गोशालाओं में लागू हो जाती ये योजना, तो ठंड में गायों को मिल जाती राहत, विस्तार से जानें मामला
जिले में 150 गोशालाएं हैं। इन्हें समृद्ध बनाने की भी कोशिश की जा रही है। इसलिए गोमूत्र गोबर आदि के प्रयोग के लिए प्रोत्साहन दिया जा रहा है। शासन ने गोशालाओं में बने गोकाष्ठ को अलाव में प्रयोग करने के निर्देश दिए थे।
अलीगढ़, राज नारायन सिंह। सरकारी तंत्र में फंसी गोकाष्ठ (गोबर से बनी लकड़ी) ठंड में धधक नहीं सकी। लकड़ी की तरह जलने वाली यह गोकाष्ठ गोशालाओं में धरी रह गईं। शासन के निर्देश के बाद भी इन्हें अलाव के लिए नहीं रखवाया गया। यदि ठंडी में इन्हें अलाव में रखवाया जाता तो गोशालाओं को कुछ मदद मिल सकती थी। साथ ही पर्यावरण के लिए भी काफी फायदेमंद रहता, मगर प्रशासन ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। इससे साफ पता है कि पर्यावरण से किसी को कोई सरोकार नहीं है।
पर्यावरण को नुकसान कम होगा
जिले में 150 गोशालाएं हैं। सरकार इन गोशालाओं को तो आर्थिक मदद देती है, मगर इन्हें समृद्ध बनाने की भी कोशिश की जा रही है। इसलिए गोमूत्र, गोबर आदि के प्रयोग के लिए प्रोत्साहन दिया जा रहा है। पिछले वर्ष शासन ने गोशालाओं में बने गोकाष्ठ को अलाव में प्रयोग करने के निर्देश दिए थे। साथ ही अंतिम संस्कार में भी गोकाष्ठ के प्रयोग को बढ़ावा देने को कहा गया था। इससे पूर्व रहे डीएम चंद्रभूषण सिंह ने बकायदा पत्र जारी करके अधिकारी, कर्मचारी और ग्राम प्रधानों को गोकाष्ठ के प्रयोग को बढ़ावा देने के निर्देश दिए थे। उन्होंने पत्र में कहा था कि अलाव में गोकाष्ठ रखवाएं। श्मशान गृह में भी 50 फीसद गोकाष्ठ का प्रयोग करें। पत्र में बकायदा लिखा गया था कि इससे गोशालाएं समृद्ध होंगी। साथ ही पर्यावरण को नुकसान कम पहुंचेंगा। इसे देखते हुए जिले के कई गोशालाओं में गोकाष्ठ का निर्माण शुरू हो गया था। जिससे इनकी बिक्री हो सके।
40 कुंतल बनकर तैयार
स्वामी रामतीर्थ गोधाम की ओर से जिले में तीन गोशालाएं हैं। इनमें गोकाष्ठ का निर्माण होता है। इगलास क्षेत्र के गांव मोहनपुर में 600 गोवंशीय हैं, गौंडा के कैमथल में 150 और अकरबााद के गांव धर्मपुर में 150 गोवंशीय हैं। इन तीनों गोशालाओं में गोकाष्ठ का निर्माण होता है। वर्तमान में 40 कुंतल गोकाष्ठ बनकर रखा हुआ है, मगर इन्हें खरीदने वाला कोई नहीं है। यदि इन्हें ठंड में अलाव में प्रयोग किया गया होता तो गोशालाओं को काफी मदद मिल सकती थी।
लागत भी नहीं निकल रही है
स्वामी रामतीर्थ गोधाम के राकेश कुमार रामसन का कहना है कि गोकाष्ठ के निर्माण में काफी मेहनत पड़ती हैं। एक किलो लकड़ी का निर्माण करने में तीन रुपये लागत आती है। बिजली और अन्य खर्च अलग से है। 10 रुपये प्रति कुंतल के हिसाब से बेचते हैं, इसपर भी तमाम लोग पैसे नहीं दे जाते हैं। इससे लागत भी नहीं निकल पाती है। गोशालाओं में बनकर लकड़ी रखी गई है। मगर, खरीदार कोई नहीं है, यदि अधिक दिन गोकाष्ठ पड़ी रही तो वो खराब हो जाएगी।
प्रोत्साहन की कमीगोशाला संचालक गोकाष्ठ के निर्माण में पीछे नहीं हैं। मगर, सरकारी विभाग से प्रोत्साहन न मिलने से गोशाला संचालकों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है, इसलिए कई गोशालाओं में निर्माण रोक दिया गया है। जबकि गोकाष्ठ का प्रयोग पर्यावरण के लिए काफी मुफीद साबित होती। इससे वातावरण भी शुद्ध होता है।
मैं प्रतिदिन पांच कुंतल गोकाष्ठ बनवा सकता हूं, मगर इसे खरीदने वाला कोई नहीं मिलता है। कुछ समाजसेवी हैं, जो मदद कर देते हैं, वरना सरकारी महकमा तो पूछता ही नहीं है। यदि नगर निगम और नगर पंचायतों के अलाव में इस बार गोकाष्ठ रखवाई गई होती तो गोशालाओं काे काफी मदद मिलती।
राकेश कुमार रामसन, स्वामी रामतीर्थ गोधाम, संचालक