क्या आप जानते हैं राजा महेंद्र प्रताप को था गुल्ली-डंडा खेलने का शौक, जानिए उनकी और खासियत Aligarh news
राजा महेंद्र प्रताप व अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का गहरा नाता रहा है। राजा ने मुहम्मडन एंग्लो ओरियंटल (एमएओ) कॉलेज में 12वीं की परीक्षा पास की थी। हॉस्टल में रहकर पढ़ाई की थी। इंतजामिया ने कॉलेज के सौ सालाना जलसे में राजा साहब को बतौर मुख्य अतिथि बुलाया था।
अलीगढ़, जेएनएन । राजा महेंद्र प्रताप व अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का गहरा नाता रहा है। राजा ने मुहम्मडन एंग्लो ओरियंटल (एमएओ) कॉलेज में 12वीं की परीक्षा पास की थी। हॉस्टल में रहकर पढ़ाई की थी। इंतजामिया ने कॉलेज के सौ सालाना जलसे में राजा साहब को बतौर मुख्य अतिथि बुलाया था। बचपन में राजा को यूं तो बहुत से खेल पसंद थे, लेकिन उन्हें गुल्ली-डंडा का शौक ज्यादा था। इसका जिसका जिक्र उन्होंने आत्मकथा 'माई लाइफ स्टोरी' में किया है।
हाथरस से अलीगढ़
एक दिसंबर 1886 में जन्मे राजा महेंद्र प्रताप को गोद लेने के वाले हाथरस के राजा घनश्याम सिंह ने उन्हें पढ़ने के लिए 1895 में अलीगढ़ में गवर्मेंट हाईस्कूल (नौरंगीलाल इंटर कॉलेज) भेजा था। इसके बाद एमएओ कॉलेज में दाखिला दिला दिया। कॉलेज संस्थापक सर सैयद अहमद खां घनश्याम सिंह के अच्छे मित्र थे। सर सैयद के आग्रह पर ही महेंद्र प्रताप को एमएओ कॉलेज पढ़ने भेजा गया। कॉलेज में राजा को चार कमरों का बंगला छात्रावास के रूप में दिया गया। दो कमरों में उनके दस नौकर रहते थे। राजा ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि जब वे क्लास लेने जाते थे, तब नौकर किताब लेकर चलते थे। कक्षा तीन में दूसरा स्थान हासिल करने पर राजा को सम्मानित किया गया। पांचवीं में उन्हें शिक्षक से मार भी खानी पड़ी। कक्षा 8 व 12 में फेल भी हुए। पिता की मौत के कारण राजा को रियासत संभालनी पड़ी और 12वीं के बाद 1907 में कॉलेज छोड़ दिया। बीए की डिग्री न लेने की बात भी उन्होंने लिखी है।
बचपन में राजा
महेंद्र प्रताप गुल्ली डंडा के साथ टेनिस व चेस के भी शौकीन थे। कॉलेज की छुट्टियों में अपना समय मुरसान व वृंदावन में बिताते थे। 1904 में बरसात के चलते कॉलेज दो माह के लिए बंद कर दिया गया, तब वह अपने भाई के साथ रामेश्वर, अजमेर शरीफ, बंगाल, पाकिस्तान व स्वर्ण मंदिर की यात्रा पर गए।
कॉलेज का शताब्दी वर्ष
सर सैयद अहमद खां ने आठ जनवरी 1877 में एमएओ कॉलेज की स्थापना की। यही कालेज आगे चलकर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय बना। सात जनवरी 1977 को कॉलेज का शताब्दी वर्ष मनाया गया। केनेडी हॉल में आयोजत समारोह में कुलपति रहे प्रो. अली मोहम्मद खुसरो ने राजा को मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया और सम्मानित भी किया। एएमयू में राजा का यह दौरा अंतिम था। 29 अप्रैल 1979 में उनका निधन हो गया।
सर सैयद चाहते थे राजा तरक्की करें
आत्मकथा में राजा ने लिखा है कि उनके हेडमास्टर सलाह देते थे कि पैसा बर्बाद मत करो, नहीं तो एक दिन भिखारी बन जाओगे। उन्हें खुशी है कि आज वह मानवता के लिए भिखारी बन गए। कॉलेज में एक बार राजा साथी छात्रों के साथ खेल रहे थे, तब सर सैयद ने उनसे कहा था, 'मैं चाहता हूं कि तुम तरक्की करो'। राजा ने 1909 में वृंदावन (मथुरा) में प्रेम महाविद्यालय (पीएमवी) की स्थापना की थी, तब उन्होंने पांच गांव दान में भी दिए। गुरुकुल वृंदावन, डीएस कॉलेज, एसवी कॉलेज, कायस्थ पाठशाला व बीएचयू को भी जगह दी।