सिर्फ सीबीआइ की चार्जशीट के आधार पर निष्कर्ष निकालना मुश्किल : अलीगढ़ में बोले सेवानिवृत्त जज
हाथरस के बूलगढ़ी काड में सीबीआइ की चार्जशीट पर सेवानिवृत्त जज अशोक कुमार ने रखी राय।
सुमित शर्मा, अलीगढ़ : बहुचíचत हाथरस काड में सीबीआइ की ओर से चारों आरोपितों के खिलाफ कोर्ट में चार्जशीट दाखिल होने के बाद अलग-अलग प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। कुछ लोग इसे सही बता रहे हैं तो कुछ ने इस पर सवालिया निशान लगा दिए हैं। इसे लेकर सेवानिवृत्त न्यायाधीश अशोक कुमार ने भी राय रखी। कहा, चार्जशीट के आधार पर निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता। जब तक कोर्ट सुबूतों व जिरह के आधार पर कोई निर्णय न दें, तब तक कोई मत भी प्रकट नहीं किया जा सकता।
वर्ष 2005 में एटा से सेवानिवृत्त जज अशोक कुमार ने शनिवार को हाथरस काड को लेकर दैनिक जागरण से बातचीत की। कहा, सीबीआइ ने पीड़िता के अंतिम बयानों को चार्जशीट का आधार बनाया है। ऐसे में पूर्व में दिए गए बयानों का मूल्याकन पर भी करना पड़ेगा। कानून के मुताबिक, अगर अलग-अलग समय में अलग-अलग बयान आ रहे हैं तो इसका उचित स्पष्टीकरण अनिवार्य रूप से होना चाहिए। प्रथम बयानों में सामूहिक दुष्कर्म की बात क्यों नहीं सामने आई थी? जबकि अंतिम बयान में ये बात सामने आई। बयानों में छोटा अंतर होना स्वाभाविक है। लेकिन, इतना बड़ा अंतर नहीं आना चाहिए। इसमें पुलिस पर भी सवाल उठते हैं। इसके लिए दोनों बयानों में सामंजस्य बिठाना होगा। देखना होगा कि पहला बयान किन परिस्थितियों में दिया गया। फिर दूसरा बयान किन परिस्थितियों में बदला गया। इसमें दो संभावना हो सकती हैं। हो सकता है कि शुरू में पीड़िता ने झिझक में पूरी बातें न बताई हों। दूसरी संभावना ये हो सकती है कि राजनीतिक लोगों की परिवार से मुलाकात होने के बाद किसी तरह का विचार बदल गया हो। ऐसे में जब तक एविडेंस (सुबूत) व क्रॉस एग्जामिनेशन (जिरह) न हो जाए, इन परिस्थितियों में कुछ कहना मुश्किल हैं। इस मामले में एविडेंस, गवाही, ट्रायल, क्रॉस एग्जामिनेशन और सारे तथ्य सामने आने के बाद कोई निर्णय लिया जा सकता है।
पीड़िता के भाई ने क्यों नहीं कराया नार्को?
रिटायर्ड जज अशोक कुमार ने एक बड़े बिंदु पर भी सवाल उठाया। कहा कि प्रकरण में चारों आरोपितों का नार्को टेस्ट कराया गया है। लेकिन, भाई ने जो बयान दिए थे, उसका नार्को टेस्ट नहीं कराया गया। पीड़ित पक्ष ने नार्को टेस्ट से क्यों मना किया?