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Aligarh News : कार्यालयों में सुरक्षित व सुगम सड़कों के दावे, बाहर हिचकोले खा रहे वाहनों से टूट रहीं सांसें

Aligarh News अधिकारी कार्यालय में बैठकर अच्‍छी सड़कों का दंभ भरते हैं जबकि हकीकत इससे परे है। सड़कों पर गड्ढों में वाहन हिचकोले खा रहे हैं जिससे हर समय दुर्घटना की आशंका बनी रहती है लेेेेकिन जिम्‍मेदार इन सबसे बेफिक्र हैं।

By Anil KushwahaEdited By: Published: Thu, 24 Nov 2022 09:11 AM (IST)Updated: Thu, 24 Nov 2022 09:11 AM (IST)
Aligarh News : कार्यालयों में सुरक्षित व सुगम सड़कों के दावे, बाहर हिचकोले खा रहे वाहनों से टूट रहीं सांसें
सड़कों की मरम्‍मत के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की जाती है।

अलीगढ़, जागरण संवाददाता। Aligarh News : सियासी मंच से किए दावाें की सच्चाई खोजने की आवश्यकता नहीं पड़ती, सामने आ ही जाती है। अब सरकारी महकमों के दावों की हकीकत भी जान लीजिए। जो दावे-वादे दफ्तरों में बैठकर किए जाते हैं, वे धरातल पर कुछ और ही हाेते हैं। सुरक्षित और सुगम सड़काें को लेकर संबंधित महकमों ने समय-समय दावे-वादे किए। सड़कों को गड्ढा मुक्त कर दुर्घटनाओं की संभावनाएं कम कर दी गईं, ये तक कह दिया। क्या ऐसा हुआ? जवाब मिलेगा नहीं। फीडबैक लेकर देख लीजिए। सड़कें शहर की हों या देहात की, अधिकांश बदहाल हैं। मरम्मत के नाम पर सिर्फ खानापूरी होती है। ये स्थिति तब है, जब सीएम खुद इसे लेकर बेहद गंभीर हैं। सरकारी महकमों की कार्यप्रणाली वे जानते हैं, शायद इसलिए सड़कों को दुरुस्त करने की समय सीमा बढ़ा दी। इसमें भी ये सरकारी महकमे सुधार कार्य नहीं करते तो सरकार को इनके विरुद्ध सख्त कदम उठाने ही चाहिए।

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जलाशय है, इन्हें ऐसे ही रहने दीजिए

जल बिन सब सून, ये नारा लगाकर जलाशयों को बचाने के लिए जन जागरण होता है। कार्रवाई का ढिंढोरा भी पीटा जाता है। क्या इससे जलाशय सुरक्षित हो सके, नहीं। जिन हाथों में जलाशय बचाने की जिम्मेदारी है, वही इनका सौदा कर देते हैं। ऐसा नहीं है तो जो मुकदमे पूर्व में दर्ज हुए, वे खारिज क्यों हो गए? पोखरों पर आबादी कैसे बस गई? मकान, दुकान, गेस्ट हाउस तक पोखरों पर खड़े हो चुके हैं। सिलसिला जारी है। दबाव पड़ने पर मुकदमे तो दर्ज करा दिए जाते हैं पर, साक्ष्य नहीं दिए जाते। यही वजह है कि अदालत पहुंचने से पहले मुकदमे दम तोड़ देते हैं। गूलर रोड प्रकरण में कुछ को क्लीनचिट मिल गई, भदेसी रोड प्रकरण में भी साक्ष्य छिपा लिए गए। जबकि, अधिकारी मामला अदालत तक ले जाने के दावे करते रहे। ऐसी स्थिति में वे भी बैकफुट पर आ गए, जिन्होंने ये मुद्दे उठाए थे।

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गईं भैंस गोशाला में

अभयदान पा चुकी डेरियां अब फिर निशाने पर हैं। सड़क, नालियां बदहाल करने वाली इन डेरियों पर शिकंजा कसा जा रहा है। ‘मैडम सर’ इस ओर सख्त रुख अपनाए हुए हैं। जो कायदे-कानून पिछले दो साल से ठंडे बस्ते में पड़े थे, वे निकाले जा रहे हैं। हाल ही में ‘मैडम सर’ ने डेरियाें का हाल जाना। देखकर हैरान रह गईं। डेरियां तो बदहाल थी हीं, आस पड़ोस के हाल भी बुरे थे। डेरी वालों की लापरवाही साफ नजर आई। आनन-फानन में मुकदमा दर्ज करा दिया। यही नहीं, भैंस भी जब्त कर लीं। यहां तक तो ठीक था पर, समस्या तब सामने आई जब भैंस बांधने की जगह तलाशी गई। जब्त की गईं भैंसों को बांधने का कोई अतिरिक्त इंतजाम तो था नहीं। सोच-विचार करने के बाद इन्हें गोशाला भिजवा दिया गया। गायों के साथ भैंस भी बांध दी गईं। चारा-पानी की व्यवस्था भी की गई।

ये साहब तो टिकते ही नहीं

सफाई वाले महकमे में हालात फिर बिगड़ने लगे हैं। जिम्मेदारियां इतनी बढ़ गई हैं कि संभाले नहीं संभल रहीं। लीक से हटकर काम दिए जा रहे हैं। राजस्व वाले सफाई देख रहे हैं और सफाई वाले सूची बना रहे हैं। वाहनों का संचालन और रख रखाव देख रहे साहब तो एक जगह टिकते ही नहीं। चार विभागों का भार अकेले संभाल रहे हैं। कभी किसी दफ्तर में तो कभी किसी में। विभागीय कर्मचारी भी परेशान हैं कि कहें किससे। साहब तो जिम्मेदारियों को हवाला देकर निकल जाते हैं, झेलना उन्हें पड़ता है। यूनियन विरोध कर चुकी है। स्पष्ट कह दिया कि साहब एक ही विभाग के बनकर रहें। तभी काम हो पाएंगे। ऊपर वाले व्यवस्था ठीक कराने की हामी भर देते हैं पर, कुछ कर नहीं पा रहे। जिम्मेदारी सौंपे किसे? महकमे में ऐसा कोई काबिल भी तो नहीं, जो ऊपर वालों के किसी भी आदेश पर सिर हिला दे।


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