:50 AM (IST)
Dainik Jagran Jam Jham Campaign : अलीगढ़ में अतिक्रमण से लगता है जाम, इस पर विवाद अब ठीक नहीं
दस साल की यशवी की जान इसलिए चली गई कि उसे वक्त पर इलाज नहीं मिला।

अलीगढ़, संतोष शर्मा। दस साल की यशवी की जान इसलिए चली गई कि उसे वक्त पर इलाज नहीं मिला। बेटी को अस्पताल पहुंचाने के लिए पिता ने पूरी ताकत लगा दी, लेकिन जाम के चक्रव्यूह में ऐसे फंसे कि समय पर अस्पताल नहीं पहुंचा सके। इस घटना ने हर किसी को झकझोर कर रख दिया। सवाल उठने लगे कि क्या शहर को जाम से मुक्त नहीं कर सकते? दैनिक जागरण ने अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए जाम का झाम अभियान की शुरुआत की। असर ये हुआ कि अफसर तो नींद से जागे ही पब्लिक भी बोल उठी, अतिक्रमण का हटना बेहद जरूरी है। तीन दिन पहले नगर निगम और ट्रैफिक पुलिस ने अतिक्रमण हटाने का अभियान शुरू किया तो सभी ने इसे सराहा भी, लेकिन सासनी गेट और हाथरस अड्डे पर अभियान के दौरान जिस तरह का विवाद हुआ वो कतई ठीक नहीं, इससे शहर का कोई भी भला नहीं हो सकता।

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मजिस्ट्रेट के हाथ में हो कमान 

अफसरों को सबसे पहले मंथन तो इस बात पर करना होगा कि हाथरस अड्डा पर मारपीट की नौबत आई क्यों? नगर निगम के टीम लीडर ने आपा खोया या भाजपाइयों ने रौब दिखाया। इसकी जांच जरूरी है, क्योंकि यह मुद्दा शहर के विकास व यातायात व्यवस्था को दुरुस्त करने से जुड़ा है। प्रशासन को ये संदेश भी देना होगा कि ये विवाद अतिक्रमण अभियान को रोक नहीं पाएगा। अभियान जारी रहेगा, ताकि इस विवाद का लाभ ऐसे लोग न उठा पाएं जो सड़कों पर अतिक्रमण जमाए हुए हैं। प्रशासन को सख्ती के साथ अभियान के लिए एक मजबूत टीम भी बनानी होगी, जिसकी अगुवाई उस क्षेत्र के मजिस्ट्रेट के हाथ में हो। कार्रवाई करने से दो-तीन दिन पहले इलाके में मुनादी हो ताकि किसी को यह कहने का मौका न मिले कि हमें तो बताया ही नहीं। निष्पक्षता भी दिखे। ऐसा न हो कि किसी का तोड़ा, किसी को छोड़ा।

अन्नदाता के साथ नीला झंडा नहीं

सभी राजनैतिक दलों में अन्नदाता के आंदोलन में कूदने की होड़ मची हुई है। राष्ट्रीय ही नहीं, क्षेत्रीय दल भी इसमें हाथ सेंक रहे हैं। अब वजह, सियासी है या वाकई सभी को किसानों की इतनी ही चिंता है? यह बहस का विषय हो सकता है। बहरहाल, नीले झंडे वाली पार्टी इस आंदोलन से अभी तक दूरी बनाए हुए है। शुरुआती दिनों में पार्टी मुखिया का बयान आया तो सिपहसालारों ने आस्तीन चढ़ा लीं, मगर फिर उत्साह ठंडा पड़ गया। अब कोई बयान पार्टी नेताओं की तरफ से नहीं आ रहा है। हालांकि, यह पार्टी किसानों के मुद्दे पर अब मुखर नहीं रही। इसलिए, किसानों की रुचि भी इस पार्टी में नहीं। पार्टी मुखिया को आंदोलन में कूदने से कोई लाभ नजर नहीं आ रहा। लिहाजा, नेताओं को इस मुद्दे पर ज्यादा मुंह न खोलने का फरमान भेज दिया है। पार्टी नेताओं ने भी पूरी तरह चुप्पी साध ली है। 

मुझको भी तो  लिफ्ट करा दो...

अबकी मुझको भी थोड़ी लिफ्ट करा दो। यह लिफ्ट विधानसभा चुनाव के टिकट की है। कमल वाली पार्टी में इनदिनों यही शुरू हो गया है। टिकट को लेकर दावेदार सक्रिय हो गए हैं। लखनऊ से लेकर दिल्ली तक परिक्रमा शुरू कर दी है। हाल ही में नये संगठन मंत्री अलीगढ़ आए थे। यहां से उनका गहरा नाता रहा है। तमाम कार्यकर्ताओं से निकटता रही है। उनके घरों पर भोजन-जलपान किया है। इसलिए पहली बार उनके आते ही दावेदारों ने उन्हें घेर लिया। भाई साहब, घर पर जलपान के लिए चलिए, कहकर आग्रह करने लगे। संगठन मंत्री भी भांप गए। वो कार्यक्रम से तुरंत आगे के लिए बढ़ गए। दोबारा फिर आए तो दावेदार कहां पीछे हटने वाले थे। कुछ दावेदारों ने तो यहां तक कह दिया कि आपने तो तमाम लोगों का उद्धार किया है। बस थोड़ी सी कृपा हो जाए तो इस बार मेरी विधानसभा की लिफ्ट हो जाएगी।


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