अफसर को नहि दोष गुसाईं
चुनाव लोकतंत्र का सबसे बड़ा पर्व होता है। मतदान के जरिये देश और प्रदेश के बेहतर भविष्य के लिए आम जन को सरकार चुनने का मौका मिलता है।
सुरजीत पुंढीर, अलीगढ़: चुनाव लोकतंत्र का सबसे बड़ा पर्व होता है। मतदान के जरिये देश और प्रदेश के बेहतर भविष्य के लिए आम जनमानस को सरकार चुनने का मौका मिलता है। चुनाव आयोग भी राजनीति में अच्छे लोगों को आने के लिए प्रेरित करता है, लेकिन जिले में एक साथ इतनी बड़ी संख्या में नामांकन का निरस्त होना आयोग की मंशा के अनुरूप नजर नहीं आता है। अगर किसी प्रत्याशी के पर्चे में कोई खामी थी तो उस उम्मीदवार को नामांकन के दौरान ही अलर्ट क्यों नहीं किया गया? हर प्रत्याशी को एक बार अपनी गलती दूर करने का मौका तो मिलना ही चाहिए था। अनुभवी अफसरों का भी मानना है कि लोकतंत्र में सभी को चुनाव लड़ने का अधिकार है। आमजन की मांग है कि नामांकन दाखिल करने से पहले प्रत्याशी को एक बार इसे भरने का प्रशिक्षण मिलना ही चाहिए। नहीं तो यही चलता रहेगा कि 'अफसर को नहि दोष गुसाईं'।
पर्दे में रहने दो, पर्दा न उठाओ..
पर्दे में रहने दो, पर्दा न उठाओ। पर्दा जो उठ गया तो भेद खुल जाएगा। हिदी फिल्म का यह गाना शहर के सुनियोजित विकास का जिम्मा संभालने वाले विभाग पर बिल्कुल सटीक बैठता है। शहर में इन दिनों पर्दे के पीछे दर्जनों अवैध निर्माण हो रहे हैं। कई भवन स्वामी तो अफसरों की मिलीभगत से बिना नक्शा पास कराए ही निर्माण किए जा रहे हैं। स्वर्ण जयंती नगर में एक आवासीय भवन को पर्दे के पीछे से ही व्यावसायिक में बदल दिया गया। रामघाट रोड पर भी कई ऐसे निर्माण हैं, जहां नियमों के खिलाफ लगातार काम चल रहा है। एडीए से महज 100 मीटर दूर मुख्य मार्ग पर ही एक चार मंजिला भवन नियमों के खिलाफ खड़ा हो गया। पिछले दिनों अभियान चलाकर सील किए गए कई निर्माणों में भी फिर से गुपचुप तरीके से काम शुरू हो गया है, लेकिन जिम्मेदार अफसर फिर भी आंखें मूंदे बैठे हैं।
मौका मिलते ही लगा रहे चौका
पहले चरण में मतदान होने के चलते जिले में विधानसभा चुनाव का पूरा शोर है। राजनीतिक पार्टियों के साथ ही प्रशासनिक मशीनरी भी चुनाव की तैयारी में लगी हुई है। किसी कर्मचारी की ड्यूटी उड़नदस्ते में हैं तो कोई पोलिग पार्टियों का प्रशिक्षण ले रहा है। इसी का फायदा उठाकर परफोर्मेंस ग्रांट से लाभांवित पंचायतों में दोबारा से खेल शुरू हो गया है। पंचायतों में निगरानी रखने वाले अफसरों के चुनाव में व्यस्त होने के कारण मानकों के खिलाफ काम हो रहे हैं। कहीं सीसी सड़क खराब है तो कहीं नाली का निर्माण ही जलभराव के हिसाब से नहीं है। सामुदायिक शौचालय की स्थिति भी रामभरोसे है। यह हाल तब है, जब विकास पुरुष पहले ही तीन ठेकेदारों को काली सूची में डाल चुके हैं, फिर भी जिम्मेदार निर्माण कार्य में सुधार नहीं ला पा रहे हैं। अब जिला स्तरीय अफसरों के दखल से ही गुणवत्ता में सुधार संभव है।
साहब भी ले रहे 'सम्मान'
ये 'सम्मान' किसानों के लिए था। साल में महज छह हजार रुपये ही मिलते हैं इसके एवज में। कोई बड़ी रकम नहीं है, मगर इस पर भी साहब की नीयत फिसल गई। मौका मिला तो 'सम्मान' पर हाथ साफ कर लिया। साहब की इस कारगुजारी से पर्दा उठा तो बड़े साहब का पारा चढ़ गया। तुरंत ही जांच बैठा दी। अब खाते खंगाले जा रहे हैं। इसी बीच पता चला है कि महकमे में और भी हैं, जो चोरी छिपे 'सम्मान' पा रहे हैं। हर कोई चकित रह गया। मोटी तनख्वा पा रहे साहब लोग भी किस्तों में मिल रहे 'सम्मान' पर नीयत डिगा रहे हैं, हर किसी की जुबान पर बस यही बात है। उधर, साहब भी चुप्पी साधे बैठे हैं। अब ज्यादा कुछ बोल नहीं रहे, बस सोच रहे हैं। शायद, भविष्य में उठने वाले सवालों के जवाब तलाश रहे हैं। इसके जवाब तो उन्हें देने ही होंगे।