अतरौली में जन्मे थे हिंदी विश्वविद्यालयों को मानक वर्तनी देने वाले डाॅ. नगेंद्र Aligarh news
अलीगढ़ की सरजमीं पर अनेक विभूतियों ने जन्म लिया। इनमें विख्यात कवि लेखक निबंधकार व आलोचक डॉ. नगेंद्र का नाम साहित्यजगत में बेहद सम्मान से लिया जाता है। डाॅ. नगेंद्र का हिंदी विश्वविद्यालयों को मानक वर्तनी देने और उसे ऊंचा उठाने में अभूतपूर्व योगदान है।
अलीगढ़, जेएनएन : अलीगढ़ की सरजमीं पर अनेक विभूतियों ने जन्म लिया। इनमें विख्यात कवि, लेखक, निबंधकार व आलोचक डॉ. नगेंद्र का नाम साहित्यजगत में बेहद सम्मान से लिया जाता है। डाॅ. नगेंद्र का हिंदी विश्वविद्यालयों को मानक वर्तनी देने और उसे ऊंचा उठाने में अभूतपूर्व योगदान है। पाठ्य पुस्तकों, अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं व साहित्य में हिंदी का मौजूदा स्वरूप भी डॉ. नगेंद्र की ही देन है। वे सुलझे हुए विचारक व गहरे विश्लेषक थे। साहित्य में उनके अभूतपूर्व योगदान के लिए साहित्य अकादमी समेत तमाम प्रतिष्ठित पुरस्कार-सम्मानों से नवाजा गया। ऐसे डाॅ. नगेंद्र की आज पुण्यतिथि है। आइए, उनके बारे में कुछ जानें...
जीवन यात्रा
नौ मार्च 1915 को अतरौली में जन्मे डॉ. नगेंद्र ने अंग्रेजी व हिंदी में परास्नातक के बाद डीलिट् की उपाधि हासिल की । दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर व हिंदी विभाग अध्यक्ष रहे। सेवानिवृत्ति के बाद साहित्य साधना में लग गए। उन्होंने एमरेट्स प्रोफेसर के पद पर भी काम किया। आगरा विश्वविद्यालय से 'रीतिकाल के संदर्भ में देव का अध्ययन' पर शोध उपाधि से अलंकृत हुए। विभिन्न विश्वविद्यालयों में प्राध्यापक, रीडर व प्रोफेसर की नियुक्ति के लिए उन्हें विशेषज्ञ कमेटी में शामिल किया जाता था। 27 अक्टूबर 1999 को साहित्य का यह पुरोधा चल बसा।
बड़े आलोचक
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के प्रोफेसर डॉ. शंभूनाथ तिवारी ने कहा कि डाॅ. नगेंद्र का हिंदी आलोचना में बड़ा नाम है। अपने समय के वे बड़े छायावादी व रसवादी आलोचक रहे। उन्होंने सुमित्रानंदन पंत, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला व रामविलास शर्मा जैसे छायावादी लेखकों की आलोचना करने में भी संकोच नहीं किया। आचार्य रामचंद्र शुक्ल के बाद डॉ. नगेंद्र को ही चार बड़े आलोचकों में शामिल किया जाता है। उनके निबंधों में एक सहृदय व भावुक लेखक के गुण दिखते हैं।
कमेटी के अध्यक्ष
प्रो. शंभूनाथ तिवारी बताते हैं कि 1961 में सरकार ने डॉ. नगेंद्र की अध्यक्षता में हिंदी की मानक वर्तनी तैयार करने के लिए कमेटी बनाई। कमेटी की 1962 में दी गई रिपोर्ट के आधार पर ही आज हिंदी की स्वीकार्यता है।
लेखन कार्य
नगेंद्र ने अपनी कलम से हिंदी निबंध साहित्य की गरिमा को अद्वितीय बनाने में खासी भूमिका निभाई। 'मेरा व्यवसाय' व 'साहित्य सृजन' निबंध उनकी आत्मपरक शैली के प्रतीक हैं। उनकी प्रमुख रचनाओं में 'विचार और विवेचन', 'विचार और अनुभूति', 'विचार और विश्लेषण', 'अरस्तू का काव्यशास्त्र', अनुसंधान और आलोचना', 'रस सिद्धात', 'आलोचक की आस्था', 'समस्या और समाधान' आदि हैं। वे तर्कपूर्ण, विश्लेषणात्मक ता प्रत्यायक शैली में अपनी बात रखते थे, फिर उसमें सर्वत्र एक प्रकार की अनुभूत्यात्मक सरसता मिलती है। उनके निबंधों में एक सहृदय तथा भावुक निबंधकार के गुण लक्षित होते हैं। मूलत: उन्हें रसवादी आलोचक माना जाता है। वह एक व्यक्ति ही नहीं, संस्था थे। अनुसंधान परिषद की स्थाना के साथ-साथ काव्य शास्त्र के क्षेत्र में महत्वपूर्ण ग्रंथों और अंशों का अनुवाद भी कराया। व्यावहारिक समीक्षक के रूप में नए मानदंड स्थापित किए।
पुरस्कार
डॉ. नगेंद्र को 'रस सिद्धांत' के लिए 1965 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया। आजादी के बाद यह सम्मान पाने वे 10वें साहित्यकार थे।
इनका कहना है
हमारे लिए गौरव की बात है कि डॉ. नगेंद्र इसी ब्रजभूमि में जन्मे। वे सच्चे समालोचक थे। आलोचना में चाटुकारिता नहीं, ईमानदारी होती थी। उनकी आलोचना को पढ़कर मूल रचनाकार भी खुश होते थे और कमियों को साहस के साथ स्वीकारते थे।
- डॉ. प्रेम कुमार, वरिष्ठ साहित्यकार।