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मरीज को रुपये देने की मशीन न समझें डॉक्टर, मानवीय दृष्टिकोण के साथ रखें अच्छा व्यवहार

इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स, अलीगढ़ के तत्वावधान में रविवार को मेडिको लीगल-वर्कशॉप हुई। इसमें डॉक्टरों ने कानूनी पहलुओं पर विचार मंथन किया।

By JagranEdited By: Published: Sun, 16 Sep 2018 04:00 PM (IST)Updated: Sun, 16 Sep 2018 04:00 PM (IST)
मरीज को रुपये देने की मशीन न समझें डॉक्टर, मानवीय दृष्टिकोण के साथ रखें अच्छा व्यवहार
मरीज को रुपये देने की मशीन न समझें डॉक्टर, मानवीय दृष्टिकोण के साथ रखें अच्छा व्यवहार

अलीगढ़ : इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स, अलीगढ़ के तत्वावधान में रविवार को मेडिको लीगल-वर्कशॉप का आयोजन होटल पाम ट्री में हुआ। इसमें उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा समेत के अनेक राज्यों के बाल रोग विशेषज्ञों ने भाग लेकर कानूनी मसलों पर विस्तार से चर्चा की।

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शुभारंभ मुख्य अतिथि सीएमओ डॉ. एमएल अग्रवाल व एकेडमी की प्रदेशाध्यक्ष व पीजीआई हॉस्पिटल, लखनऊ की वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ.प्याली भंट्टाचार्य ने दीप प्रज्ज्वलित करके किया।

बड़े मरीज को न देखें बच्चों के डॉक्टर

वर्कशॉप में दिल्ली से आए डॉ. वीके गोयल ने लापरवाही के मामले में बाल रोग विशेषज्ञों पर होने वाले मुकदमों पर चर्चा की। कहा, हम पीडियाट्रिक्स हैं, इसलिए सामान्य मरीजों को देखने से परहेज करें। इसे लेकर डॉक्टरों में बहस हुई कि एमबीबीएस के बाद ही कोई पीडियाट्रिक्स होता है, इसलिए सामान्य मरीज देख सकते हैं। डॉ. गोयल ने कहा कि कोर्ट इसे गलत मानती है। यदि मरीज को गंभीर बीमारी हुई और उसे नुकसान हुआ तो सीधे कोर्ट जाकर आपके ही खिलाफ मुकदमा दर्ज करा देगा।

मरीज को नहीं जाने देते डॉक्टर

अक्सर कई बार इलाज से फायदा न होने पर भी डॉक्टर मरीज को जाने नहीं देते, जबकि उसे तुरंत ही रेफर करना चाहिए। ये न सोचें कि तीन-चार दिन की विजिट मर गई। यदि केस बिगड़ गया तो आपके पास कोर्ट में यह बताने के लिए स्पष्ट वजह नहीं होगी, कि इतने दिन क्यों रोका गया?

रेफर करने में बरतें सावधानी

हरियाणा के रोहतक से आए डॉ. सतीश शर्मा ने कोर्ट में बाल रोग विशेषज्ञों के विरुद्ध विचाराधीन व निस्तारित मुकदमों पर प्रकाश डाला। बताया, कि विशेषज्ञ से कहां-कहां गलती हुई। ओवर इन्वेस्टीगेशन न करें, क्योंकि कोर्ट मना करती हैं। गंभीर मरीज को रेफर करते समय पर्चे पर इलाज का पूर्ण विवरण जरूर लिखना चाहिए। यह भी सुझाव दिया कि यदि आप शहर से बाहर जा रहे हैं, तो अपने मरीजों के इलाज की पूर्ण व्यवस्था करके जाएं। उसे स्टाफ के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता।

मरीज के प्रति दिखाएं मानवता

बहस के दौरान वक्ताओं ने कहा कि डॉक्टर मरीज के प्रति मानवता दिखाएं, उनके साथ अच्छा व्यवहार रखें। मरीज को पैसा देने की मशीन न समझें। अच्छे व्यवहार की तारीफ मरीज खुद दूसरे लोगों से करते हैं।

मरीज के दबाव में दवाएं न लिखें

सीएमओ डॉ. एमएल अग्रवाल ने कहा कि कई बार मरीज की गलती से डॉक्टर फंस जाता है। मसलन, कई बार मरीज फायदा न होने पर भी दबाव देकर दवाइयां लिखवाता रहता है और नुकसान होने पर डॉक्टर को कसूरवार ठहरा देता है। डॉक्टर इससे बचें।

इन्होंने भी रखे विचार

दिल्ली के डॉ. तिवारी व मिसेज रुचिता शुक्ला ने कंज्युमर प्रोटेक्शन एक्ट वर चर्चा की। डॉ. एमएल अग्निहोत्री ने नैतिकता व पेशेवर व्यवहार में तालमेल पर जोर दिया। डॉ. जेके गुप्ता ने हॉस्पिटल में होने वाले ¨हसा पर चिंता जताई। डॉ. आशीष जैन ने क्रिटिकल केयर के विधिक पहलुओं पर चर्चा की। विशिष्ट अतिथि एसीएमओ डॉ. अनुपम भास्कर ने भी विचार रखे।

ये रहे मौजूद

एकेडमी के अध्यक्ष डॉ. संजीव शर्मा, सचिव डॉ. लवनीश मोहन अग्रवाल, कोषाध्यक्ष डॉ. अनूप कुमार, मीडिया प्रभारी डॉ. प्रदीप बंसल, डॉ. मनाजिर, डॉ. आलोक कुलश्रेष्ठ आदि मौजूद रहे।

डॉक्टर और मरीज के बीच ऐसे आ रही खटास

66 फीसद डॉक्टर मरीजों के व्यवहार से परेशान

हाल ही में 500 डॉक्टर्स पर हुई एक स्टडी में सामने आया है कि 45 फीसद थकान और 66 फीसद मरीजों के व्यवहार से परेशान रहते हैं। डॉक्टरों से 25 सवाल किए गए, जिसमें से ज्यादातर ने बर्नआउट (थकान) की वजह इमोशन को बताया और साथ में सही काम के अवसर नहीं मिलने, अपने लिए समय नहीं निकाल पाने और काम के प्रेशर की वजह से अपने में सुधार नहीं कर पाने पर चिंता जताई।

बर्नआउट पर वेस्टर्न कंट्रीज में कई स्टडी हुई हैं, लेकिन भारत में ऐसा बहुत कम होता है।

डॉक्टरों में थकान महत्वपूर्ण मुद्दा डॉक्टरों में थकान एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, जिसका सीधा असर मरीजों और स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ता है। मॉडर्न इलाज का तरीका बदल चुका है। इसकी वजह से मेडिकल से जुड़े लोगों के सामने कई प्रकार के चुनौतिया हैं। इस वजह से उनको थकान महसूस होती है और फिर उनमें चिड़चिड़ापन बढ़ने लगती है।

पेश की होती है बदनामी

मरीजों के प्रति डॉक्टरों व अस्पताल के कर्मचारियों का व्यवहार अच्छा होना चाहिए। उन्हें छोटी से छोटी गलती करने से बचना चाहिए। यदि अस्पताल में ट्रॉली खींचने वाले कर्मचारी से लेकर डॉक्टर भी छोटी गलती करते हैं तो पूरे पेशे की बदनामी होती है। युवा डॉक्टरों को व्यवहार कुशल बनाए रखने की जरूरत है।


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