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कोरोना ने बंद किए सारे दरवाजे तब नाजिया ने खोले इंसानियत के द्वार Aligarh news

कोरोना काल में जब सड़कें सन्नाटे के आगोश में थीं। दहशत के चलते घरों के दरवाजे की सिटकनी अंदर से लोगों ने चढ़ा रखी थीं। हर तरफ भय और आशंकाओं का आलम था ऐसे समय में भी समाजसेविका नाजिमा मसूद के कदम थमे नहीं।

By Anil KushwahaEdited By: Published: Mon, 25 Jan 2021 07:11 AM (IST)Updated: Mon, 25 Jan 2021 07:11 AM (IST)
कोरोना ने बंद किए सारे दरवाजे तब नाजिया ने खोले इंसानियत के द्वार Aligarh news
कोरोना काल में गरीबों की मसीहा बनी समाजसेविका नाजिमा मसूद।

राज नारायण सिंह, अलीगढ़ : कोरोना काल में जब सड़कें सन्नाटे के आगोश में थीं। दहशत के चलते घरों के दरवाजे की सिटकनी अंदर से लोगों ने चढ़ा रखी थीं। हर तरफ भय और आशंकाओं का आलम था, ऐसे समय में भी समाजसेविका नाजिमा मसूद के कदम थमे नहीं। वे निकल पड़ीं बस्तियों में गरीबों की सुधि लेने के लिए। उन्हें राशन दिया, करीब 2500 मास्क बांटे और कोरोना वायरस संक्रमण से बचने के उपाय बताए। परिवार के लोगों ने नाजिमा को कई बार मना भी किया, मगर बस्तियों व झुग्गी-झोपड़ी में रह रहे लोगों की मदद करनी बंद नहीं की।

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शुरू से ही रहा है सेवाभाव

सिविल लाइंस क्षेत्र के दोदपुर निवासी नाजिमा मसूद बीएससी, बीएड हैं। परिवार की जिम्मेदारी संभालने के चलते उन्होंने नौकरी नहीं की। नाजिमा के बड़े बेटे सैयद यावर मसूद इंजीनियर हैं और छोटे बेटे सैयद अरहम मसूद अधिवक्ता हैं। नाजिमा मसूद में शुरू से ही सेवा का भाव रहा है, इसलिए 2004 में लायंस क्लब, किवानीज क्लब जैसे संगठनों से जुड़ गईं। वर्तमान में वे इनरव्हील क्लब में सीजीआर हैं। 24 मार्च को कोरोना वायरस संक्रमण फैलने से पूरे देश में लाकडाउन लागू हो गया था। लोगों का घरों से निकलना बंद हो गया। नाजिमा कहती हैं कि वे सेवाकार्य के माध्यम से तमाम बस्तियों में जाती रहती थीं, इसलिए मन में सवाल उठा कि मलिन बस्तियों में लोग कैसे रह रहे होंगे? उन्हें मदद करने वाला कोई नहीं होगा। 

खुद से की मदद

नाजिमा बताती हैं कि उन्होंने बस्तियों में मदद का निर्णय लिया। अमीरनिशां, दोदपुर आदि के आसपास की बस्तियों में वे पहुंच गईं। वहां की स्थिति देख उनकी आंखें भर आईं। लोग रोज कमाने-खाने वाले थे। तमाम परिवारों में राशन नहीं था। कुछ घरों में तो चूल्हे तक जलने बंद हो गए। वे अपने घर पहुंचीं और अपने दोनों बच्चों से भी मदद ली। इसके बाद चावल, दाल और अन्य राशन सामग्री की व्यवस्था कर बस्तियों में पहुंच गईं। 

सैनिटाइजर व मास्क बंटवाए 

नाजिमा ने खुद के पैसे से 2500 मास्क बनवाकर बंटवाएं। इसके लिए दो लड़कियों को मास्क बनवाने के लिए सिलाई मशीन दिलवाई। उनकी आर्थिक मदद की। 250 से अधिक सैनिटाइजर भी बस्तियों में बंटवाए। उन्हें साफ-सफाई से रहने व मास्क लगाकर बाहर निकलने की सलाह दी। नाजिमा बताती हैं कि करीब दो महीने तक बस्तियों में उनका जाना रहा। 

परिवार की झेली नाराजगी

अप्रैल में कोरोना वायरस संक्रमण फैल चुका था। फिर भी नाजिमा बस्तियों में जा-जाकर लोगों को जागरूक करती रहीं। कई बार उनके बेटे यावर और अरहम ने मना भी किया। कहा, कोरोना की चपेट में आ गईं तो मुश्किल होगी। नाजिमा ने कहा कि ऐसे वक्त में सबसे अधिक मलिन बस्तियों में मदद की जरूरत है। वहां के हालात मुझसे देखे नहीं जा रहे हैं, इसलिए वे नहीं रुक सकतीं। नाजिमा कहती हैं कि शुक्र है कि सब ठीक-ठाक रहा। यदि उस समय वे नहीं पहुंचतीं तो शायद तमाम परिवारों के चूल्हे नहीं जलते।


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