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अलीगढ़ में इंसाफ की जंग में रोड़ा बने रिश्ते

बाल यौन शोषण के मुकदमों में पीड़ित को इंसाफ दिलाना इतना आसान नहीं होता।

By JagranEdited By: Published: Tue, 19 Jun 2018 08:30 AM (IST)Updated: Tue, 19 Jun 2018 10:19 AM (IST)
अलीगढ़ में इंसाफ की जंग में रोड़ा बने रिश्ते
अलीगढ़ में इंसाफ की जंग में रोड़ा बने रिश्ते

अलीगढ़ : बाल यौन शोषण के मुकदमों में पीड़ित को इंसाफ दिलाना इतना आसान नहीं होता। वह भी तब, जब आरोपित कोई नजदीकी ही हो। ऐसे मुकदमे गवाहों के मुकरने पर अक्सर छूट जाते हैं। समाज व रिश्तों का हवाला देकर पीड़ित पक्ष पर दबाव बनाया जाता है। तब वकीलों के जुटाए साक्ष्य भी अदालत में नहीं टिक पाते। ऐसे भी मुकदमों में आरोपित बरी हुए हैं, जिनमें पीड़ित 164 के बयान में घटना का जिक्र कर अंतिम बहस में मुकर गया। शहर के वरिष्ठ अधिवक्ता हरिओम वाष्र्णेय ऐसे कई मुकदमे लड़ चुके हैं, जिनमें आपसी रिश्ते अड़चन बनकर सामने आए।

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अधिवक्ता वाष्र्णेय पालीमुकीमपुर के 2011 के मुकदमे का जिक्र करते हुए बताते हैं कि 21 मई की शाम दो भाई 12 साल की लड़की को बरगला कर ले गए। इनके विरुद्ध अपहरण, दुष्कर्म, पॉक्सो एक्ट में मुकदमा दर्ज हुआ। आरोपित पीड़ित परिवार के नजदीकी थे। पुलिस ने लड़की को बरामद कर आरोपितों को जेल भेज दिया। जब मुकदमा उनके पास आया तो आरोपितों के विरुद्ध साक्ष्य जुटाए गए। पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट, अपहरण के बाद उसकी लोकेशन के साक्ष्य, सभी संबंधित के लिखित बयान लिए गए। विवेचक का आधिकारिक पक्ष भी साक्ष्य के तौर पर लिया। पीड़िता ने थाने में आरोपितों के खिलाफ 161 के बयान देने के बाद धारा 164 के तहत कोर्ट में भी वही बयान दोहराए। केस मजबूत था, सभी जरूरी साक्ष्य हमारे पास थे, जो आरोपितों को सजा दिलाने के लिए काफी थे। ट्रायल के दौरान सभी साक्ष्य मजबूती के साथ कोर्ट में पेश किए गए। जब गवाहों की बारी आई तो उन्होंने खुद को असहज महसूस किया। आरोपित पक्ष ने समाज व रिश्तों का हवाला देकर पीड़ित पक्ष पर दबाव बनाना शुरू कर दिया। गवाह बयान से मुकरने लगे। तब उन्हें काफी समझाया गया। कहा, मुकदमा हमारे हाथ में है। आरोपितों को सजा होकर रहेगी, मगर वे तैयार नहीं हुए। पीड़िता का पिता बयान से पलट गया। दबाव में आई पीड़िता ने भी अंतिम बहस में घटना से इन्कार कर दिया। उस समय पीड़िता की मनोदशा क्या रही होगी? सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। बयान देने के बाद पीड़िता से फिर बात नहीं हुई, तब कोर्ट में कुछ और कहने को शेष नहीं रह गया। 25 जनवरी- 18 को कोर्ट ने साक्ष्य के अभाव में आरोपित बरी कर दिए। झूठी गवाही देने पर पीड़िता के पिता पर धारा 182 के तहत कार्रवाई जरूर हुई।

जेल भेजकर बताया निर्दोष

अतरौली के 2009 के मुकदमे में भी ऐसा ही हुआ। तीन दिसंबर की शाम 14 साल की लड़की को उसका चचेरा भाई बरगला कर दिल्ली ले गया। वहां अपनी बुआ के दूसरे मकान में रखा। इसके विरुद्ध अपहरण व दुष्कर्म में मुकदमा दर्ज हुआ। आरोप बंधक बनाकर दुष्कर्म करने के लगे। पुलिस ने दोनों को बरामद कर लिया। आरोपित को जेल भेज दिया गया। पीड़िता ने पहले थाने, फिर कोर्ट में आरोपित के खिलाफ बयान दिए। बंधक बनाकर दुष्कर्म की बात कही। आरोपित पक्ष ने पीड़ित पक्ष का मान-मनोव्वल कर रिश्तों का हवाला दिया। पीड़ित पक्ष टूट गया। गवाह बयान से मुकर गए, पीड़िता ने भी आरोपित को निर्दोष बताया। 24 जनवरी-18 को कोर्ट ने आरोपित दोषमुक्त कर दिया।

वरिष्ठ अधिवक्ता हरिओम वाष्र्णेय का कहना है कि अधिवक्ता पूरी तैयारी के साथ केस लड़ता है। प्रयास करता है कि ठोस साक्ष्य व मजबूत गवाह कोर्ट में पेश किए जाएं। जब पीड़ित पक्ष ही आरोपों से कोर्ट में मुकर जाए तो अधिवक्ता भी कुछ नहीं कर सकता।


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