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मेटल के रेट गर्म, भट्ठी ठंडी

- 500 करोड़ का सालाना है कारोबार - 20 हजार भट्ठियों का होता है संचालन - 60 हजार

By JagranEdited By: Published: Thu, 15 Feb 2018 02:04 AM (IST)Updated: Thu, 15 Feb 2018 02:04 AM (IST)
मेटल के रेट गर्म, भट्ठी ठंडी
मेटल के रेट गर्म, भट्ठी ठंडी

- 500 करोड़ का सालाना है कारोबार

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- 20 हजार भट्ठियों का होता है संचालन

- 60 हजार हस्त शिल्पी जुड़े हैं मूर्ति कारोबार से

- 30 निर्यातक माल का करते हैं निर्यात

मनोज जादौन, अलीगढ़ : मेटल (ब्रास) के बढ़ते दामों से जिले में मूर्ति कारोबार घटता जा रहा है। पिछले पांच महीने में साठ रुपए प्रतिकिलो इस धातु के दाम बढ़े हैं। अक्टूबर माह में 260 रुपये प्रतिकिलो बिकने वाली पीतल के दाम बुधवार को 320 से 340 रुपये प्रतिकिलो तक रहे। नोटबंदी और जीएसटी का असर भी अभी कम नहीं हुआ है। इससे बाजार खासा प्रभावित है। मूर्तियों की 60 फीसद मांग कम हो गई है। कारोबारियों को ऑडर नहीं मिल पा रहे। इसका सीधा असर शिल्पकारियों पर भी पड़ा है। आधी से ज्यादा भट्ठियां बंद हैं। रोजी-रोटी की जुगाड़ में शिल्पकार अन्य क्षेत्रों में पलायन कर रहे हैं। शहर के दर्जन भर मोहल्लों में पीतल की मूर्ति की ढलाई का काम होता है। जिले में मूर्ति कारोबार से जुड़ी 20 हजार भट्ठियां व अन्य यूनिटे हैं। इनसे 60 हजार लोगों को रोजगार मिलता है, लेकिन बदले हालातों में कारोबारियों के अलावा शिल्पकारों को तगड़ा झटका लगा है।

विदेशों में भी जाती हैं मूर्तियां

-अलीगढ़ के मूर्ति कारोबार की पहचान विदेशों में भी है। यहां से पीतल की मूर्तियां जर्मनी, ब्राजील, लंदन, इग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया व यूएसए सहित अन्य देशों में निर्यात की जाती हैं।

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बाजार पर अभी भी नोटबंदी व जीएसटी का असर है। रिटर्न के बाद सरकार रिफंड नहीं दे रही। इसके चलते ऑर्डर नहीं मिल रहे। निर्यात में 40 फीसद की गिरावट आई है।

- विपिन विहारी, निर्यातक

महंगी पीतल के चलते बाजार में माल की खपत कम है। इसलिए ऑर्डर भी नहीं मिल पा रहे। पहले एडवांस में ऑर्डर मिलते थे, लेकिन अब ऐसा न होने से शिल्पकार भी परेशान हैं।

- पंकज यादव, मूर्ति निर्माता

पहले महीने में पांच से 10 कुंतल पीतल का आर्डर मिलता था। अब दो कुंतल माल भी महीने में नहीं मिल पा रहा। भट्ठी संचालकों के सामने रोजी रोटी का संकट हो गया है।

- जय प्रकाश, ठेकेदार

कारोबारियों से ऑर्डर न मिलने के कारण ठेकेदार हर रोज हमें काम नहीं दे पा रहे। सप्ताह में तीन दिन ही काम हो पा रहा है। इसके चलते गुजर बसर करना मुश्किल हो रहा है।

- कन्हैया लाल कोरी, श्रमिक

भट्ठी चलाकर दो हजार रुपये रोज की आय होती थी। अब ढलाई के ऑर्डर नहीं मिल रहे हैं। ठेकेदार महंगी पीतल का हवाला दे रहे हैं। इससे परेशानी बढ़ गई है।

- योगेश माहौर, शिल्पकार

ऑर्डर न मिलने से शिल्पी परेशान हैं। रोजगार ने मिलने से वे क्षेत्र से पलायन कर रहे हैं। कुछ तो ई-रिक्शा चलाकर परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं।

- योगेंद्र कुमार, भट्ठी संचालक


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