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Corona effect : इस समय शेखा झील न जाएं, वहां परिंदे तो हैं पर प्रवेश पर है रोक Aligarh news

मौसम बदलने के साथ राष्ट्रीय पक्षी विहार शेखा झील परिंदों से तो गुलजार हो गया लेकिन आप अभी जाना नहीं। प्रवेश नहीं मिलेगा। कोरोना संक्रमण के चलते मार्च से ही प्रवेश पर रोक है। कब तक रहेगी यह भी कहा नहीं जा सकता।

By Anil KushwahaEdited By: Published: Mon, 30 Nov 2020 07:53 AM (IST)Updated: Mon, 30 Nov 2020 08:39 AM (IST)
Corona effect : इस समय शेखा झील न जाएं, वहां परिंदे तो हैं पर प्रवेश पर है रोक Aligarh news
कोरोना संक्रमण के चलते मार्च से ही प्रवेश पर रोक है।

अमित वार्ष्णेय, अलीगढ़ः मौसम बदलने के साथ राष्ट्रीय पक्षी विहार शेखा झील परिंदों से तो गुलजार हो गया, लेकिन आप अभी जाना नहीं। प्रवेश नहीं मिलेगा।  कोरोना संक्रमण के चलते मार्च से ही प्रवेश पर रोक है। कब तक रहेगी, यह भी कहा नहीं जा सकता। हां, बड़ी संख्या में आए देसी-विदेशी परिंदों की संख्या इस बार ज्यादा है। इसका कारण पर्यावरण में सुधार होना भी माना जा रहा है। लॉकडाउन के बाद ही झील की सफाई भी हुई। अंदर का नजारा न देख पाने का मलाल अनेक लोगों को है। इनमें आसपास के जिले के लोग भी शामिल हैं। कुछ लोग तो झील से निराश लौटे हैं। 

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2016 में राष्ट्रीय पक्षी विहार घोषित हुआ 

देश के प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. सालीम अली अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी आए थे। उन्होंने इस झील की खोज की। उसके बाद एएमयू के छात्र यहां पक्षियों के बारे में जानकारी करने आते रहे। 1976 में सालीम अली की मांग पर भारत सरकार ने कानून बनाकर शिकार करना प्रतिबंधित किया। 1994 में वन विभाग ने भवनखेड़ा ग्राम पंचातय से झील का कुछ हिस्सा पौधारोपण के लिए लिया था। इसके दोनों ओर जामुन और अर्जुन के पेड़ लगाए गए। इसके बाद गांव -गांव जाकर एएमयू के छात्रों ने लोगों को परिंदों और पौधों के प्रति जागरूक किया। 1996 में अलीगढ़ प्रशासन ने झील को अपनी देख रेख में लिया। इसी बीच झील का दर्जा दिया जाए। 2003 में बसपा शासन में कैबनेट वन मंत्री रहे ठाकुर जयवीर सिंह के प्रयास से उत्तर प्रदेश की लोकल झील का दर्जा मिला। 2014 में तत्कालीन जिलाधिकारी आलोक कुमार झील में रुचि लेते हुए कई कार्य कराए। उसके बाद 14 अप्रैल 2016 में सपा शासन में पर्यावरण चेयरमैन रहे पूर्व मंत्री ख्वाजा हलीम के प्रयासों से इस झील को राष्ट्रीय पक्षी विहार घोषित कराया गया।

 

सिमट गया है झील का क्षेत्र 

मुगल शासन काल की बात है। कस्बा जलाली के निकट शेखा में निजामुद्दीन शेख की शिकारगाह हुआ करती थी। वह अपने नुमाइंदों के साथ शेखा झील पर शिकार के लिए आया करते थे। तब यह झील करीब दो हजार बीघा में फैली हुई थी। लेकिन, अब यह एरिया सिमट गया है। झील का एरिया अब करीब पांच सौ बीघा ही है। 

 

चार हिस्सों में बंटी झील 

अंग्रेजी शासन काल में एक प्राकृतिक आपदा आने पर सन 1852 में हरिद्वार की पौड़ी से होकर कानपुर तक अपरगंग नाम से एक कैनाल निकाली गई थी। इस नहर का पानी किसानों के लिए निशुल्क था। उसी समय यह झील दो हिस्सों में बंट गई। 1857 में अंग्रेजों द्वारा शेखा नहर पर पुुल का निर्माण किया गया। इससेे छर्रा गंगीरी मार्ग अलीगढ़ से जुड़ गया। इसके बाद यह झील चार हिस्सों में बंट गई।

मार्च तक रहते हैं यहांं परिंदे  

झील पर अक्टूबर से ही पक्षियों का आना शुरू हो जाता है।  मार्च तक इनका डेरा रहता है।  वर्फ़ीले देश लद्दाख,  वर्मा,साइबेरियन,ऑस्ट्रेलिया,मंगोलिया आदि देशों की करीब 35 से 40 प्रजातियों के पक्षी आते हैंं। इस बार तो परिंदे पिछले साल से ज्यादा हैं। 

अलीगढ़ से किलोमीटर दूर है झील 

शेखा झील अलीगढ़ से 17 किलोमीटर दूर पनैठी-जलाली मार्ग स्थित पर है। यहां तक आप ऑटो से जा सकतेे हैं। बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन या फिर किसी भी तिराहे-चौराहे से आपको ऑटो आसानी से मिल जाएगा।


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